योग साधना में अष्टांग योग के अलावा मुद्राओं का भी विशेष महत्व है। मुद्राएँ आसनों का ही एक विकसित रूप हैं। शास्त्रों में मुद्राओं का महत्व बताते हुए कहा गया है कि इस पृथ्वी पर मुद्रा के समान फायदेमंद कोई और दूसरा कर्म नहीं है। आसन करने से जहाँ शारीरिक शक्ति मजबूत होती है वहीं मुद्राओं से शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की शक्तियों का विकास होता है। इनके नियमित अभ्यास से कई तरह के रोग दूर हो सकते हैं।
आसन करते समय इन्द्रियों की भूमिका ज्यादा और प्राणों की कम होती है। जबकि मुद्राओं में इन्द्रियों की भूमिका कम होती है और प्राणों की ज्यादा होती है।
आयुर्वेद में मुख्य रूप से 11 तरह की मुद्राएँ बताई गई हैं। जो निम्न हैं :
आयुर्वेद में बताया गया है कि यह समूचा ब्रम्हांड पांच तत्वों से बना हुआ है। यहां तक कि हमारा शरीर भी इन्हीं पांच तत्वों से ही बना हुआ है। आपके हाथ की पांच उंगलियाँ अलग अलग तत्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
जब ये पाँचों तत्व साम्यावस्था में रहते हैं तो शरीर एकदम निरोग रहता है और इनके असंतुलित होने पर रोग उत्पन्न हो जाते हैं। मुद्रा विज्ञान के अनुसार इन्हीं पांच तत्वों के सम्मिलित रूप से शरीर की आन्तरिक ग्रंथियां, अवयवों और उनकी क्रियाओं को नियमित किया जाता है।
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हाथ से की जाने वाली मुद्राएँ ( हस्तमुद्राएँ) तुरंत ही अपना असर करना शुरू कर देती हैं। जिस हाथ में आप ये मुद्राएं बनाते हैं, शरीर के विपरीत हिस्से में उनका तुरंत असर होना शुरू हो जाता है। इन मुद्राओं को आप चलते फिरते, उठते बैठते कभी भी कर सकते हैं। वज्रासन, पद्मासन या सुखासन में बैठकर मुद्राएं करना ज्यादा लाभकारी होता है।
आयुर्वेद के अनुसार इन मुद्राओं को रोजाना 10 मिनट से लेकर 45 मिनट तक कर सकते हैं। इतनी देर तक करने से ही इनका पूर्ण लाभ मिलता है। अगर आप एक बार में सभी मुद्राएँ नहीं कर पा रहे हैं तो दो-तीन बार में भी इन्हें कर सकते हैं। किसी भी मुद्रा को करते समय जिस ऊँगली का इस्तेमाल ना हो रहा हो उसे सीधा रखें।
आइये अब प्रत्येक मुद्राओं के बारे में विस्तार से जानते हैं :
इस मुद्रा को करने के लिए अंगूठे और तर्जनी अंगुली के आगे वाले हिस्से को आपस में मिलाना होता है और बाकी तीनों अँगुलियों को सीधा रखना होता है।
इसे करने के लिए तर्जनी अंगुली को अंगूठे के निचले हिस्से में लगाकर अंगूठे को हल्का दबाकर रखना होता है। बाकी तीनों अँगुलियों को सीधा रखना चाहिए।
मध्यमा या बीच वाली अंगुली आकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करती है। इस अंगुली को अंगूठे के निचले हिस्से में रखें और अंगूठे से हल्का दबाकर रखें। बाकी अँगुलियों को सीधा रखें।
इस मुद्रा को चलते फिरते या भोजन करते समय ना करें।
अनामिका और अंगूठे के अगले हिस्सों को मिलाकर रखें और बाकी तीन अँगुलियों को सीधा रखें।
इसे करने के लिए सबसे छोटी अंगुली (कनिष्ठा), अनामिका और अंगूठे के शीर्ष हिस्से को आपस में मिलाएं और बाकी दोनों अंगुलियाँ सीधी रखें।
अंगूठे, मध्यमा (बीच वाली अंगुली) और अनामिका के शीर्ष हिस्से (आगे वाले हिस्से) को आपस में छुआयें और बाकी दो अँगुलियों को सीधा रखें।
इस बात का ध्यान रखें कि इसे करने से ज्यादा पेशाब होता है।
ऊपर बताए गए अपान मुद्रा और वायु मुद्रा दोनों को एक साथ मिलाकर करने से यह मुद्रा बनती है। इसमें कनिष्ठा अंगुली सीधी होती है।
अनामिका अंगुली को अंगूठे के निचले हिस्से पर रखें और अंगूठे से दबाएं।
शारीरिक रूप से कमजोर लोग इस मुद्रा को ना करें। गर्मी में ज्यादा समय तक ना रहें।
कनिष्ठा अंगुली को अंगूठे से लगाकर रखें।
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कफ प्रकृति वाले लोग इस मुद्रा को ज्यादा ना करें।
दोनों हाथों की अँगुलियों को आपस में फंसाकर मुठ्ठी बनाएं और बाएं हाथ के अंगूठे को खड़ा रखें। बाकी सभी अंगुलियाँ आपस में बंधी हुई होनी चाहिए।
अगर आप ये मुद्रा कर रहे हैं तो जल, फल, फलों का रस, घी और दूध का सेवन अधिक मात्रा में करें। इस मुद्रा को लम्बे समय तक ना करें।
इस मुद्रा में सांस को देर तक फेफड़ों में रोककर रखना होता है। जब आप सांस अंदर (पूरक करें) लें तो अंगूठे के ऊपर वाले भाग 1 को अंगुली से दबाएँ। इससे आप देर तक सांस को अंदर रोक पायेंगे।
अंगूठे के बीच वाले भाग (भाग-2 ) को अंगुली से दबाने पर आप और देर तक सांस रोके (कुम्भक) रख सकते हैं। इसी तरह अगर आप अंगूठे के निचले हिस्से पर अंगुली से दवाब डालते हैं तो आसानी से बहुत देर तक सांस को अंदर रोककर रख सकते हैं।
अब आप सभी मुद्राओं से भलीभांति परिचित हो चुके हैं। इन्हें पहली बार किसी योग शिक्षक की देखरेख में करें और फिर घर पर इसका नियमित अभ्यास करें।
सन्दर्भ : योग साधना एवं योग चिकित्सा रहस्य ( स्वामी रामदेव)
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