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आयुर्वेद में ऐसी बहुत तरह की जड़ी बुटियां हैं जो स्वास्थ्यवर्द्धक गुणों के कारण बहुत तरह के बीमारियों के लिए फायदेमंद होती हैं। ऐसी है एक वटी है चित्रकादि वटी ( Chitrakadi Vati)। चित्रकादि वटी का सेवन करने से न सिर्फ पाचन शक्ति बेहतर होती है बल्कि कई तरह के बीमारियों के लिए ये औषधि के रुप में भी काम में आती है।
चित्रकादि वटी एक तरह का गोली होता है जो शरीर का पाचन शक्ति बढ़ाने के लिए सेवन किया जाता है। चित्रकादि वटी मूल रुप से पेट संबंधी तरह-तरह के आम बीमारियों से राहत दिलाने में मदद करती है। यह आयुर्वेदिक औषधि गैस बनने और पेट फूलने जैसे समस्याओं के लिए उपचार के रुप में सेवन किया जाता है।
चित्रकादि वटी ऐसा आयुर्वेदिक दवा है जो मूल रुप से पेट दर्द, एसिडिटी, भूख नहीं लगना, अरुची जैसे समस्याओं के लिए फायदेमंद होता है। चलिये विस्तार से चित्रकादि वटी के फायदों के बारे में जानते हैं कि ये किन-किन बीमारियों में फायदेमंद है।
अग्निमांद्य या बदहजमी के कारण खाना अच्छी तरह से हजम नहीं होता है। जिसके कारण आँव युक्त कच्चा मल निकलता है ऐसे में यह वटी विशेष रुप से लाभदायक होती है। सुबह शाम इसका सेवन करने से लाभ मिलता है।
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अगर किसी लंबे बीमारी के कारण या दूसरे किसी कारण भूख कम लगती है या खाने में रुची नहीं है तो चित्रकादि वटी का सेवन सुबह-शाम जल के साथ करने से फायदा मिलता है। वटी का सेवन करने से खाने में रुची बढ़ती है और खाना जल्दी हजम होता है।
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आम तौर पर पेचिश होने पर पेट में आंव यानि कच्चा मल बनता है जिसके कारण पेट में दर्द होता है और पेट से कच्चा मल निकलता है। आँवपाचन के लिए ये वटी बहुत ही उपकारी होता है।
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पेचिश के अलावा कब्ज में भी ये वटी काम करता है। चित्रकादि वटी का सेवन सुबह शाम पानी के साथ करने से मल त्याग करने में आसानी होती है।
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आम तौर पर कब्ज और पेचिश होने पर एसिडिटी होने की संभावना बढ़ जाती है। इससे राहत पाने में चित्रकादि वटी बहुत फायदेमंद होता है।
चित्रकादि वटी पेशाब कम आने जैसे समस्याओं में बहुत उपकारी होता है। वटी का सेवन सुबह शाम करने से लाभ मिलता है।
चित्रकादि वटी का सेवन चिकित्सक के परामर्श के अनुसार 1/2 ग्राम कर सकते हैं। आयुर्वेद में चित्रकादि वटी का सेवन कोष्ण जल या छाछ के रूप में करते हैं।
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चित्रकं पिप्पलीमूलं द्वौ क्षारौ लवणानि च।
व्योषं हिङ्ग्वजमोदां च चव्यं चैकत्र चूर्णयेत्।।
गुटिका मातुलुङ्गस्य दाडिमस्य रसेन वा।
कृता विपाचत्यामं दीपयत्याशु चानलम्।। च.चि.15/96-97
क्र.सं. घटक द्रव्य प्रयोज्यांग अनुपात
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