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Lashunadi Vati: लशुनादि वटी – एक नाम, कई लाभ- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

लशुनजीरकसैन्धवगन्धकं त्रिकटुरामठचूर्णमिदं समम्। सपदिनिम्बुरसेन विषूचिकां हरतियोरतिभोगविचक्षणे।। वै.जी. क्षयरोगादिचिकित्सा

क्र.सं. घटक द्रव्य प्रयोज्यांग अनुपात

  1. लशुन (Allium sativum Linn.) गुठली 1 भाग
  2. जीरक (श्वेत) (Cuminum cyminum Linn.) फल 1 भाग
  3. सैंधव लवण 1 भाग
  4. गन्धक शुद्ध 1 भाग
  5. शुण्ठी (Zingiber officinale Rosc.) कन्द 1 भाग
  6. मरिच (Piper nigrum Linn.) फल 1 भाग
  7. पिप्पली (Piper longum Linn.) फल 1 भाग
  8. रामठ (हिंगू) (Feula narthex Boiss.) निस्राव 1 भाग
  9. निम्बू रस (Azadirachta indica A.Juss.) फल Q.S मर्दनाथ

मात्रा 1 ग्राम

अनुपान कोष्ण जल

गुण और उपयोगयह वटी पेट में वायु भर जाने की उत्तम औषध है। अग्नि की मन्दता, उदर वायु, पेट की पीड़ा इस वटी के सेवन से नष्ट हो जाते हैं। यह दीपकपाचक वायु को नष्ट करने वाली होती है। यह अजीर्ण एवं विसूचिका रोग में विशेष लाभ प्रदान करती है। अजीर्ण के कारण पेट में वायु भर जाने से डकारें आने लगती हैं, इस वायु का पाचन करने तथा डकारों को रोकने के लिए यह वटी बहुत लाभकारी होती है। पेट में वायु कुपित होकर ऊपर की ओर गति करती है, सामान्य जन इसे गोला बनना कहते हैं। मस्तिष्क का काम करने वाले व्यक्तियों को यह परेशानी अधिक होती है। इसमें जी मिचलना, सिर में भारीपन, ह्य्दय धड़कना, भ्रम, चक्कर आना, खट्टी डकारें आना, पेटफूलना आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं। इस वटी के सेवन से शीघ्र ही ऊर्ध्ववात रोग शान्त हो जाता है।