थाइरॉइड हमारे शरीर में एक हार्मोन पैदा करने वाली ग्रंथि है। यह थाइरॉइड हार्मोन पैदा करती है, थाइरॉइड ग्रंथि को अवटु ग्रंथि भी कहा जाता है, यह ग्रंथियाँ मानव शरीर में पाई जाने वाली सबसे बड़ी अंतस्रावी ग्रन्थियों में से एक है। यह द्विपिंडक रचना हमारे गले में स्वरयंत्र के नीचे क्रिकॉयड कार्टिलेज के लगभग समान स्तर पर स्थित होती है। हमारे शरीर की चयापचय क्रिया में थायरॉइड ग्रन्थि का विशेष योगदान होता है। यह ग्रन्थि थायरोराइन (T4), ट्री-आइडोथाइरोराइन (T3)और थाइरोकैलसिटिनीन नामक हार्मोन स्रावित करती है, यह हार्मोन शरीर के चयापचय दर को प्रभावित करते है तथा शरीर की सभी प्रक्रियाओं और गति को नियंत्रित करते है। सामान्य थाइरॉइड हार्मोन शरीर में वसा, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट के चयापचय को नियंत्रित रखता है और रक्त में शर्करा, कोलेस्ट्रॉल तथा फोस्फोलिपिड की मात्रा को कम करता है।
इसके अलावा यह पेशियों, लैंगिक तथा मानसिक वृद्धि को एवं हृदयगति और रक्तचाप को नियत्रित करता है। इस ग्रन्थि से संबंधित दो प्रकार के विकार होते है।
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यह थाइरॉइड ग्रंथि की अतिसक्रियता के कारण होने वाला रोग है। इसकी अतिसक्रियता के कारण T4 और T3 हार्मोन का आवश्यकता से अधिक उत्पादन होने लगता है। जब इन हार्मोन्स का उत्पादन अधिक मात्रा में होने लगता है तो शरीर ऊर्जा का उपयोग अधिक मात्रा में करने लगता है। इसे ही हाइपरथॉयराइडिज्म (Hyperthyroidism) कहते है। यह समस्या पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक पाई जाती है।
बड़ों की तुलना में बच्चों में थायराइड की समस्या कम पाई जाती है लेकिन यदि बच्चों में यह समस्या हो जाए तो यह ज्यादा गंभीर स्थिति हो जाती है क्योंकि इससे सीधा-सीधा बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक विकास पर असर पड़ता है जन्म के बाद प्रत्येक नवजात की TSH (Thyroid Stimulating harmone) की जाँच जरुरी है। थाइरॉइड हार्मोन के विकार के चलते बच्चों में मानसिक विकलांगता आने का भय रहता है। थायरॉइड ग्रन्थि की अतिसक्रियता यानी बच्चें में हाइपरथॉयराइडिज्म (Hyperthyroidism) बहुत कम देखा जाता है एवं यह एकदम जन्म लिए हुए शिशुओं में होता है इसलिए इसे Neonatal हाइपरथॉयराइडिज्म कहते है।
यह तब होता है यदि माता को पहले से ही ग्रेव डिजीज (Grave’s disease) हो इसके कारण माता के रक्त में मौजूद थाइरो-स्टीमूलेटिंग एंटीबॉडिज (Thyroi-stimulating antibodies) उसके प्लेसेंटर(Placentr) को पार कर के गर्भ शिशु की थायरॉइड ग्रन्थि को उत्तेजित करते है और थायरॉइड हार्मोन का आवश्यकता से अधिक उत्पादन होने लगता है। सामान्य तौर पर यह एंटीबॉडिज(antibodies) कम मात्रा में ही होती है इसलिए इससे शिशु को कोई खास नुकसान नहीं पहुँचता।
इसमें किसी उपचार की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि दो से तीन महीने के अन्दर स्वत ही यह एंटीबॉडिज शिशु के रक्त से हट जाती है। परन्तु कुछ स्थितियों में इन स्टीमूलेटिंग एंटीबॉडीज का स्तर ज्यादा हो जाता है जिस कारण गंभीर थायरोक्सिोकोसीस (Thyrotoxicosis) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस स्थिति में तुरंत ही उपचार की आवश्यकता होती है। शिशुओं में हाइपरथॉयराइडिज्म के लक्षण व्यस्कों के समान पाए जाते है जैसे हृदयगति का सामान्य से अधिक चलना, चिड़चिड़ापन, लाल एवं नमीयुक्त त्वचा होना आदि। कुछ समय चिकित्सा करने पर यह स्थिति सामान्य हो जाती है।
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हाइपरथॉयराइडिज्म होने के पीछे बहुत सारे कारण है एक तो किसी बीमारी के कारण होता है दूसरा जीवनशैली, आहार, आनुवांशिकता के कारण भी होता है।
पहले जानते हैं कि किन रोगों के कारण हाइपरथॉयराइडिज्म होता है-
1- हैशीमोटो डिजीज (Hashimoto’s disease) – यह रोग थायरॉइड ग्रंथि के किसी एक भाग को निष्क्रिय बना देता है।
2- थॉयरोडिटिस (Thyroiditis)– यह थायरॉइड ग्रंथि में सूजन आने के कारण होता है। प्रारम्भ में इसमें थाइरॉइड हार्मोन का अधिक उत्पादन होता है और बाद में इसमें कमी आ जाती है जिस कारण हाइपरथॉयराइडिज्म (Hypothyrodism) हो जाता है। कईं बार यह महिलाओं में गर्भावस्था के बाद देखा जाता है।
3- डायट -आहार में आयोडीन की कमी के कारण हाइपरथॉयराइडिज्म (Hypothyrodism) हो जाता है इसलिए आयोडीन युक्त नमक का इस्तेमाल करना चाहिए।
4- ग्रेव्स डिजीज (Graves-disease)– ग्रेव्स रोग व्यस्क लोगों में हाइपरथॉयराइडिज्म होने का मुख्य कारण है। इस रोग में शरीर की प्रतिक्षा प्रणाली ऐसे एंटीबॉडिज (Antibodies) का उत्पादन करने लगती है जो टीएसएच (TSH) को बढ़ाती है। यह आनुवांशिक बीमारी है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है।
5- गॉयटर (Goitre)- घेंघा रोग के कारण।
6- विटामिन बी12(Vitamin B12)- विटामिन बी12 के कारण भी हाइपरथॉयराइडिज्म (Hypothyrodism) हो सकता है।
इसके अलावा डायट, लाइफस्टाइल और हेरिडिटी के कारण भी हाइपरथॉयराइडिज्म होने का खतरा होता है-
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हाइपरथॉयराइडिज्म के आम लक्षण ये हैं-
आम तौर पर असंतुलित भोजन और जीवनशैली के कारण हाइपरथॉयराइडिज्म की समस्या होती है। इसके लिए अपने जीवनशैली और आहार में कुछ बदलाव लाने पर हाइपरथॉयराइडिज्म की समस्या को कुछ हद तक नियंत्रण में लाया जा सकता है।
आमतौर पर हाइपरथॉयराइडिज्म से राहत पाने के लिए लोग पहले घरेलू नुस्खों पर ही ऐतबार करते हैं। चलिये ऐसे कौन-कौन-से घरेलू उपाय और आयुर्वेदिक उपाय हैं जो हाइपरथॉयराइडिज्म दूर करने में सहायता करते हैं-
आयुर्वेद में थायरॉइड से सम्बन्धित रोग को अवटु ग्रंथि विकार कहा गया हैं। अनुचित आहार-विहार एवं तनाव पूर्ण जीवन व्यतीत करने की वजह से यह विकार देखा जाता है, इसमें वात, पित्त व कफ का असंतुलन तथा मुख्य रूप से वात एवं कफ की दुष्टि होती है। ऐसे में आयुर्वेदीय उपचार द्वारा इन दोषों को सन्तुलित अवस्था में लाया जाता है, अवटु ग्रंथि से स्रवित होने वाले हार्मोन्स जिनका थायरॉइड रोग में अति स्राव या अल्प स्राव होता है वह इस उपचार द्वारा नियत्रित होते है।
एलोपैथिक चिकित्सा में इस विकार के लिये स्टेरॉइड्स का सेवन कराया जाता है जो कि हानिकारक है। अत: आयुर्वेदिक चिकित्सा प्राकृतिक चिकित्सा होने के कारण श्रेष्ठ है, इसमें वर्णित औषधियाँ जैसे गुग्गुलु, आँवला, कांचनार, गोक्षुर तथा शिलाजीत थायरॉइड रोग में बेहद फायदेमंद है।
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दादी-नानी के जमाने से हल्दी दूध का प्रयोग भिन्न-भिन्न बीमारियों के उपचार के लिए किया जाता रहा है। इसी तरह प्रतिदिन दूध में हल्दी पका कर पीने से हाइपरथॉयराइडिज्म के लक्षणों से आराम मिलता है।
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वैसे तो माना जाता है कि लौकी पेट को शांत रखने में मदद करने के साथ-साथ पाचन शक्ति को भी बेहतर करती है। शायद आपको पता नहीं कि लौकी के जूस का नियमित सेवन हाइपरथॉयराइडिज्म से राहत दिलाने में भी मदद करती है।
एलोवेरा और तुलसी के फायदों के बारे में जितना कहे उतना कम होगा। दोनों न सिर्फ त्वचा संबंधी या सर्दी-खांसी समस्याओं से निजात दिलाने में मदद करते हैं वरन् हाइपरथॉयराइडिज्म से राहत दिलाने में भी मदद करते हैं। दो चम्मच तुलसी के रस में आधा चम्मच एलोवेरा जूस मिला कर सेवन करने से मिलता है फायदा।
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काली मिर्च एक ऐसा मसाला है जो हर रसोईघर में मिल जाता है, लेकिन आपको पता नहीं होगा कि हाइपरथॉयराइडिज्म के उपचार में यह कितना फायदेमंद होता है। हाइपरथॉयराइडिज्म के मरीजों के लिए काली मिर्च भी बहुत फायदेमंद होता है। चिकित्सक की सलाह के अनुसार काली मिर्च का सेवन करें।
अश्वगंधा के गुणों के बारे में क्या कहे। सदियों से अश्वगंधा का प्रयोग तरह-तरह के बीमारियों के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता रहा है। हाइपरथॉयराइडिज्म से राहत पाने के लिए रात को सोते समय एक चम्मच अश्वगंधा चूर्ण गाय के गुनगुने दूध के साथ लेने से जल्दी आराम मिलता है।
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शोध के अनुसार मुलेठी में पाया जाने वाला प्रमुख घटक ट्रीटरपेनोइड ग्लाइसेरीयेनिक एसिड अत्यधिक आक्रामक होता है जो थाइरॉडी कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोकता है।
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जब हाइपरथॉयराइडिज्म के लक्षण नजर आने लगे और स्थिति दिन ब दिन खराब हो रही हो तो बिना देर किये डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
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