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Motha: मोथा (मुस्तक) के हैं कई जादुई लाभ- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

Contents

मोथा का परिचय (Introduction of Motha)

क्या आप जानते हैं कि मोथा क्या है और मोथा का इस्तेमाल किस काम में किया जाता है? मोथा एक तरह की घास (cyperus rotundus in hindi) है जो किसानों के लिए सिर दर्द बनी रहती है। मोथा घास खेती के लिए अभिशाप मानी जाती है क्योंकि यह इतनी तेजी से फैलती है कि खेतों में लगी फसल को बर्बाद कर देती है। अधिकांश लोग मोथा को बेकार ही मानते हैंं, लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है। असलियत यह है कि मोथा आपके लिए वरदान की तरह है। जी हां, जिस मोथा (Motha Grass) को खेतों की फसल को नष्ट करने वाली घास माना जाता है वह एक औषधि भी है। मोथा का उपयोग रोगों को खत्म करने के लिए किया जाता है।

Cyperus Rotundus benefits

आयुर्वेद में मोथा (muthanga) के बारे में काफी अच्छी जानकारियां बताई गई हैं। बुखार, जलन, पेचिश या दस्त, चर्म रोग आदि में मोथा के प्रयोग का काफी वर्णन प्राप्त होता है। तमिलनाडू में मोथा का प्रयोग (Korai Kizhangu Uses) अनेक बीमारियों में किया जाता है। वहाँ मोथा का चूर्ण कोराई किझांगू पाउडर (Korai Kizhangu Powder) के नाम से बाजार में भी बिकता है। यह सूअर का प्रिय भोजन है।

मोथा क्या है (What is Motha in Hindi?)

मोथा घास (Motha Ghas) को संस्कृत साहित्य में मुस्ता कहा जाता है। वैदिक साहित्य में वशीकरण और चिकित्सा के लिए मुस्ता का प्रयोग मिलता है। मोथा एक 10-75 सेमी लम्बी कई वर्षों तक जीवित रहने वाली घास है। इसकी जड़ काले रंग की लकड़ी के समान, गोल आकार की और सुगंधित होती है। जड़ लगभग 1.2 सेमी लम्बी एवं 0.8-2.5 सेमी व्यास की प्रकंदयुक्त तथा धागे के समान रोयों से ढंकी होती है। मोथा की जड़ में लगे प्रकंद (Motha Rhizome) ही चिकित्सकीय प्रयोग में आते हैं।

मोथा (muthanga) की कई प्रजातियाँ हैं। इसकी एक प्रजाति नागरमोथा भी आयुर्वेद की एक प्रसिद्ध जड़ी है। इन दोनों के अतिरिक्त इसकी एक और प्रजाति धान्यमुस्तक भी है, जिसका लैटिन भाषा में नाम Cyperus iria Linn. है। इसका प्रयोग भी चिकित्सा के लिए किया जाता है। धान्यमुस्तक रेशेदार जड़ वाला, चिकना, एक वर्ष की आयु वाला, पत्तेदार पौधा (muthanga plant) होता है। इसका तना त्रिकोणीय होता है। पत्तियां तनों से छोटी होती हैं। पत्तियों का अगला भाग नुकीला होता है। इसकी जड़ का प्रयोग चिकित्सा के लिए किया जाता है। इसकी जड़ शरीर को बल और उत्तेजना देने वाली तथा खून का बहाव रोकने वाली होती है।

अनेक भाषाओं में मोथा के नाम (Name of Motha in Different Languages)

मोथा (cyperus rotundus in hindi)  का वानस्पतिक यानी लैटिन भाषा में नाम साइपीरस रोटन्डस (Cyperus rotundus Linn. Syn-Pycreus rotundus Linn. Hayek) है। यह साइपरेसी (Cyperaceae) कुल का पौधा है। अंग्रेजी तथा विविध भारतीय भाषाओं में इसका नाम निम्नानुसार है।

Cyperus Rotundus in –

  • Hindi (cyperus rotundus hindi name) – मोथा
  • English – Nutgrass (नटग्रास), कोकोग्रास (Cocograss), पर्पल नटसेज (Purple nutsedge) 
  • Sanskrit – मुस्ता, मुस्तक, वारिद
  • Urdu – सद कुफी (Sad kufi)
  • Oriya – मुथा (Mutha)
  • Assamese – केयाबोन (Keyabon)
  • Kannada – भद्रहुल्लु (Bhadarjullu), कोरनारि (Kornari)
  • Gujarati – मोथा (Motha)
  • Tamil (cyperus rotundus in tamil) – कोग्इकिलंगु (Kogeikilangu), कोराई किझांगू (Korai Kizhangu)
  • Telugu – तुंगमुस्ते (Tungmuste), भद्रमुस्ते (Bhadarmuste)
  • Bengali – मोथा (Motha), मुथा (Mutha)
  • Nepali – कसुर (Kasur) 
  • Marathi – मोथा (Motha), बिम्बल (Bimbal)
  • Malayalam – मुट्टान्ना (Muttanna), करीमुट्टन (Karimuttan)
  • Manipuri – शेम्बान्ग कोउथुम (Shembang kouthum)
  • Arabic – सुआद (Suad)
  • Persian – मुष्के जर्मी (Mushke jarmi)

मोथा के औषधीय प्रयोग से लाभ (Cyperus Rotundus Benefits and Uses in Hindi)

मोथा या मोठा(cyperus rotundus in hindi) स्वाद में कसैला, तीखा तथा कड़ुआ, पचने पर ठंडा, पचने में हल्का और फाइबरयुक्त होता है। यह भूख बढ़ाता है और भोजन को पचाता भी है। यह प्यास को समाप्त करता है, चर्मरोगों विशेषकर खुजली को नष्ट करता है, माताओं के दूध को शुद्ध करता है और योनी के संक्रमण को समाप्त करता है। इतने गुणकारी मोथा (motha grass) के विभिन्न रोगों में प्रयोग की विधि, सेवनयोग्य मात्रा आदि का विवरण यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा हैः-

आँखों की बीमारी में करें मोथा का प्रयोग (Benefits of Motha to Cure Eye Problems in Hindi)

motha root

मोथा के जड़ के प्रकन्द (Motha Rhizome) को घी में भूनकर पानी से घिस लें। इसे रात को आँखों में काजल की तरह लगाएं। इससे नेत्राभिष्यंद यानी कन्जेक्टिवाइटिस तथा आँखों के अन्य रोगों में काफी लाभ होता है।

और पढ़े: आंखों की बीमारी में रजः प्रवर्तिनी वटी के फायदे

मोथा के सेवन से खाँसी का इलाज (Motha Benefits in Fighting with Cough in Hindi)

खाँसी होने के दो कारण होते हैं। कफ के कारण तो खाँसी होती है, कई बार अनियमित खान-पान से पित्त यानी एसिडिटी बढ़ती है और उससे भी खाँसी होती है। बाजार में उपलब्ध सामान्य कफ सिरप पित्तजन्य खाँसी को ठीक नहीं कर पाते। मोथा (muthanga) का प्रयोग दोनों ही प्रकार की खाँसी में लाभदायक होता है।

  1. शक्कर, सफेद चंदन, द्राक्षा यानी मुनक्का, मधु, आँवला, नीलकमल, मोठा (motha grass) और काली मिर्च का अवलेह यानी चटनी बना लें। इस 5 ग्राम अवलेह में घी मिलाकर सेवन करने से खाँसी ठीक होती है।
  2. पिप्पली, मोथा, मुलेठी, द्राक्षा, मूर्वा तथा सोंठ से निर्मित अवलेह (5 ग्राम) में घी और मधु मिला कर सेवन करने से पित्तज विकार के कारण होने वाली खांसी ठीक होती है।
  3. सोंठ, हरड़ तथा मोथा लें। इन तीनों द्रव्यों का चूर्ण बना लें। 1-3 ग्राम चूर्ण में गुड़ मिलाकर प्रयोग करने से सभी प्रकार के दमा तथा खाँसी में लाभ होता है।

उल्टी रोके मोथा का सेवन (Cyperus Rotundus Benefits to Stop Vomiting in Hindi)

सामान्यतः सर्दियों में कफ बढ़ने से कभी बार उल्टी होने लगती है। मोथा (rhizome in hindi) तथा कर्कट शृंगी के (1-2 ग्राम) चूर्ण में मधु मिला कर सेवन करने से बढ़े हुए कफ के कारण होने वाली उलटी बंद होती है।

पेट के रोगों को ठीक करे मोथा का उपयोग (Cyperus Rotundus Benefits in Cure Stomach Diseases in Hindi)

मोथा (rhizome in hindi)पेट के रोगों की अच्छी दवा है। इसके सेवन से पेट के अधिकांश रोग ठीक हो जाते हैं। इसलिए कई लोग इसे अमृत बूटी भी कहते हैं।

  1. 50 ग्राम मोथा (motha grass) को 400 मिली दूध तथा 1200 मिली जल में (दूध शेष रहने तक) उबालकर ठण्डा कर लें। इस मिश्रण को 50 मिली की मात्रा में पीने से आँवयुक्त पेचिश तथा पेटदर्द ठीक होता है।
  2. मोथा तथा पित्तपापड़ा को बराबर मात्रा में लेकर उसका काढ़ा बना लें। 10-30 मिली काढ़े को पीने से आमदोष यानी पेट में जमा अनपचे भोजन का पाचन हो जाता है और इससे पेट की सभी समस्याएं ठीक होती हैं।
  3. मोथा के महीन पेस्ट यानी चटनी में बराबर मात्रा में दूध मिलाकर एक चौथाई शेष रहने तक पकाएं। ठंडा होने पर इसमें मधु मिलाकर मात्रानुसार सेवन करने से कफ तथा रक्तदोष के कारण होने वाले पेचिश में लाभ होता है।
  4. दो किग्रा मोथा को 640 मिली दूध तथा जल में मिला ले। दूध शेष रहने तक पका कर फिर ठंडा करके उसका दही जमा लें। इस दही का सेवन करने से पेचिश तथा पेट की अन्य समस्याएं ठीक होती हैं।
  5. मोथा, मोचरस, लोध्र, धाय का फूल, बेलगिरी तथा कुटज के बीज को पीसकर चूर्ण बना लें। इस 1-2 ग्राम चूर्ण को गुड़ तथा छाछ में मिलाकर सेवन करने से तेज पेचिश में लाभ होता है।
  6. मोथा (mustaka) को पानी में पीसकर चटनी बना लें। इस चटनी की 1-2 ग्राम मात्रा में मधु एवं शक्कर मिलाकर पीने से पेचिश ठीक होता है।
  7. मोथा के 10-30 मिली काढ़े को ठण्डा करके मधु मिलाकर पीने से पित्त यानी एसिडिटी तथा रक्तदोष के कारण होने वाले पुराना पेचिश ठीक होता है।
  8. मोथा (rhizome in hindi)तथा इन्द्रयव को 50-50 ग्राम लेकर महीन पीस लें। इसे 400 मिली पानी में डाल कर चौथाई शेष रहने तक उबालें। इस काढ़े में 10 ग्राम मधु मिलाकर पीने से खूनी पेचिश में लाभ होता है।
  9. मोथा आदि द्रव्यों से बने बृहद गंगाधर चूर्ण लें। चूर्ण की 1-3 ग्राम मात्रा में छाछ, मधु, चावल के धोवन तथा गुड़ के साथ करने से कब्ज, दस्त तथा पेचिश में लाभ होता है।
  10. 1-3 ग्राम मोथा को जल के साथ सेवन करने से दस्त के कारण लगने वाली प्यास मिटती है।

और पढ़े: पेट की समस्या के घरेलू उपचार

गठिया के दर्द में फायदेमंद मोथा का प्रयोग (Cyperus Rotundus Benefits in Gout Treatment in Hindi)

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रोजाना नियमित रूप से मोथा, आँवला तथा हल्दी को समान मात्रा में मिलाकर काढ़ा बनायें। 10-30 मिली काढ़े में मधु मिलाकर पीने से सामान्य तथा कफयुक्त गठिया में लाभ होता है। मोथा (mustaka) के कन्द को पीसकर लगाने से गठिया के दर्द में लाभ (motha grass benefits in hindi)होता है।

कुष्ठ रोग मिटाए मोथा का उपयोग (Benefits of Motha in Leprosy in Hindi)

1-2 ग्राम मुस्तादि चूर्ण (बराबर भाग नागरमोथा, व्योष, त्रिफला, मंजिष्ठा, देवदारु, सप्तपर्ण, दशमूल, नीम, इंद्रायण, चित्रक, मूर्वा तथा 9 भाग सत्तू) को विषम मात्रा में मधु और घी के साथ रोज सेवन करे। इससे कुष्ठ, सूजन, कब्ज, घाव, बवासीर आदि रोग ठीक होते हैं।

काले तिलों में बाकुची चूर्ण और मोथा चूर्ण को मिलाकर गुड़ के साथ सेवन करने से कुष्ठ रोग ठीक होता है।

बाहरी घाव-चोट को ठीक करे मोथा का प्रयोग (Uses of Motha in Wounds Healing in Hindi)

मोथा को पीसकर, शतधौतघृत मिला लें। इसे बाहरी चोट और उसके कारण हुए घाव पर लेप करें। इससे घाव शीघ्र भर जाता है।

मोथा की जड़ को पीसकर लगाने से कटे-फटे, घाव, कुष्ठ तथा खुजली रोग में लाभ होता है।

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अनियमित मासिक धर्म में मोथा का उपयोग (Motha Beneficial in Irregular Periods in Hindi)

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मोथा का प्रयोग महिलाओं की मासिक धर्म संबंधी समस्याओं जैसे कष्टार्तव में फ़ायदेमंद होता है क्योंकि एक रिसर्च के अनुसार मोथा का प्रयोग मासिक धर्म की अनियमिताओं को ठीक करने में मदद करता है। 

 

सूजन और दर्द दूर करने में मोथा का उपयोग फायदेमंद (Motha Beneficial to Treat Inflammation and Pain in Hindi)

शोथ या सूजन एवं दर्द में मोथे का उपयोग फायदेमंद है क्योंकि इसमें शोथहर और दर्द निवारक गुण पाये जाते है। इसलिए इसके उपयोग से जल्दी आराम मिलता है। 

प्रसूता स्त्री के स्तन्य विकारों में मोथा फायदेमंद (Motha Beneficial after Delivery Related Breast Issues in Hindi)

मोथा का सेवन प्रसूता स्त्री के लिए फ़ायदेमंद हो सकता है क्योंकि एक रिसर्च के अनुसार स्तन्य विकारों को दूर करने में सहायता करता है। इसके  साथ ही आयुर्वेद चिकित्सा में इसका प्रयोग स्तन्य वृद्धि के लिए भी किया जाता है। 

पेट की कृमियों के इलाज में फायदेमंद मोथा (Motha Beneficial in Worm Infestation in Hindi)

अगर आप उदर कृमियों से परेशान है तो आपके लिए मोथा का प्रयोग फायदेमंद होता है क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार मोथा में कृमिघ्न का गुण पाया जाता है, जिसके कारण पेट से कृमियों को निकालने में मदद मिलती है। 

बुखार दूर करे मोथा का सेवन (Motha Uses in Fighting with Fever in Hindi)

Fever

  1. बुखार में मोथा (nutgrass) तथा पित्तपापड़ा का प्रयोग करना काफी लाभकारी होता है। मोथा, पित्तपापड़ा, खस, चन्दन, सुगन्धवाला तथा सोंठ के काढ़े को 10-20 मिली की मात्रा में पीने से बुखार ठीक होता है।
  2. मोथा (motha plant) तथा पित्तपापडा के बराबर भाग का काढ़ा (10-30 मिली) अथवा देशी चिरायता, कालमेघ, गिलोय, मोथा तथा सोंठ का काढ़ा (10-30 मिली) या पीने से बुखार में लाभ होता है। काढ़ा न बनाना चाहें तो उपरोक्त पदार्थों बारीक कूट को छह गुणा पानी में रात भर भिगो कर रख दें। सुबह इसे छान लें, इस प्रकार तैयार पानी को शीतकषाय या हिम कहते हैं। इस शीतकषाय पानी को भी 10-30 मिली की मात्रा में सेवन करने से बुखार उतर जाता है।

और पढ़ें: कालमेघ के फायदे

  1. मोथा, जवासा, नेत्रबाला तथा कुटकी का काढ़ा बनाकर 10-30 मिली की मात्रा में सेवन करने से बुखार में लाभ होता है।
  2. गिलोय, नीम, पटोलपत्र, नागरमोथा, हरड़, बहेड़ा, आँवला तथा धनिया इनको समान मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। इस 10-30 मिली काढ़े में शहद तथा शक्कर मिलाकर सेवन करने से बुखार समाप्त हो जाता है।
  3. कमलनाल, आँवला, चन्दन, गिलोय, मोथा (nutgrass), पित्तपापड़ा तथा धनिया को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े की 10-30 मिली मात्रा में शहद अथवा शक्कर मिलाकर सेवन करने से बुखार में लाभ होता है।
  4. समभाग सेंधा नमक, मोथा, बड़ी कटेरी तथा मुलेठी के चूर्ण का नस्य लेने (नसवार की तरह नाक में डालने या सूँघने से) से बुखार के कारण होने वाली बेहोशी समाप्त होती है।
  5. गिलोय, सोंठ, मोथा तथा पर्पट का काढ़ा बना लें। 10-30 मिली काढ़े को पीने से पित्त के कारण होने वाले बुखार में लाभ होता है। कफ के कारण होने वाले बुखार में सोंठ, वासा तथा मोथा के काढ़े को पीएं। अवश्य लाभ होगा।
  6. गुडूची, मोथा (motha plant) तथा आँवला से निर्मित क्वाथ (10-30 मिली) में मधु मिलाकर पीने से विषम बुखार यानी मलेरिया में लाभ होता है।

और पढ़ें: बुखार में गिलोय का उपयोग

नशा उतारे मोथा का प्रयोग (Benefits of Motha in Hangover in Hindi)

200 मिली जल में, 5 ग्राम मोथा (nutgrass) तथा पित्तपापड़ा डालकर पकाएं। ठंडा होने पर छानकर पीने से तेज चढ़ा नशा उतर जाता है।

इस्तेमाल के लिए मोथा के उपयोगी हिस्से (Beneficial Parts of Motha)

मोथा की जड़ों में लगा प्रकंद उपयोगी होता है।

मोथा के सेवन की मात्रा (Motha Dosages)

काढ़ा – 10-30 मिली।

चूर्ण 1-3 ग्राम

अधिक लाभ के लिए चिकित्सक के परामर्शानुसार मोथा का इस्तेमाल करें।

मोथा कहाँ पाई या उगाई जाती है (Where is Motha Found or Grown?)

मोथा घास (muthanga plant) संपूर्ण भारत में नमी तथा जलीय भू-भागों में प्रचुरता से दिखाई देता है। नागरमोथा की खेती लगभग 1800 मी की ऊँचाई तक पाया जाता है। इसकी खेती नहीं की जाती क्योंकि यह खरपतवार की तरह स्वयं पैदा हो जाता है और फिर इसे समाप्त करना कठिन होता है।