Categories: जड़ी बूटी

Aartgal: आर्तगल के हैं बहुत अनोखे फायदे – Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

वानस्पतिक नाम :   Xanthium strumarium L. (जैन्थियम स्ट्रूमेरियम)

Syn-Xanthium abyssinicum Wall., Xanthium americanum Walter

कुल :   Asteraceae (ऐस्टरेसी)

अंग्रेज़ी नाम :   Cocklebur (कॉकलबर)

संस्कृत-आर्तगल नीलाम्लान, नीलपुष्पा; हिन्दी-वनोकरा (Banokra); असमिया-अगारा (Agara); कन्नड़-मारूलुम्माथी (Marulummathi);  गुजराती-गड़ेरियुन (Gadariyun); तमिल-मरूल्लुमुथम (Marulumutham); तैलुगु-मारुल मथान्गी (Marul mathangi); बंगाली-बनोकरा (Banokra), छोटाधतूरा (Chotadhatura); पंजाबी-चीरू (Chirru); मराठी-शंकेश्वर (Sankeshvara)।

अंग्रेजी-क्लॉटबर (Clotbur), ब्रॉड कॉकलेबर (Broad cocklebur), लार्ज कॉक्लेबर (Large cocklebur), बर वीड (Burweed); अरबी-शाबका (Shabka)।

परिचय

मूलत यूरेशिया एवं उत्तरी अमेरिका में इसका पौधा प्राप्त होता है। भारत के समस्त उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में सड़कों तथा खेतों के किनारे तथा हिमालय क्षेत्रों में 1500 मी की ऊँचाई पर प्राप्त होता है।

आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव

आर्तगल का पञ्चाङ्ग कटु, शोधक, अवसादक, तिक्त, कफवातशामक होता है। यह कुष्ठ, शूल, कण्डू, व्रण, शोफ तथा त्वक् विकारों में लाभप्रद है। इसका प्रयोग कफ-विकार, विषमज्वर, मेद, शिरशूल, गुल्म तथा आभ्यंतर विद्रधि की चिकित्सा में किया जाता है। आर्तगल के फूल शीतल तथा प्रशामक होते हैं। आर्तगल के पत्र स्तम्भक, मूत्रल तथा फिरङ्गरोधी होते हैं। आर्तगल की मूल तिक्त, बलकारक, व्रण, रोमकूपशोथ तथा विद्रधिनाशक होती है।

औषधीय प्रयोग, मात्रा एवं विधि

  1. गण्डमाला-आर्तगल के पत्तों तथा मूल को पीसकर गण्डमाला में लगाने से लाभ होता है।
  2. 1 चम्मच ताजे पत्र-स्वरस को पानी में मिलाकर पिलाने से उदरकृमियों का शमन होता है।
  3. मूत्रविकार-आर्तगल पञ्चाङ्ग (10-20 मिली) के सेवन से अनेक मूत्रदाह, मूत्रकृच्छ्र तथा मूत्राश्मरी आदि मूत्र संबंधित बीमारियों तथा श्वेत प्रदर में लाभ प्राप्त होता है।
  4. आर्तगल पुष्प या केमल फलों को पीसकर शरबत बनाकर पिलाने से यह मूत्रल होता है तथा फिरङ्ग रोग में लाभप्रद होता है।
  5. आर्तगल-मूल तथा पत्रों को पीसकर लेप करने से विसर्प, घाव, फुंसी-फोड़े आदि त्वचा विकारों में लाभ होता है।
  6. आर्तगल के कोमल फल तथा पत्तियों को पीसकर चेहरे पर लगाने से चेहरे की झांईयां दूर होती हैं तथा रोमकूपशोथ पर लगाने से रोमकूपशोथ का शमन होता है।
  7. विषमज्वर-10-20 मिली आर्तगल पञ्चाङ्ग क्वाथ का सेवन करने से जीर्ण विषमज्वर में लाभ होता है।

प्रयोज्याङ्ग :  पञ्चाङ्ग, पत्र, मूल, बीज तथा फल।

मात्रा :  क्वाथ 10-20 मिली।

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आचार्य श्री बालकृष्ण

आचार्य बालकृष्ण, आयुर्वेदिक विशेषज्ञ और पतंजलि योगपीठ के संस्थापक स्तंभ हैं। चार्य बालकृष्ण जी एक प्रसिद्ध विद्वान और एक महान गुरु है, जिनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में आयुर्वेदिक उपचार और अनुसंधान ने नए आयामों को छूआ है।

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आचार्य श्री बालकृष्ण

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