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खेसारी दाल (khesari dal) का नाम शायद बहुत कम लोगो को पता होगा। खेसारी दाल अरहर दाल की तरह ही देखने में लगती है। कहीं-कहीं खेसारी को अरहर दाल में मिलाकर बेचा जाता है। लेकिन इस अनजाने दाल के भी बहुत सारे फायदे हैं जिनके बारे में आप नहीं जानते हैं। इसके गुणों के कारण खेसारी का प्रयोग आयुर्वेद में औषधि के रुप में इस्तेमाल किया जाता है।
खेसारी मीठी, कड़वी और प्रकृति से ठंडे तासीर की होती है। यह कफ पित्त को कम करने वाली, शक्ति बढ़ाने वाली, खाने की इच्छा बढ़ाने वाली, हड्डियों को बल देने वाली, दर्द, थकान, सूजन, जलन, हृदय का रोग तथा अर्श या बवासीर जैसे बहुत रोगों के लिए लाभकारी होती है। खेसारी का साग खाने में रुचि बढ़ाने वाला और पित्त कफ दूर करने वाला होता है। खेसारी के बीज पौष्टिक, थोड़े कड़वे, प्रकृति से ठंडे तथा कमजोरी दूर करने वाले होते हैं। खेसारी के बीज का तेल विरेचक गुण वाले यानि पेट से मल या अवांछित पदार्थ निकालने में सहायक होते हैं।
खेसारी शाखा-प्रशाखायुक्त,तनायुक्त शाकीय पौधा होता है। इसके बीजों की दाल बनाकर खाई जाती है।
खेसारी का वानास्पतिक नाम Lathyrus sativus Linn. (लैथाइरस सैटाइवस) Syn-Lathyrus asiaticus (Zalkind) Kudr होता है। खेसारी Fabaceae (फैबेसी) कुल का होता है। खेसारी का अंग्रेजी नाम Chickling Vetch (चिक्लिंग वेच) कहते है, लेकिन भारत के विभिन्न प्रांतों में भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। जैसे-
संस्कृत-त्रिपुट, सण्डिक, कलाय;
हिन्दी-खेसारी, लतारी, तिऊरी, कसार, खिसारी, कसूर, मटरभेद;
उड़िया-खेसारा (Khesara);
गुजराती-लांग(Lang), लंग (Lung), लैंगू (Langue);
बंगाली-खेसारी (Khesari), कसूर (Kassur);
नेपाली-खेसारी (Khesari), केसारी (Kesari);
पंजाबी-किसारी (Kisari), चुराल (Chural), करास (Karas);
मराठी-लाग (Laag), लाख (Lakh)।
अंग्रेजी-व्हाईट वेच ग्रासपी (White vetch grasspea), डॉगटूथ पी (Dogtooth pea), चिक्लिंग पी (Chickling pea);
अरबी-इवुल बकर (Ivul bakar), खलज (Khalaj)
फारसी-मासंग (Masang)।
आयुर्वेद में खेसारी दाल के पौष्टिकता के आधार पर इसके औषधीय गुण अनगिनत होते हैं। चलिये जानते हैं कि खेसारी दाल किन-किन बीमारियों के लिए फायदेमंद होता है।
आँख संबंधी बीमारियों में बहुत कुछ आता है, जैसे- सामान्य आँख में दर्द, रतौंधी, आँख लाल होना आदि। इन सब तरह के समस्याओं में खेसारी से बना घरेलू नुस्ख़ा बहुत काम आता है। खेसारी के पत्तों को उबालकर साग के रुप में सेवन करने से आँख की बीमारी दूर होती है।
अगर बहुत देर तक पढ़ने या कंप्यूटर पर काम करने से आँखों में दर्द या जलन होता है तो खेसारी का इस्तेमाल ऐसे करने से लाभ मिलता है। खेसारी के ताजे फल के रस को लगाने से आँखों का सूजन और जलन कम होता है।
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पेप्टिक अल्सर में दर्द से आराम दिलाता है खेसारी दाल। भुने हुए खेसारी बीज को कलाय सूप के साथ सेवन करने से जीर्ण परिणामशूल यानि पेप्टिक अल्सर में लाभ होता है।
कभी-कभी हाथ या पैरों में गांठ पड़ जाती है और ठीक होने का नाम नहीं लेती। खेसारी के बीजों को पीसकर पोटली की तरह बनाकर गांठ में बांधने से गांठ पककर फूट जाता है तथा पीब निकल जाता है।
अगर कॉज़्मेटिक के इस्तेमाल से या प्रदूषण के कारण त्वचा रूखी हो रही है तो खेसारी के बीज के चूर्ण का प्रयोग करने से त्वचा का रूखापन कम होता है।
आयुर्वेद में खेसारी के पत्ता, बीज एवं बीज तेल का प्रयोग औषधि के लिए किया जाता है।
बीमारी के लिए खेसारी के सेवन और इस्तेमाल का तरीका पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए खेसारी का उपयोग कर रहे हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें।
चिकित्सक के परामर्श के अनुसार-
5-10 ग्राम खेसारी चूर्ण का सेवन कर सकते हैं।
खेसारी के बीज पोषक होते हैं, परन्तु विषाक्त होने के कारण अत्यधिक मात्रा में, अत्यधिक दिनों तक इनका प्रयोग करने से पशुओं तथा मनुष्यों में कलायखञ्ज नामक बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है।
यह भारत के उत्तरी-भागों, बंगाल के मैदानी भागों से उत्तराखण्ड में 1200 मी तक की ऊँचाई पर तथा गेहूँ तथा मटर की फसल के साथ खर-पतवार की तरह पाया जाता है।
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