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AUTHENTIC, READABLE, TRUSTED, HOLISTIC INFORMATION IN AYURVEDA AND YOGA

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आसनोपयोगी नियम

  1. समय- आसन प्रात सायं दोनों समय कर सकते हैं। यदि दोनों समय नहीं कर सकते तो प्रातकाल का समय उत्तम है। प्रातकाल मन शान्त रहता है। प्रात शौचादि से निवृत्त होकर खाली पेट तथा दोपहर के भोजन के लगभग 5-6 घण्टे बाद सायंकाल आसन कर सते हैं। आसन करने से पहले शौच आदि से निवृत्त होना चाहिए। यदि कब्ज रहता है तो प्रातकाल ताँबे या चाँदी के बर्तन में रखे हुए पानी को पीना चाहिए। उसके पश्चात् थोड़ा भ्रमण करें। इससे पेट साफ हो जाता है। अधिक कब्ज हो तो त्रिफला चूर्ण सोते समय गर्म पानी से लें। प्रातकाल उठकर पतंजलि आंवला एवं एलोवेरा जूस 4-4 चम्मच गर्म पानी में पीने से कब्ज, गैस, पाचन तत्र के रोग, नेत्र रोग, धातु रोग दूर होते हैं तथा इम्युनिटी बढ़ती है।
  2. स्थान- स्वच्छ, शान्त एवं एकान्त स्थान आसनों के लिए उत्तम है। यदि वृक्षों की हरियाली के समीप बाग, तालाब या नदी का किनारा हो तो सर्वोत्तम है। खुले वातावरण एवं वृक्षों के नजदीक ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में होती है, जो स्वास्थ्य के लिए उत्तम है। यदि घर में आसन-प्राणायाम करें तो घी का दीपक या गुग्गुलु आदि जलाकर उस स्थान को सुगन्धित करना चाहिए।
  3. वेशभूषा- आसन करते समय शरीर पर वस्त्र कम और सुविधाजनक होने चाहिए। पुरुष हाफ पैण्ट और बनियान का उपयोग कर सकते हैं। माताएँ और बहनें सलवार, ब्लाउज आदि पहनकर आसन, प्राणायाम व ध्यान आदि का अभ्यास करें।
  4. योगाभ्यास एवं मात्रा- भूमि पर बिछाने के लिए मुलायम दरी, योग मैट या कम्बल का प्रयोग करना उचित है। अपने सामर्थ्य के अनुसार व्यायाम करना चाहिए। आसनों का पूर्ण अभ्यास एक घण्टे में, मध्यम अभ्यास 30 मिनट में तथा संक्षिप्त अभ्यास 15 मिनट में होता है। आधा घण्टा तो प्रत्येक व्यक्ति को योगासन करना ही चाहिए तथा 30 से 45 मिनट कम से कम प्राणायाम और अन्त में लगभग 5 मिनट का ध्यान व थोड़ी देर के शवासन के साथ प्रतिदिन के योगाभ्यास का समापन करना चाहिए।
  5. आयु- मन एकाग्र कर प्रसन्नता एवं उत्साह के साथ अपनी आयु, शारीरिक शक्ति और क्षमता का पूरा ध्यान रखते हुए यथाशक्ति अभ्यास करना चाहिए। तभी वह योग से वास्तविक लाभ उठा सकेगा। 3 वर्ष की आयु से प्राणायाम व सूक्ष्म व्यायाम का अभ्यास प्रारम्भ करके प्रत्येक आयु वर्ग के सभी स्त्राr-पुरुष अपने सामर्थ्य के अनुसार योगाभ्यास अवश्य करें। योग को अपना स्वभाव बनाएं। दस वर्ष से अधिक आयु के बालक सभी यौगिक अभ्यास कर सकते हैं। गर्भवती महिलाएं कठिन आसनादि न करें। वे केवल शनैः-शनैः दीर्घ श्वसन अनुलोम-विलोम, भ्रामरी, उद्गीथ, ओंकार ध्यान एवं गायत्री मत्रों का जप करना चाहिए।
  6. अवस्था एवं सावधानियाँ- सभी अवस्थाओं में आसन एवं प्राणायाम किए जा सकते हैं। इन क्रियाओं से स्वस्थ व्यक्ति का स्वास्थ्य उत्तम बनता है। वह रोगी नहीं होता और रोगी व्यक्ति स्वस्थ होता है, परन्तु फिर भी कुठ ऐसे आसन हैं, जिनको रोगी व्यक्ति को नहीं करना चाहिए, यथा जिनके कान बहते हों, नेत्रों में लाली हो, स्नायु एवं हृदय दुर्बल हो, उनके शीर्षासन नहीं करना चाहिए। हृदय-दौर्बल्य वाले को अधिक कठिन आसन जैसे पूर्ण शलभासन, धनुरासन एवं चक्रासन आदि नहीं करना चाहिए। अण्डवृद्धि वालों को भी वे आसन नहीं करने चाहिए, जिनसे नाभि के नीचे वाले हिस्से पर अधिक दबाव पड़ता है। उच्च रक्तचाप वाले रोगियों को सिर के बल किये जाने वाले शीर्षासन आदि तथा महिलाओं को ऋतुकाल में 4-5 दिन कठिन आसनों का अभ्यास नहीं करना चाहिए। इन दिनों में महिलाएं सूक्ष्म व्यायाम प्राणायाम एवं ध्यानादि का अभ्यास अवश्य करें। जिनको कमर और गर्दन में दर्द रहता हो, वे आगे झुकने वाले आसन न करें।
  7. भोजन- योगाभ्यास के लगभग 10 से 15 मिनट बाद स्नान व आहारादि ले सकते हैं। भोजन में सात्त्विक पदार्थ हों। तले हुए गरिष्ठ पदार्थों के सेवन से जठर विकृत हो जाता है। आसन के बाद चाय नहीं पीनी चाहिए। एक बार चाय पीने से यकृत आदि कोमल ग्रन्थियों के लगभग 50 सेल्स निक्रिय या कमजोर हो जाते हैं। इससे आप स्वयं अनुमान कर सकते हैं कि चाय से कितनी हानि है। यह भी स्वास्थ्य की एक भयंकर शत्रु है, जो शरीररूपी पावन मन्दिर को विकृत कर देती है। इसमें एक प्रकार का नशा भी होता है, जिसका व्यक्ति अभ्यस्त हो जाता है। जठराग्नि को मन्द करने एवं अम्लपित्त, गैस, कब्जादि रोगों को उत्पन्न करने में चाय और अंग्रेजी दवा दोनों की हानिकारक भूमिका होती है। शाकाहार, सन्तुलित एवं पौष्टिक आहार उत्तम स्वास्थ्य के लिए उत्तम है।
  8. श्वास-प्रश्वास का नियम- आसन करते समय सामान्य नियम है कि आगे की ओर झुकते समय श्वास बाहर निकालते हैं तथा पीछे की ओर झुकते समय श्वास अन्दर भरकर रखते हैं। श्वास नासिका से ही लेना और छोड़ना चाहिए, मुख से नहीं; क्योंकि नाक से लिया हुआ श्वास फिल्टर होकर अन्दर जाता है तथा स्वरतंत्र का सन्तुलन बना रहता है। किसी एक आसन में जब लम्बे समय तक स्थिर होते हैं तो श्वासों की गति सामान्य हो जाती है। सूक्ष्म व्यायाम व व्यायाम के समय लम्बे श्वासों का अभ्यास करना चाहिए।
  9. दृष्टि- आँखे बन्द करके योगासन करने से मन की एकाग्रता बढ़ती है, जिससे मानसिक तनाव एवं चंचलता दूर होती है। सामान्यत आसन एवं प्राणायाम आँखे खोलकर भी कर सकते हैं।
  10. क्रम- यदि कोई आसन दायीं ओर से करें तो उसे बायीं दिशा से भी करें। इसके अतिरिक्त आसनों का एक ऐसा क्रम निश्चित कर लें कि प्रत्येक अनुवर्ती आसन से विघटित दिशा में भी पेशियों और सन्धियों का व्यायाम हो जाए। उदाहरणत सर्वांगासन के उपरान्त मत्स्यासन, मण्डूकासन के बाद उष्ट्रासन किया जाए। नवाभ्यासी शुरू में 2-4 दिन मांसपेशियों और सन्धियों में पीड़ा अनभव करेंगे। अभ्यास जारी रखें। पीड़ा स्वत ही शान्त हो जाएगी। लेटकर किए जाने वाले आसन व व्यायाम-प्राणायाम व ध्यान के पहले भी कर सकते हैं तथा बाद में भी। जैसी जिसको अनुकूलता हो। शीतकाल में पहले थोड़ा व्यायाम व आसन करने से अनुकूलता रहती है तथा गर्मी की ऋतु में प्राणायाम व ध्यान पहले करने से मन की प्रसन्नता व आनन्द अधिक रहता है। आसनों के बाद जब भी उठा जाए, बायीं करवट लेकर उठना चाहिए। योग अभ्यास के अन्त में शवासन 3 से 5 मिनट के लिए अवश्य करें, ताकि अंग-प्रत्यंग शिथिल हो जाएं।
  11. विश्राम- आसन करते हुए जब-जब थकान हो, तब-तब शवासन या मकरासन में विश्राम करना चाहिए। थक जाने पर बीच में भी विश्राम कर स कते हैं।
  12. गुरु- गुरूपदिष्टमार्गेण योगमेव समभ्यसेत्।

योग की सिद्धि गुरुकृपा और गुरु- उपदिष्ट मार्ग से ही होती है। इसलिए योगासन, प्राणायाम व ध्यान आदि का अभ्यास प्रारम्भ में गुरु के सान्निध्य में ही करना चाहिए। टी.वी. व अन्य वैज्ञानिक माध्यमों से भी योगाभ्यास सीखा व किया जा सकता है, बस सामान्य सावधानियां रखकर कर सकते हैं। हमने करोड़ों लोगों को टी.वी. एवं अन्य मीडिया का उपयोग करके योग सिखाया है। गुरु का प्रत्यक्ष सान्निध्य योग की शिक्षा-दीक्षा में निश्चितरूपेण अधिक प्रभावी होता है।

  1. यम-नियम- योगाभ्यासियों को यम-नियम का पालन पूर्ण श्रद्धा व पूर्ण पुरुषार्थ के साथ करना चाहिए। बिना यम-नियमों के पालन के कोई भी व्यक्ति योगी नहीं हो सकता।
  2. शरीर का तापमान- शरीर का तापमान अधिक उष्ण होने या ज्वर होने की स्थिति में योगाभ्यास करने से तापमान बढ़ जाए तो चन्द्रस्वर यानी बायीं नासिका से श्वास अन्दर खींचकर (पूरक कर), सूर्य-स्वर, यानी दायीं नासिका से रेचक (श्वास बाहर निकालना) करने की विधि बार-बार करके तापमान सामान्य कर लेना चाहिए।
  3. पेट की सफाई- पेट की ठीक से सफाई न होती हो, कब्ज और अपच की शिकायत रहती हो तो कुछ दिन प्रारम्भ में कोई सौम्य रेचक हरड़ या त्रिफलादि चूर्ण रात को सोते समय ले लें। अन्यथा पेट साफ न होने की स्थिति में आँख, मुख, सिर में विकार एवं स्नायु-मण्डल में कमजोरी होने की शिकायत हो सकती है। अत पेट का साफ होना, कब्ज-रहित होना, अपच न होना, रात को समय से सोकर पूरी नींद लेना और उचित आहार-विहार करना बहुत ही आवश्यक है।
  4. कठिन- जिन व्यक्तियों का कभी अस्थिभंग हुआ हो, वे कठिन आसनों का अभ्यास कभी नहीं करें, अन्यथा उसी स्थान पर ही दोबारा टूट आ सकती है। वृद्धावस्था व किसी बड़े ऑपरेशन के बाद भी कठिन आसन न करें।
  5. पसीना आने पर- योगाभ्यास के दौरान पसीना आ जाए तो तोलिए से पोंछ लें, इससे चुस्ती आ जाती है, चर्म स्वस्थ रहता है और रोगाणु चर्म मार्ग से शरीर में प्रवेश नहीं कर सकेंगे। योगासनों का अभ्यास यथासम्भव स्नानादि से निवृत्त होकर करना चाहिए। अभ्यास के 10 से 15 मिनट बाद भी शरीर का तापमान सामान्य होने पर स्नान कर सकते हैं।