Categories: जड़ी बूटी

Banda Suvarnbandaak: बांदा में हैं बेहरतरीन गुण- Balkrishan Ji (Patanjali)

वानस्पतिक नाम : Viscum album  Linn. (विस्कम एल्बम)

कुल : Viscaceae (विस्केसी)

अंग्रेज़ी नाम : European mistletoe (यूरोपियन मिसल्टो)

संस्कृत-सुवर्णबंदाक; हिन्दी-किशमिश कावली, बांदा, बांदा भेद; उर्दू-बांदा (Banda); कन्नड़-हसुरूबदनिका (Hasurubadnika); नेपाली-ऐंजेरु (Enjeru); पंजाबी-भांगरा (Bhangra), रिनी (Rini), रिओरी (Riori)।

अंग्रेजी-डेविल्स फ्यूज (Devils fuse), मिसैल्टो (Mistletoe), बर्ड लाईम (Bird lime)।

परिचय

यह विश्व में उत्तरी एशिया, नेपाल, एटलांटिक एवं जापान में प्राप्त होता है। भारत में उष्णकटिबंधीय हिमालय में काश्मीर में 2300 मी की ऊँचाई पर प्राप्त होता है।

यह पराश्रयी सदाहरित क्षुप होता है। इसका काण्ड अनेक शाखा-प्रशाखायुक्त, नलिकाकार तथा पीताभ-हरे वर्ण का होता है। इसकी शाखाएं द्विविभक्त या चक्राकार क्रम में निकली हुई होती हैं। इसके पत्र साधारण, विपरीत, आयताकार, वृंतरहित, विभन्न आकार के मोटे, चपटे, 2.5-5 सेमी लम्बे, फीके हरे रंग के तथा 3-5 शिरायुक्त होते हैं। इसके पुष्प एकलिंगी तथा गुच्छों में होते हैं। इसके फल अण्डाकार, श्वेतवर्णी, 6-8 मिमी व्यास के, चिकने, ताजी दशा में हरे तथा सूखने पर कृष्णाभ-भूरे रंग के व एकबीजयुक्त होते हैं।

आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव

इसका पञ्चाङ्ग हृद्य, पूयरोधी, ऐंठनरोधी, मूत्रल, विरेचक, वामक, शामक तथा गर्भाशय संकोचक होता है।

यह उच्चरक्तचाप, धमनी काठिन्य, अर्बुद, सूखा रोग, यकृत् एवं प्लीहा वृद्धि, कटिशूल, अर्श, योषापस्मार, रक्तमूत्रता एवं कर्णरोगों में लाभप्रद है।

इसका फल मधुर, अम्ल, विरेचक, बलकारक, स्वेदक, मूत्रल, हृद्य तथा शोधक होता है।

इसका पञ्चाङ्ग सत्त् हृद्य, पूयरोधी, मूत्रल, विरेचक तथा वामक होता है।

इसमें व्याधिक्षमत्व नियामक (Immunoregulatory) एवं कोशिका प्रफलन (Cell proliferation) शामक प्रभाव दृष्टिगत होते हैं।

इसके पत्रों का एथेनॉलिक-सार चूहों में पेरासिटॉमोल प्रेरित यकृत् विषाक्तता में सुधार लाता है।

पौधे से प्राप्त पत्र-सार सामान्य एवं मधुमेह ग्रस्त चूहों में सार्थक रक्त शर्करा के स्तर को कम करने का प्रभाव प्रदर्शित करता है।

इसका जलीय-सार विभिन्न अर्बुद कोशिकाओं पर कोशिका विषी प्रभाव प्रदर्शित करता है।

औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि

  1. कर्णपूय-बांदा फल स्वरस में थोड़ी-सी अपांप्म को घिसकर 1-2 बूंद कान में डालने से कर्णपूय का शमन होता है।
  2. झांई-बांदा को पीसकर चेहरे पर लगाने से झांई दूर होती है।
  3. हृद्विकार-डिजिटेलिस् की तरह इसका प्रयोग हृदयविकारों की चिकित्सा में किया जाता है।
  4. गुल्म-बांदा से निर्मित 20 मिली फाण्ट में 5 मिली एरण्ड तैल तथा 1 ग्राम सोंठ चूर्ण मिलाकर पिलाने से गुल्म में लाभ होता है।
  5. अत्यार्तव-10-20 मिली बांदा फाण्ट पिलाने से अत्यार्तव में लाभ होता है।
  6. संधिशोथ-बांदा को पीसकर इसमें राल तथा मोम मिलाकर लगाने से संधिशोथ तथा संधिशूल का शमन होता है।
  7. व्रण शोथ-बांदा के फलों को पीसकर लगाने से व्रणशोथ में लाभ होता है।
  8. ज्वर-बांदा पञ्चाङ्ग से निर्मित क्वाथ (10-20 मिली) का सेवन करने से ज्वर का शमन होता है।
  9. शोथ-बांदा को पीसकर लेप करने से शोथ का शमन होता है।

प्रयोगज्याङ्ग  : फल, बीज तथा पञ्चाङ्ग।

मात्रा  : चिकित्सक के परामर्शानुसार।

विशेष  : इसका अत्यधिक सेवन करने से भम, ऐंठन, मरोड़ तथा उदरशूल होने लगता है। इसका मात्रानुसार विधिपूर्वक सेवन करना चाहिए।

आचार्य श्री बालकृष्ण

आचार्य बालकृष्ण, आयुर्वेदिक विशेषज्ञ और पतंजलि योगपीठ के संस्थापक स्तंभ हैं। चार्य बालकृष्ण जी एक प्रसिद्ध विद्वान और एक महान गुरु है, जिनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में आयुर्वेदिक उपचार और अनुसंधान ने नए आयामों को छूआ है।

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आचार्य श्री बालकृष्ण

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