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पीला कनेर (पीत करवीर) के फायदे और नुकसान : Yellow Oleander (Yellow Kaner) Benefits and Side Effects in Hindi

वानस्पतिक नाम : Thevetia peruviana (Pers.) Schum. (थिवेटिआ पेरूवियाना)

Syn-Thevetia neriifolia Juss. ex DC., Cascabela thevetia (Linn.) Lippold

कुल : Apocynaceae (ऐपोसाइनेसी)

अंग्रेज़ी नाम : Yellow oleander (येलो ओलिएन्डर)

संस्कृत-पीतöकरवीर, दिव्य-पुष्प; हिन्दी-पीला कनेर; उड़िया-कोनयार फूल (Konyar phul); कन्नड़-कडुकासी   (Kadukasi); गुजराती-पीली कनेर (Pili kaner); तेलुगु-पच्चागन्नेरु (Pachchaganeru); तमिल-पचैयलरि (Pachaiyalari); बंगाली-कोकलाफूल (Koklaphul), कोकीलफूल (Kokilphul), कलके फूल (Kalke phul); नेपाली-पीलो कनेर (Pelo kaner); मराठी-पिंवलकण्हेर (Pivalakanher); मलयालम-पच्चारली (Pachchaarali)।

अंग्रेजी-एक्जाइल ट्री (Exile tree), लक्की नट ट्री (Lucky nut tree)

परिचय

कनेर के पौधे भारतवर्ष में मंदिरों, उद्यानों और गृहवाटिकाओं में फूलों के लिए लगाए जाते हैं। इसकी दो प्रजातियां पायी जाती हैं, श्वेत और पीली कनेर। इस पर वर्ष-पर्यन्तफूल आता है। श्वेत और पीली कनेर जहां सात्विक् भाव जगाती है, वहीं लाल (गुलाबी) कनेर को देखकर ऐसा भम होता है कि जैसे यह बसंत और सावन का मिलन तो नहीं। पीली कनेर का उल्लेख चरक, सुश्रुत आदि प्राचीन ग्रन्थों में नहीं मिलता है। मध्यकालीन निघंटुओं में जैसे-राजनिघंटु में इसका संक्षिप्त वर्णन प्राप्त होता है।

आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव

पीत करवीर (पीला कनेर)-बाह्यकर्म में यह कुष्ठघ्न, व्रणशोधन, व्रणरोपण तथा शोथहर है। यह कफवातशामक, रक्तशोधक, श्वासहर, ज्वरघ्न, विषम ज्वरशामक, मूत्रल, दीपन, विदाही तथा भेदन है, कनेर की हृदय पर तुंत क्रिया होती है, उचित मात्रा में यह अमृत है, परंतु अधिक मात्रा में लेने पर हृदय के लिए विषाक्त होता है।

करवीर पत्र वामक तथा विरेचक होते हैं। इसकी छाल तिक्त, विरेचक तथा ज्वरघ्न होती है। इसका बीज गर्भस्वाक होता है।

औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि

  1. शिरोवेदना-कनेर के पुष्प तथा आँवले को कांजी में पीसकर मस्तक पर लेप करने से शिरशूल का शमन होता है।
  2. सफेद कनेर के पीले पत्तों को सुखाकर महीन पीसकर जिस ओर पीड़ा हो उसी ओर के नासिकाछिद्र में एक दो बार सुंघाने से छींके आकर सिर दर्द में लाभ होता है।
  3. पालित्य-करवीर तथा दुग्धिका को कूटकर, गोदधि के साथ मिलाकर सिर पर लेप करने से पालित्य (बालों का असमय सफेद होना) तथा इन्द्रलुप्त में लाभ होता है।
  4. दंतशूल-सफेद कनेर की डाली से दातुन करने से हिलते हुए दांत मजबूत होते हैं और दंतशूल का शमन होता है।
  5. हृदय शूल-100-200 मिग्रा कनेर मूल की छाल को भोजन के पश्चात् सेवन करने से हृदय वेदना का शमन होता है।
  6. कामेद्रिय-शैथिल्य-10 ग्राम सफेद कनेर की जड़ को पीसकर 20 ग्राम घी में पकाएं, फिर ठंडा करके कामेन्द्रिय पर मालिश करने से कामेन्द्रिय की शिथिलता दूर होती है।
  7. कनेर के 50 ग्राम ताजे फूलों को 100 मिली मीठे तेल में पीसकर एक हफ्ते तक रख दें। फिर 200 मिली जैतून के तेल में मिलाकर लगाने से कुष्ठ, सफेद दाग, पीठ का दर्द, बदन दर्द तथा कामेन्द्रिय पर उभरी नसों की कमजोरी दूर करने के लिए 2-3 बार नियमित मालिश करें।
  8. उपदंश-सफेद कनेर के पत्तों के क्वाथ से उपदंश के घावों को धोने से तथा सफेद कनेर की जड़ को पानी के साथ पीसकर उपदंश के घावों पर लगाने से लाभ होता है। (पीठ के निचले हिस्से में दर्द से छुटकारा पाने के घरेलू उपाय)
  9. जोड़ों की पीड़ा-कनेर के पत्तों को पीसकर तेल में मिलाकर लेप करने से जोड़ों की पीड़ा का शमन होता है।
  10. दाद-सफेद कनेर की मूल छाल को तेल में पकाकर, छानकर लगाने से दद्रु (दाद) तथा अन्य त्वचा विकारों का शमन होता है।
  11. खुजली-कनेर के पत्रों से पकाए हुए तेल को लगाने से खुजली मिटती है अथवा पीले कनेर के पत्ते या फूलों को जैतून के तेल में मिलाकर मलहम बनाकर लगाने से हर प्रकार की खुजली में लाभ होता है।
  12. कुष्ठ-सफेद कनेर की जड़, कुटजफल, करंज फल, दारुहल्दी की छाल और चमेली की नयी पत्तियों को पीसकर लेप करने से कुष्ठ में लाभ होता है।
  13. कनेर के पत्तों का क्वाथ बनाकर स्नानयोग्य जल में मिलाकर नियमित रूप से कुछ समय तक स्नान करने से कुष्ठ रोग में बहुत लाभ होता है।
  14. छाल को पीसकर लेप करने से चर्म कुष्ठ में लाभ होता है।
  15. संक्रामक कीटाणु-कनेर के पत्तों को तेल में पकाकर मालिश करने से जिन जीवों के संक्रमण से रोग उत्पन्न होते हैं, ऐसे कोई भी जीव शरीर पर नहीं बैठते हैं।
  16. कृमि-कनेर के पत्रों को पीसकर तैल में पकाकर, छानकर तैल को व्रण में लगाने से व्रणगत कृमियों का शमन होता है।
  17. कुष्ठ-करवीर मूल से पकाए हुए तैल को लगाने से कुष्ठ में लाभ होता है।
  18. उबटन-सफेद कनेर के फूलों को पीसकर चेहरे पर मलने से चेहरे की कान्ति बढ़ती है।
  19. पक्षाघात-सफेद कनेर की मूल छाल, सफेद गुंजा की दाल तथा काले धतूरे के पत्ते इनको समान मात्रा में लेकर इनका कल्क बना लेना चाहिए, इसके पश्चात्, चार गुने जल में तथा कल्क के समभाग तेल मिलाकर कलई वाले बर्तन में मंदाग्नि पर पकाना चाहिए, जब केवल तेल शेष रह जाए तब कपडे से छानकर इस तेल की मालिश करने से पक्षाघात ठीक हो जाता है।
  20. 50 मिग्रा कनेर की जड़ के महीन चूर्ण को दूध के साथ कुछ हफ्ते तक दिन में दो बार खिलाते रहने से अफीम की आदत छूट जाती है।
  21. सर्पदंश-सर्पदंश में 125 से 250 मिग्रा की मात्रा में या 1-2 करवीर के पत्र थोड़े-थोड़े अंतर पर देते हैं, जिसके कारण वमन होकर विष उतर जाता है।

प्रयोज्याङ्ग : मूल, मूल की छाल, पत्र तथा आक्षीर।

मात्रा : चूर्ण 30-125 मिग्रा अथवा चिकित्सक के परामर्शानुसार।

विषाक्तता :

तीव्र विषाक्त होने के कारण इसका प्रयोग कम मात्रा में चिकित्सकीय परामर्शानुसार करना चाहिए। अत्यधिक मात्रा में इसके प्रयोग से उल्टी, पेट दर्द, बेचैनी, अतिसार, रक्तभाराल्पता, अवसाद तथा हृदयावरोध उत्पन्न होता है।

इसके बीज अत्यन्त विषाक्त होते हैं।

विशेष : पीत कनेर का वर्णन चरक, सुश्रुत आदि प्राचीन ग्रन्थों में प्राप्त नहीं होता, कहा जाता है कि यह अमेरिका से भारत आया। पीत कनेर की श्वेत, पीत आदि पुष्पों के आधार पर कई प्रजातियां पायी जाती है। परन्तु इन सभी प्रजातियों का एक ही वानस्पतिक नाम है। श्वेत कुष्ठ की चिकित्सा के लिए सफेद पुष्प वाले कनेर का बहुतायत से प्रयोग किया जाता है।

आचार्य श्री बालकृष्ण

आचार्य बालकृष्ण, आयुर्वेदिक विशेषज्ञ और पतंजलि योगपीठ के संस्थापक स्तंभ हैं। चार्य बालकृष्ण जी एक प्रसिद्ध विद्वान और एक महान गुरु है, जिनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में आयुर्वेदिक उपचार और अनुसंधान ने नए आयामों को छूआ है।

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