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Eladi Gutika: एलादि गुटिका – एक नाम, कई लाभ- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

एलापत्रत्वचो।र्द्धाक्षाः पिप्पल्यर्द्धपलं तथा

सितामधुकखर्जूरमृद्वीकाश्च पलोन्मिताः ।।

सञ्चूर्ण्य मधुना युक्ता गुटिकाः कारयेद्भिषक्

अक्षमात्रां ततश्चैकां भक्षयेच्च दिने दिने ।।

श्वासं कासं ज्वरं हिक्कां छर्दिं मूर्च्छां मदं भमम्।

रक्तfिनष्ठीवनं तृष्णां पार्श्वशूलमरोचकम्।।

शोषप्लीहामवाताश्च स्वरभेदं क्षतक्षयम्।

गुटिका तर्पणी वृष्या रक्तपित्तं विनाशयेत्।।

भै..13/42-45, ..9/30-33

क्र.सं. घटक द्रव्य प्रयोज्यांग अनुपात

  1. एला (सूक्ष्मैला) (Elettaria cardamomum Maton.) बीज 6 ग्राम
  2. तेजपत्र (Cinnamomum tamala) 6 ग्राम
  3. त्वक/दालचीनी ( Cinnamomum zeylanicum Breyn) त्वक 6 ग्राम
  4. पिप्पली (Piper longum Linn.) फल 24 ग्राम
  5. सिता (Saccharum officinarum Linn.) 48 ग्राम
  6. मधुक (यष्टी) (Glycyrrhiza gtlabra Linn.) मूल 48 ग्राम
  7. खर्जूर ( Phoenix sylvestris Roxb.) फल 48 ग्राम
  8. मृद्विका (द्राक्षा) (Vitis vinifera Linn.) शुष्क फल 48 ग्राम
  9. मधु 48 ग्राम

मात्रा 2-4 ग्राम

गुण और उपयोगयह वटी सूखी खाँसी, क्षयजन्य खाँसी, रक्तपित्त, मुँह से खून निकलना, बुखार, उल्टी आना, बेहाशी, प्यास की अधिकता, जी घबराना, आवाज खराब होना तथा पित्त से संबंधित रोगों में लाभदायक है। यह सूखी खाँसी में छाती में जमे हुए कफ से आराम दिलाती है। खाँसी में कफ निकलने से सिर दर्द होना अथवा खाँसते समय खून आने की अवस्था से यह छुटकारा दिलाती है। यह पित्त को शान्त कर कफ को पिघला कर बाहर निकालती है। इस वटी को चूस कर सेवन करने से विशेष लाभ होता है।