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चोरक चरक-संहिता में संज्ञास्थापन तथा सुश्रुत-संहिता में वर्णित एलादिगण में इसकी गणना की गई है। इसका प्रयोग मसालों में किया जाता है। यह 1.2-3.6 मी ऊँचा, सुगन्धित, अरोमिल शाकीय पौधा होता है। इसका तना सीधा, स्पष्ट खात-युक्त तथा चिकना होता है। इसके पत्ते साधारणतया बड़े, 1-3-पक्षवत् होते हैं। पत्रक संख्या में 3, अण्डाकार अथवा भालाकार, अनियमित एवं तीखे दंतुर, 2.5-7.5 सेमी लम्बे, अधपृष्ठ चमकीले तथा ऊर्ध्व पृष्ठ गहरे हरे रंग के होते हैं। इसके फूल सफेद, पीले अथवा गहरे बैंगनी रंग के संयुक्त पुष्पछत्रों में होते हैं। इसके फल
अण्डाकार अथवा नुकीले अण्डाकार, लगभग चारो कोणों वाले, 1.2 सेमी लम्बे एवं 6 मिमी व्यास के होते हैं।
चोरक का वानास्पतिक नाम Angelica glauca Edgew. (ऐंजेलिका ग्लॉका) Syn-Angelica nuristanica Kitam.होता है। इसका कुल Apiaceae (ऐपिएसी) होता है और इसको अंग्रेजी में Angelica (एन्जेलिका)) कहते हैं। चलिये अब जानते हैं कि चोरक और किन-किन नामों से जाना जाता है।
Sanskrit-निशाचर, तस्कर धनहारी, कितव, गणहासक, चोरक, षङिकत, चण्ड, दुष्पत्र, क्षेमक, रिपु, फलचोरक, चपल, दुठकुल, ग्रन्थि, सुगन्धि, पर्णचोरक, क्रोधमूर्च्छित, दुष्कुलीन, विरोध, क्षेम, राक्षसी;
Hindi-चोरक, चोरू, चोरा, गन्ध्रायन;
Kashmiri-चोहोर;
Tibetan-सा रोन (Tsa ron);
Punjabi-चोरा (Chora), चूरा (Chura)।
English-स्मूथ एन्जेलिका (Smooth angelica)
चोरक के फायदों के बारे में जानने के लिए सबसे पहले चोरक के औषधीय गुणों के बारे में जानना ज़रूरी होता है।
चोरक मधुर, तीखा, ठंडा, लघु, कड़वा, कफवात को आराम देने वाले, हृदय संबंधी बीमारी, संज्ञास्थापक; तीखे गन्धयुक्त तथा वर्णप्रसादक होता है।
यह कुष्ठ, कण्डू (खुजली), पिटिका (Prurigo), कोठ (Throat), स्वेद (sweat), मेद (Obesity), रक्तदोष (Blood vitiation), जीर्ण ज्वर (chronic fever), विष, कृमिरोग, वातरोग, त्वचा संबंधी बीमारी एवं मुँह में बदबू होता है।
चोरक में पौष्टिकारक गुण होता है, उतना ही औषधी के रूप में कौन-कौन से बीमारियों के लिए फायदेमंद होते है,चलिये इसके बारे में आगे जानते हैं-
अगर दिनभर काम के थकान के कारण सिर में दर्द हो रहा है तो चोरक के जड़ को पीसकर सिर पर लेप करने से सिरदर्द से जल्दी आराम मिल जाता है।
नजला-जुकाम से परेशान हैं तो समान मात्रा में रोहिष घास, जीरा, वचा, अरणी तथा चोरक के चूर्ण को नाक से लेने से जुकाम (नजला) में लाभ होता है।
अगर पेट में गड़बड़ी होने के कारण सांस की बदबू ठीक नहीं हो रही है तो इसकी जड़ को दाँतों में दबाकर रखने से मुख की दुर्गंध तथा दांत के दर्द से आराम मिलता है।
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2-4 ग्राम चोरक-जड़-चूर्ण में शहद मिलाकर खाने से सांस की नली की सूजन, सीने से संबंधित दुर्बलता तथा खाँसी में लाभ होता है।
गलत खा लेने पर अगर दिल में जलन होने लगता है तो 1-2 ग्राम चोरक-जड़-चूर्ण का सेवन शहद के साथ करने से दिल के जलन में लाभ होता है।
पेट संबंधित कोई भी समस्या होने पर चोरक का उपयोग इस तरह से करने पर आराम मिलता है-
-1-2 ग्राम चोरक-जड़ के चूर्ण को गर्म जल के साथ सेवन करने से अजीर्ण या कम भूख लगना, कब्ज तथा पित्त संबंधित बीमारियों में लाभ होता है।
-1-2 ग्राम चोरक-जड़ के चूर्ण को गुनगुने जल के साथ मिलाकर प्रयोग करने से पेट की बीमारियों में लाभ होता है।
चोरक का सेवन करने से रक्त में लाल रक्तकणों की वृद्धि होती है, अत: इसका प्रयोग पाण्डु (खून की कमी) की चिकित्सा में किया जाता है।
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2-4 ग्राम चोरक-मूल-चूर्ण का सेवन करने से हाथ एवं पैर के धमनियों के-संकीर्णता (Buerger`s disease) में लाभ होता है।
आयुर्वेद में चोरक का इस्तेमाल मानसिक रोगों के उपचार के लिए सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाता है-
-मण्डूकपर्णी तथा चोरक से सिद्ध घी को 5 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से मानसिक रोगों में लाभ होता है।
-ब्राह्मी, हींग तथा चोरक के चूर्ण से पकाए गए पुराण घी को मात्रानुसार प्रयोग करने से उन्माद (Insanity) में लाभ होता है।
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मिर्गी के कष्ट के निदान में चोरक का प्रयोग फायदेमंद साबित हो सकता है-
-समान मात्रा में वचा, अमलतास की गुद्दी, बकायन की छाल, ब्राह्मी, हींग, चोरक तथा गुग्गुलु से बनाए कल्क को गाय के घी के साथ पकाकर 3 ग्राम की मात्रा में प्रयोग करने से वातज, कफज तथा वातकफज अपस्मार या मिर्गी में लाभ होता है।
-समान मात्रा में काली तुलसी, कूठ, हरीतकी, भूतकेशी तथा चोरक को गोमूत्र में पीसकर उबटन बनाकर लगाने तथा गोमूत्र से स्नान करने से मिरगी में लाभ होता है।
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चोरक का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से लसिका-ग्रन्थि की सूजन कम होती है।
बुखार के कारण शरीर में जो कष्ट होता है उससे राहत पाने में चोरक का सेवन फायदेमंद होता है। इसके जड़ का काढ़ा बनाकर 15-30 मिली मात्रा में सेवन करने से बुखार से आराम मिलता है।
वचा, गिलोय, तगर, हरीतकी तथा चोरक के पेस्ट का 1 भाग, बकरे का मूत्र 8 भाग तथा उत्तम सुरा 8 भाग मिलाकर उसमें 4 भाग तिल तेल मिलाकर यथाविधि पाक करके, अभ्यंग (मालिश) करने से बालशोष रोग में लाभ होता है।
आयुर्वेद के अनुसार चोरक का औषधीय गुण इसके इन भागों को प्रयोग करने पर सबसे ज्यादा मिलता है-
-मूल या जड़
-प्रंद या बल्ब
-पत्ता
-फल
-बीज।
यदि आप किसी ख़ास बीमारी के घरेलू इलाज के लिए चोरक का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही इसका उपयोग करें। चिकित्सक के सलाह के अनुसार 1-3 ग्राम चूर्ण ले सकते हैं।
इस औषधि का अधिक मात्रा में आंतरिक रूप से प्रयोग करने से, इसमें उपस्थित फ्युरोकूमेरिन्स के कारण त्वचा में सूजन होने का खतरा रहता है।
इस पौधे का प्रयोग गर्भवती महिलाओं में के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है।
यह भारत में मुख्यत हिमालयी भागों में, उत्तर-पश्चिमी हिमालय से जम्मू-काश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखण्ड में 2400-3800 मी की ऊँचाई तक पाया जाता है।
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