वानस्पतिक नाम : Agave americana Linn. (अगेव अमेरिकाना)
Syn-Aloe americana (Linn.) Crantz
कुल : Agavaceae (एगावेसी)
अंग्रेज़ी नाम : Century Plant (सेन्चुरी प्लांट)
संस्कृत-कण्टल, कालकण्टल, कालकण्टक; हिन्दी-वनकेवरा, रामबास; उड़िया-बृहोतोकुमारी (Brihotokumari),
कोलोकान्तोलो (Kolakantolo); कन्नड़-भूटटेले (Bhuttale), कालानारू (Kalanaru); कोंकणी-रेडोनोस्सी (Redonossy), रेड्योनोस्सी (Reddionossi); गुजराती-जंगली कुँवर (Jangli kunvara), केतकी (Ketaki), रामबन (Ramban); तमिल-अन्नेईकथाली (Annaikthali), अलागाइ (Alagai); तैलुगु-रक्षिमा तालु (Rakashima talu), कित्थानारा (Kithanara), कित्तानारा (Kittanara); बंगाली-जंगली एनानाश (Jungli ananash), बनकेओरा (Bankeora), बिलातीएनाराश (Bilatianarash); नेपाली-केटुकी (Ketuki); पंजाबी-विलयतीकाइतालू (Wilayatikaitalu); मराठी-घायल (Ghayal), रकसपत्ता (Rakaspatta), घामपात (Ghampat); मलयालम-पनम्कट्टा (Panankattaa), एरोप्पाककाइता (Airoppakkaita); मणिपुरी-केवा (Kewa)।
अंग्रेजी-अमेरिकन अगेव (American agave), अमेरिकन एलो (American aloe); अरबी-सेउब्बारा (Seubbara)।
परिचय
यह पौधा समस्त भारत के शुष्क वन्य भागों में साधारणतया खुले स्थानों एवं सड़कों के किनारे पाया जाता है। स्थानीय लोग इसकी पत्तियों का प्रयोग रस्सी बनाने के लिए करते हैं। रामबाँस की एक प्रजाति से निकलने वाले कन्द को कई स्थानों पर लोग कन्दमूल के नाम से बेचते हैं। इसका पौधा प्रकन्दयुक्त होता है
इसके पत्र मोटे, अग्रभाग पर नुकीलें, बड़े तथा किनारों पर कांटो से युक्त होते हैं। इसके पत्र देखने में घृतकुमारी के पत्रों जैसे किन्तु उससे बड़े, मोटे व कठोर होते हैं। इसके पुष्प श्वेत अथवा पीताभ-हरित वर्ण के होते हैं।
उपरोक्त वर्णित मुख्य प्रजाति के अतिरिक्त निम्नलिखित दो प्रजातियों का प्रयोग भी चिकित्सा में किया जाता है।
Agave angustifolia Haw. (पाण्डर पर्णिका)- यह भारत के हिमालयी तथा पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता है। कई स्थानों पर शोभनीय पौधे के रूप में लगाया जाता है। यह बहुवर्षायु पौधा होता है, इसके पत्ते सीधे, दोनों सिरों पर पतले, किनारों पर कटे हुए तथा चक्करदार क्रम में व्यवस्थित होती है। इस पौधे में सैपोजेनिन पाया जाता है तथा सैपोनिन, कार्टीसोन ड्रग्स का स्रोत होता है। इस पौधे का प्रयोग संधिवात, ज्वर, गृधसी, त्वक्विकार तथा अनूर्जता जन्य विकारों की चिकित्सा में किया जाता है।
Agave sisalana Perrine (दामपर्णी, रज्जुपर्णिका)- यह बहुवर्षायु, मध्यमाकार शाकीय क्षुप है। इसका काण्ड छोटा होता है। इसके पत्र गहरे हरे रंग के, मोटे, मांसल तथा शूक रहित होते है। ये पत्र चक्करदार क्रम में व्यवस्थित होते है। इसके काण्ड तथा पत्र में रेशे प्राप्त होते है। अत कई स्थानों पर इसकी खेती की जाती है। इसका प्रयोग सन्धिवात, ज्वर तथा त्वचा विकारों में चिकित्सा में किया जाता है।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
रामबाँस, विरेचक, पूयरोधी तथा शोथहर होता है।
इसकी मूल मूत्रल, फिरङ्ग रोगरोधी तथा स्वेदजनन होती है।
इसके पत्र विरेचक, मूत्रल तथा पूयरोधी होते हैं।
औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि
प्रयोज्याङ्ग :पत्र।
मात्रा :पत्र क्वाथ 10-15 मिली। पत्र-स्वरस 5 मिली या चिकित्सक के परामर्शानुसार।
विशेष :आदिवासी क्षेत्रों में कंदमूल के नाम इसकी दूसरी प्रजाति ।हंअम sपेंसंदं च्मततपदम के कच्चे कंद को काटकर रंग करके बाजारों में बेचा जाता है। हमने गहन अन्वेषण तथा परीक्षण करने के बाद इस गोपनीयता का पता लगाया। इस प्रजाति के कन्दों का प्रयोग दुर्बलता तथा तृष्णा नाशक होता है। अत रामबाँस का कन्द भी दुर्बलता में लाभकारी हो सकता है। यह परीक्षणीय विषय है। अत्यधिक मात्रा में यह वमनकारक होता है, अत इसका आन्तरिक प्रयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
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