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आयुर्वेद में औषधी के रूप में प्रयोग होने वाले आम्रातक का नाम शायद बहुत कम लोगों को पता होगा लेकिन आमड़ा का नाम बहुत लोगों ने सुना होगा। आमड़ा जामून के आकार का फल होता है जो खाने में खट्टा होता है। आमड़ा का इस्तेमाल न सिर्फ खाने के लिए किया जाता है बल्कि इसके बहुत सारे औषधीय गुण भी है जो कई बीमारियों के इलाज के फायदेमंद है।
आम्रातक कच्चा हो या पका दोनों अवस्थाओं में यह फायदेमंद होता है। जामून के आकार का दिखने वाला यह फल गठिया, गले में दर्द, त्वचा संबंधी रोग जैसे अनेक बीमारियों के इलाज में लाभकारी होता है।
आम्रातक का वानास्पतिक नाम Spondias pinnata (L. f.) Kurz (स्पॉन्डियस पिन्नेटा) Syn-Spondias mangifera Willd.होता है। इसका कुल Anacardiaceae (ऐनाकार्डिऐसी) होता है और इसको अंग्रेजी में Common hog plum (कॉमन हॉग प्लम) कहते हैं। चलिये अब जानते हैं कि आम्रातक और किन-किन नामों से जाना जाता है।
Sanskrit-आम्रातक, पीतन, मर्कटाम्र, कपीतन;
Hindi-अम्बाड़ा, अमड़ा, अमरा, आमड़ा;
Bengali-आमडा(Amada), अम्ना(Amna), आम्ब्रा (Ambra);
Odia-आम्बूला(Ambula), अम्बोटो (Amboto), आम्रातोको (Amratoko);
Kannada-अम्बत्ते (Ambatte);
Marathi-अंबाडा (Ambada), ढोलआंबा (Dholamba), रानआम्बा (Ran amba);
Gujarati-अंबेडा (Ambeda), अम्बाड़ो (Ambado), रनाम्बो (Ranambo);
Tamil-आम्रातकामू (Amratakamu), अम्बालम (Ambalam);
Telugu-अंबालमु (Ambalamu), इवुरू मामीड़ी(Ivuru mamidi), आम्रातकामु (Amratakamu);
Nepali-अमारा (Amara);
Punjabi-अमाड़ा (Amada), बाहाम्ब (Bahamb), अम्बारा (Ambara);
Malayalam-अम्बालम (Ambalam)।
English-इण्डियन हॉग प्लम (Indian hog plum), वाइल्ड मैंगो (Wild mango);
Persian-दरख्ते-मरियम (Darkhte maryam)।
आम्रातक का कच्चा फल-अम्ल यानि एसिडिक प्रकृति का कषाय रसयुक्त तथा वीर्य की प्रकृति गर्म होती है। यह वात को कम करने वाला, कफपित्त और खाने की रूची बढ़ाने वाला, भारी, आमदोष तथा आमवात को कम करने में भी सहायक होता है। आम्रातक का पका फल-प्रकृति से कषाय, मधुर रसयुक्त, शीत-वीर्य का; गुरु तथा स्निग्ध गुण वाला होता है। यह पौष्टिकता देने वाला, हृदय संबंधी रोगों में लाभदायक, लिबीडो यानि सेक्स की इच्छा बढ़ाने वाला , बृंहण (Stoutning therapy), शक्तिवर्द्धक तथा कटने-छिलने, जलन, रक्तदोष, रक्तपित्त तथा दर्द को कम करने में सहायक होता है। आम्रातक के नवीन पत्ते खाने में रूची बढ़ाने वाले, ग्राही या अवशोषित (absorbing) करने वाला, अग्निदीपन यानि हजम करने में सहायक होने के साथ-साथ कफवात को कम करने में भी मदद करता है। इसमें टीबी या तपेदिक को खतरे को कम करने का गुण पाया जाता है।
आम्रातक का नाम जितना दिलचस्प है उतना ही उसका औषधिकारक गुण भी रोगों के लिए बहुत ही असरदार तरीके से काम करता है। चलिये इसके इसी गुण के बारे में विस्तार से जानते हैं।
किसी कारणवश का यदि कान का दर्द कम नहीं हो रहा है तो आम्रातक का आयुर्वेदिक इलाज लाभदायक साबित हो सकता है। 1-2 बूँद आम्रातक पत्ते के रस को कान में डालने से कर्णशूल या कान में होने वाले दर्द से जल्दी राहत मिल सकता है।
अगर आपको बार-बार में गले में दर्द, सूजन, संक्रमण जैसी समस्याएं हो रही हैं तो चिकित्सक के सलाह के अनुसार आम्रातक का सेवन करने से जल्दी राहत मिल सकता है। आम्रातक के 1-2 कच्चे फलों का सेवन करने से कण्ठ विकारों में लाभ होता है।
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आम्रातक के छिलके का हिम अथवा शीतकषाय यानि शरबत बनाकर 15-30 मिली की मात्रा में सेवन करने से अतिसार तथा प्रवाहिका रोग (Dysentry) में फायदा मिलता है। इसके अलावा 1-2 ग्राम आम्रातक पत्ते के चूर्ण का सेवन करने से आमातिसार में लाभ होता है।
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अगर आपके जीवनशैली के अंसतुलन के कारण आपको बार-बार एसिडिटी होने की समस्या हो रही है तो आम्रातक के कोमल फल से बने रस (10 मिली) में शर्करा या चीनी (10 ग्राम) मिलाकर सात दिनों तक सुबह-शाम सेवन करने से अम्लपित्त से राहत मिलती है।
गोनोरिया या सुजाक के जलन या दर्द के कष्ट से निजात पाने के लिए आम्रातक के छाल का काढ़ा बनाकर पीने से तथा उसी काढ़े से प्रभावित स्थान को धोने से पूयमेह में लाभ होता है।
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आज के लाइफस्टाइल में अर्थराइटिस की समस्या किसी भी उम्र में हो जाती है। इसके लक्षणों से राहत पाने के लिए आम्रातक के छिलके को पीसकर पेस्ट बना लें। इससे अभ्यंग या उद्वर्तन करने से यानि पेस्ट को प्रभावित स्थान पर लगाने से आमवात में लाभ होता है।
अगर खुजली, घाव जैसी त्वचा संबंधी समस्याएं हो रही है आम्रातक का प्रयोग फायदेमंद साबित होता है।
आयुर्वेद के अनुसार आम्रातक का औषधीय गुण इसके इन भागों को प्रयोग करने पर सबसे ज्यादा मिलता है-
-पत्ता
-फल
-छाल और
-जड़।
यदि आप किसी ख़ास बीमारी के घरेलू इलाज के लिए आम्रातक का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही इसका उपयोग करें। चिकित्सक के सलाह के अनुसार 5-10 ग्राम चूर्ण और 1 से 3 ग्राम छाल के चूर्ण का सेवन कर सकते हैं।
आम्रातक का मध्यमाकार वृक्ष भारतवर्ष में प्राय सर्वत्र वन्य प्रदेशों में उत्पन्न होता है। भारत के हिमालयी क्षेत्रों में 1600 मी की ऊँचाई तक तथा उत्तर प्रदेश, बिहार, अण्डमान द्वीप समूह, पश्चिमी प्रायद्वीप के पर्णपाती बहुधा शुष्क वनों में पाया जाता है।
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