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Krishnabeej: कृष्णबीज के हैं कई जादुई लाभ- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

Contents

कृष्णबीज का परिचय (Introduction of Krishnabeej)

कृष्णबीज नाम से शायद इस फूल को पहचानना मुश्किल हो सकता है ,अंग्रेजी में इसको ब्लू मॉर्निंग ग्लोरी कहते हैं। इसके सुन्दर नीले फूल सुबह में ही खिलते है; इसलिए इसे मार्निंग ग्लोरी कहा जाता है। यह नीले-नीले फूल देखने में जितने मन को मोहने वाले होते हैं उतने ही इसके औषधीय गुण बीमारियों के इलाज के रूप में इस्तेमाल भी किये जाते हैं। चलिये आगे हम जानते हैं कि कृष्णबीज कैसे और किस तरह से औषध के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।

 

कृष्णबीज क्या है? (What is Krishnabeej in Hindi?)

कृष्णबीज यानि ब्लू मॉर्निंग ग्लोरी को कालादान भी कहते हैं। कच्चीअवस्था में इसके बीजों को खाया जाता है। जो स्वाद में ईषद् मधुर तथा कषाय होते हैं।कालादाना की बेल पतली, लम्बी, हरी तथा सघन, लम्बे, रोमों से बनी होती है। इसके तने पतले, शाखित और बेलनाकार होते हैं।  शरद-ऋतु में फलों के पक जाने पर यह बीज स्वयं नीचे गिर जाते हैं। इन्हीं बीजों को कालादाना कहते हैं। काला दाना की मुख्य प्रजाति के अतिरिक्त इसकी एक और प्रजाति (Ipomoea pes-tigridis Linn.) होती है। जिसका प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है। इसको अन्तकोटर श्वेतपुष्पी, करपत्री कृष्णबीज भी कहते हैं। यह साल में एक बार उगने वाली, आरोही या जमीन पर फैलने वाली लता होती है। पौधे का पूरा भाग चमकीले रोमों से ढका रहता है। इसकी जड़ विरेचक गुण संपन्न होती है।

 

अन्य भाषाओं में कृष्णबीज के नाम (Names of Krishnabeej in Different Languages)

कृष्णबीज का वानास्पतिक नाम Ipomoea nil (L.) Roth (आइपोमिया निल) Syn-Ipomoea hederacea Jacq. होता है। इसका कुल  Convolvulaceae (कान्वाल्वुलेसी) होता है और इसको अंग्रेजी में Blue Morning glory (ब्लू मार्निंग ग्लोरी) कहते हैं। चलिये अब जानते हैं कि कृष्णबीज और किन-किन नामों से जाना जाता है। 

Sanskrit-कृष्णबीज, श्यामाबीज, श्यामलबीजक, अन्तकोटरपुष्पी, कालाञ्जनिका; 

Hindi-कालादाना, झारमरिच, मरिचई; 

Odia-कानिखोंडो (Kanikhondo); 

Urdu-कालादानाह (Kaladanah); 

Kannada-गौरीबीज (Gowribija);गुजराती-कालादाणा (Kaladana), काल्कुम्पन (Kalkumpan);

 Tamil-काक्कटन (Kakkatan), सिरीक्की (Sirikki); 

Telegu-कोल्लि (Kolli); 

Bengali-कालादाना (Kaladana), मिर्चई (Mirchai), नीलकल्मी (Nilkalmi); 

Nepali-सिंथुरी (Sinthuri); 

Punjabi-बिल्दी (Bildi), केर (Ker); 

Marathi-कालादाणा (Kaladana), नीलपुष्पी (Nilpushpi), नीलयेल (Nilyel); 

Malayalam-तलियारि (Taliyari)।

English-मॉर्निंग ग्लोरी (Morning glory), इण्डियन जलाप (Indian jalap), जापानीज मार्निंग ग्लोरी (Japanese morning glory); 

Arbi-हब्बुन्नील (Habbunnil); 

Persian-तुकमिनिल (Tukminil)।

 

कृष्णबीज का औषधीय गुण (Medicinal Properties of Krishnabeej in Hindi)

कृष्णबीज की दो प्रजातियां होती है, एक कालादान और दूसरा कृष्णबीज। 

कालादान 

यह प्रकृति से कड़वा होता है। इसके अलावा यह पाचक, कृमि को निकालने में सहायक, विरेचक, सूजन कम करने वाला, रक्त को शुद्ध करने वाला, बुखार के लक्षणों को दूर करने वाला, वेदना कम करने वाला, तथा मूत्र संबंधी रोगों के इलाज में सहायक होता है। इसके बीज सूजन, कब्ज, खुजली, पेट फूलने की बीमारी, सांस की बीमारी, खांसी, जलोदर, सिरदर्द, नासास्राव, रक्त में वात की समस्या, बुखार, वातविकार, प्लीहा या स्प्लीन , श्वित्र या ल्यूकोडर्मा, खुजली, कृमि, खाने की इच्छा में कमी, संधिविकार तथा जोड़ो के दर्द को कम करने में सहायक होता है। इसके अलावा पूरा पौधा कैंसररोधी गुणों वाला होता है। 

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करपत्री कृष्णबीज

इसका प्रयोग अर्श या पाइल्स, रोमकूप के सूजन तथा फोड़ों की चिकित्सा में किया जाता है। इसके अलावा जड़ का प्रयोग विरेचनार्थ किया जाता है। और पत्तों को पीसकर पुटली की तरह बनाकर लगाने से व्रण या अल्सर, दद्रु या खाज-खुजली आदि त्वचा संबंधी रोगों में लाभप्रद होता है। 5 मिली ताजे पञ्चाङ्ग के रस को पिलाने से अलर्क या रैबीज़ रोग के इलाज में फायदेमंद होता है। करपत्री कृष्णबीज के सूखे पत्ते को धूम्रपान की तरह सेवन श्वासनलिका संबंधी समस्या में आराम मिलता है। बीजों को पीसकर नारियल तेल में मिलाकर त्वचा में लगाने से त्वचा के विकारों का शमन होता है तथा व्रण में लगाने से शीघ्र ही व्रण या घाव ठीक हो जाता है।

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कृष्णबीज के फायदे और उपयोग (Uses and Benefits of Krishnabeej in Hindi) 

कालादान या कृष्णबीज देखने में जितना मनमोहक होता है उतना ही औषधी के रूप में कौन-कौन से बीमारियों के लिए फायदेमंद है,चलिये इसके बारे में आगे जानते हैं-

 

गले में दर्द होने पर कालादान का उपयोग फायदेमंद (Kaladaan Beneficial to Treat Sore throat in Hindi)

sore throat

कालादाना का काढ़ा बनाकर गरारा करने से मुखपाक या गले के दर्द या मुँह संबंधी रोगो से निजात पाने में आसानी होती है। 

 

उदावर्त रोग में लाभकारी कालादान (Benefit of Kaladaan in Vertical Disease in Hindi)

उदावर्त रोग में मल-मूत्र का निष्कासन सही तरह से नहीं हो पाता है। इसके लिए कालादान का सेवन इस तरह से करने पर जल्दी आराम मिलता है।

1 ग्राम काला दाना को घी में भूनकर, चूर्ण करके उसमें मिश्री मिलाकर सेवन करने से सुखपूर्वक विरेचन होकर उदावर्त में लाभ होता है।

-100 ग्राम सनाय पत्र में 50 ग्राम हरीतकी, 25-25 ग्राम बड़ी इलायची, कालादाना, द्राक्षा या किशमिश तथा गुलकंद, 100-100 ग्राम मिश्री तथा घी मिलाकर 30 लड्डू बनाकर, रात में 1 लड्डू सुखोष्ण जल (गुनगुना पानी) के साथ सेवन करने से विरेचन होता है। (तब तक विरेचन होता रहता है, जब तक की ठंडे पदार्थों का सेवन न किया जाए।) इससे मलबद्धता तथा मलावरोधजन्य बीमारियों का इलाज होता है। 

 

कब्ज की समस्या से दिलाये राहत कालादान (Kaladaan Beneficial to Treat Constipation in Hindi)

अगर कब्ज की समस्या से परेशान रहते हैं तो इससे राहत पाने के लिए कालादान का सेवन फायदेमंद हो सकता है। कालादाना के 20 ग्राम चूर्ण को 500 ग्राम मिश्री की चासनी में मिलाकर, जमाकर रख लें। रात को सोते समय 1-2 ग्राम की मात्रा में गुनगुने जल या दूध के साथ सेवन करने से सुबह मल त्याग करना आसान हो जाता है तथा विबन्ध या कब्ज में लाभ होता है।

 

लीवर और स्प्लीन के सूजन को कम करने के इलाज में फायदेमंद कालादान (Kaladaan Beneficial to Treat Liver and Spleen Inflammation in Hindi)

1-2 ग्राम कालादाना बीज चूर्ण को बादाम तेल में भूनकर समान मात्रा में सोंठ मिलाकर सेवन करने से यकृत्प्लीहा यानि लीवर और स्प्लीन के सूजन को कम करने में लाभ होता है।

 

रूमेटाइड अर्थराइटिस के दर्द को कम करने में फायदेमंद कालादान (Kaladaan Beneficial to Get Relief from Rhumatoid arthritis in Hindi)

arthritis

10 ग्राम काला दाना को 200 मिली सर्षप तेल में पकाकर, छानकर तेल की मालिश करने से आमवात या जोड़ो के दर्द में लाभ होता है। इस तैल को कण्डु या खुजली तथा व्रण में लगाने से भी लाभ होता है।

 

कुष्ठ के इलाज में फायदेमंद कालादान (Kaladaan Beneficial to Treat Leprosy in Hindi)

कुष्ठ के लक्षणों से राहत पाने के लिए कालादान को पीसकर लेप करने से श्वित्र तथा कुष्ठ में लाभ होता है।

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त्वचा संबंधी रोगों से राहत पाने में फायदेमंद कालादान (Kaladaan Beneficial in Skin Diseases in Hindi)

त्वचा संबंधी तरह-तरह के समस्याओं में कालादान का इस्तेमाल फायदेमंद होता है-

-कालादाना तथा अकरकरा जड़ को समान मात्रा में लेकर, पीसकर शरीर के काले या सफेद दागों में लगाने से लाभ होता है।

-50 ग्राम कालादाना को 400 मिली जल में पकायें और जब आधा शेष बचे तो छानकर रख लें। इसे जल में मिलायें इससे स्नान कराने से कण्डु या खुजली, दद्रु आदि चर्मरोगों दूर होता है तथा सिर के जुंए भी नष्ट होते हैं।

 

बुखार के इलाज में फायदेमंद कालादान (Fever Beneficial to Treat Fever in Hindi)

Fever

अगर बार-बार बुखार आता है तो 1 ग्राम कालादाना चूर्ण में 1 ग्राम काली मरिच चूर्ण तथा 500 मिग्रा अतीस चूर्ण मिलाकर सुबह शाम  गुनगुने जल के साथ सेवन करने से ज्वर कम होता है।

 

कालादान का उपयोगी भाग (Useful Parts of Kaladaan)

आयुर्वेद के अनुसार कालादान का औषधीय गुण इसके इन भागों को प्रयोग करने पर सबसे ज्यादा मिलता है-

-जड़ एवं 

-बीज।

 

कालादान का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए (How to Use Kaladaan in Hindi)

यदि आप किसी ख़ास बीमारी के घरेलू इलाज के लिए कालादान का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही इसका उपयोग करें। चिकित्सक के सलाह के अनुसार 300-500 मिग्रा बीज,1-3 ग्राम बीजचूर्ण, 250-500 मिग्रा सत् ले सकते हैं।

 

कालादान सेवन के साइड इफेक्ट (Side Effect of Kaladaan)

कालादाना को अधिक मात्रा में प्रयोग करने पर क्षोभक विष की तरह कार्य करता है।

सावधानी-

-कालादाना का उपयोग गर्भावस्था में नहीं करना चाहिए।

-जिसकी आंतें कमजोर हों उनको कालादाना का सेवन नहीं करना चाहिए।

-कालादाना का प्रयोग जलाप के प्रतिनिधि द्रव्य के रूप में होता है।

-काला दाना के बीज तथा जड़ तीव्र विरेचक तथा दर्द देने वाली होती है। अत: सावधानीपूर्वक या चिकित्सकीय परामर्शानुसार ही इसका प्रयोग करना चाहिए (यदि काला दाना को सेवन करने से अत्यधिक अतिसार हो तथा बन्द न हो रहे हों तो ठंडा पानी पिलाने से और कतीरा गेंद देने से लाभ होता है)

-बीजों में उपस्थित हेलूसिनोजन (LSD Hallucinogen) का उपयोग मानसिक-विकारों के उपचार में किया जाता है।

 

कालादान कहां पाया या उगाया जाता है (Where is Kaladaan Found or Grown in Hindi)

समस्त भारत में 1800 मी की ऊंचाई तक प्राय: सड़क के किनारे, पेड़ों व झाड़ियों पर यह पाया जाता है।