एलापत्रत्वचो।र्द्धाक्षाः पिप्पल्यर्द्धपलं तथा ।
सितामधुकखर्जूरमृद्वीकाश्च पलोन्मिताः ।।
सञ्चूर्ण्य मधुना युक्ता गुटिकाः कारयेद्भिषक् ।
अक्षमात्रां ततश्चैकां भक्षयेच्च दिने दिने ।।
श्वासं कासं ज्वरं हिक्कां छर्दिं मूर्च्छां मदं भमम्।
रक्तfिनष्ठीवनं तृष्णां पार्श्वशूलमरोचकम्।।
शोषप्लीहामवाताश्च स्वरभेदं क्षतक्षयम्।
गुटिका तर्पणी वृष्या रक्तपित्तं विनाशयेत्।।
भै.र.13/42-45, च.द.9/30-33
क्र.सं. घटक द्रव्य प्रयोज्यांग अनुपात
मात्रा– 2-4 ग्राम
गुण और उपयोग– यह वटी सूखी खाँसी, क्षयजन्य खाँसी, रक्तपित्त, मुँह से खून निकलना, बुखार, उल्टी आना, बेहाशी, प्यास की अधिकता, जी घबराना, आवाज खराब होना तथा पित्त से संबंधित रोगों में लाभदायक है। यह सूखी खाँसी में छाती में जमे हुए कफ से आराम दिलाती है। खाँसी में कफ न निकलने से सिर दर्द होना अथवा खाँसते समय खून आने की अवस्था से यह छुटकारा दिलाती है। यह पित्त को शान्त कर कफ को पिघला कर बाहर निकालती है। इस वटी को चूस कर सेवन करने से विशेष लाभ होता है।
आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार, त्रिफला चूर्ण पेट से जुड़ी समस्याओं के लिए बेहद फायदेमंद है. जिन लोगों को अपच, बदहजमी…
डायबिटीज की बात की जाए तो भारत में इस बीमारी के मरीजों की संख्या साल दर साल बढ़ती जा रही…
मौसम बदलने पर या मानसून सीजन में त्वचा से संबंधित बीमारियाँ काफी बढ़ जाती हैं. आमतौर पर बढ़ते प्रदूषण और…
यौन संबंधी समस्याओं के मामले में अक्सर लोग डॉक्टर के पास जाने में हिचकिचाते हैं और खुद से ही जानकारियां…
पिछले कुछ सालों से मोटापे की समस्या से परेशान लोगों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. डॉक्टरों के…
अधिकांश लोगों का मानना है कि गौमूत्र के नियमित सेवन से शरीर निरोग रहता है. आयुर्वेदिक विशेषज्ञ भी इस बात…