वानस्पतिक नाम : Xanthium strumarium L. (जैन्थियम स्ट्रूमेरियम)
Syn-Xanthium abyssinicum Wall., Xanthium americanum Walter
कुल : Asteraceae (ऐस्टरेसी)
अंग्रेज़ी नाम : Cocklebur (कॉकलबर)
संस्कृत-आर्तगल नीलाम्लान, नीलपुष्पा; हिन्दी-वनोकरा (Banokra); असमिया-अगारा (Agara); कन्नड़-मारूलुम्माथी (Marulummathi); गुजराती-गड़ेरियुन (Gadariyun); तमिल-मरूल्लुमुथम (Marulumutham); तैलुगु-मारुल मथान्गी (Marul mathangi); बंगाली-बनोकरा (Banokra), छोटाधतूरा (Chotadhatura); पंजाबी-चीरू (Chirru); मराठी-शंकेश्वर (Sankeshvara)।
अंग्रेजी-क्लॉटबर (Clotbur), ब्रॉड कॉकलेबर (Broad cocklebur), लार्ज कॉक्लेबर (Large cocklebur), बर वीड (Burweed); अरबी-शाबका (Shabka)।
परिचय
मूलत यूरेशिया एवं उत्तरी अमेरिका में इसका पौधा प्राप्त होता है। भारत के समस्त उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में सड़कों तथा खेतों के किनारे तथा हिमालय क्षेत्रों में 1500 मी की ऊँचाई पर प्राप्त होता है।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
आर्तगल का पञ्चाङ्ग कटु, शोधक, अवसादक, तिक्त, कफवातशामक होता है। यह कुष्ठ, शूल, कण्डू, व्रण, शोफ तथा त्वक् विकारों में लाभप्रद है। इसका प्रयोग कफ-विकार, विषमज्वर, मेद, शिरशूल, गुल्म तथा आभ्यंतर विद्रधि की चिकित्सा में किया जाता है। आर्तगल के फूल शीतल तथा प्रशामक होते हैं। आर्तगल के पत्र स्तम्भक, मूत्रल तथा फिरङ्गरोधी होते हैं। आर्तगल की मूल तिक्त, बलकारक, व्रण, रोमकूपशोथ तथा विद्रधिनाशक होती है।
औषधीय प्रयोग, मात्रा एवं विधि
प्रयोज्याङ्ग : पञ्चाङ्ग, पत्र, मूल, बीज तथा फल।
मात्रा : क्वाथ 10-20 मिली।
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