वानस्पतिक नाम : Cydonia oblonga Mill. (साइडोनिया ऑब्लौंगा)
Syn-Cydonia vulgaris Pers.
कुल : Rosaceae (रोजेसी)
अंग्रेज़ी नाम : Quince (क्विन्स)
संस्कृत-गुरुप्रिया; हिन्दी-बिही, बिहिदाना, गुरूप्रिया, बिपुलबीज; उर्दू-बिही (Bihi); कन्नड़-बमशुतु (Bamshutu), सिमेडे-लिम्बे (Simede limbe); गुजराती-मोगलाइ बेंदाण (Moglai bendan); तमिल-सिमाईमथला (Shimaimathala); तेलुगु-सिमडानिम्मा (Shimadanimma); बंगाली-बिही (Bihi); नेपाली-बेही (Behi)।
अंग्रेजी-कॉमन क्विन्स (Common quince); अरबी-बिहीतुर्ष (Bihitursh), सफरज (Safarjae); फारसी-बिही (Bihi)।
परिचय
यह भारत में पश्चिमी हिमालय में 1700 मी की ऊँचाई तक प्राप्त होता है, इसके अतिरिक्त काश्मीर, पंजाब, उत्तरी पश्चिमी भारत एवं नीलगिरी में इसकी खेती की जाती है। इसके फल के बीजों को बिहीदाना कहते हैं। बीजों को जल में भिगोने से फूल कर लुआबदार हो जाते हैं।
यह शाखा-प्रशाखायुक्त मध्यम आकार का छोटा वृक्ष होता है। इस वृक्ष के काण्ड की छाल गहरे भूरे वर्ण या काली रंग की तथा शाखाएं टेढ़ी-मेढ़ी होती हैं। इसके पत्र सरल, 5-10 सेमी लम्बे एवं 3.8-7.5 सेमी चौड़े, अण्डाकार, गहरे हरे, ऊपरी भाग पर चिकने, नीचे अधोभाग पर भूरे तथा रोमश होते हैं। इसके पुष्प पत्रकोण से निकले हुए लगभग 5 सेमी व्यास के, श्वेत अथवा गुलाबी रंग की आभा से युक्त होते हैं। इसके फल नाशपाती आकार के, लगभग गोलाकार, अनेक बीजयुक्त तथा पकने पर सुगन्धित व सुनहरे पीले रंग के होते हैं। बीज लम्बगोल, चपटे तथा रक्ताभ-भूरे रंग के होते हैं। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल फरवरी से जुलाई तक होता है।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
बिही के बीज पिच्छिल, बलकारक, वृष्य, दाह तथा मूत्रकृच्छ्र शामक, मधुर, कषाय, शीत तथा गुरु होते हैं।
इसकी छाल ग्राही होती है।
इसके बीज हृदय एवं शरीर के लिए बलकारक, अतिसार रोधी, प्रवहिकारोधी तथा वृष्य होते हैं।
इसके फल बलकारक, ग्राही, व्रणरोपक, ज्वरहर, कफ निसारक, मस्तिष्क एवं यकृत् के लिए बलकारक, दीपन, तृष्णाहर तथा श्वासहर होते हैं।
इसमें प्रवाहिकारोधी गुण पाया जाता है।
औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि
प्रयोज्याङ्ग : फल, बीज तथा श्लेष्मल भाग (Mucilage)।
मात्रा : बीज 5 ग्राम, फल 5-10 ग्राम या चिकित्सक के परामर्शानुसार।
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