header-logo

AUTHENTIC, READABLE, TRUSTED, HOLISTIC INFORMATION IN AYURVEDA AND YOGA

AUTHENTIC, READABLE, TRUSTED, HOLISTIC INFORMATION IN AYURVEDA AND YOGA

वात दोष क्या है : असंतुलित वात से होने वाले रोग, लक्षण और उपाय

आपने अपने आस पास ऐसे कई लोगों को देखा होगा जो ज़रूरत से ज्यादा बोलते हैं, हमेशा वे बहुत तेजी में रहते हैं या फिर बहुत जल्दी कोई निर्णय ले लेते हैं। इसी तरह कुछ लोग बैठे हुए भी पैर हिलाते रहते हैं। दरअसल ये सारे लक्षण वात प्रकृति वाले लोगों के हैं। अधिकांश वात प्रकृति वाले लोग आपको ऐसे ही करते नजर आयेंगे। आयुर्वेद में गुणों और लक्षणों के आधार पर प्रकृति का निर्धारण किया गया है। आप अपनी आदतों या लक्षणों को देखकर अपनी प्रकृति का अंदाज़ा लगा सकते हैं। इस लेख में हम आपको वात प्रकृति के गुण, लक्षण और इसे संतुलित रखने के उपाय के बारे में विस्तार से बता रहे हैं।  

 

Vata Dosha

 

वात दोष क्या है 

वात दोष “वायु” और “आकाश” इन दो तत्वों से मिलकर बना है। वात या वायु दोष को तीनों दोषों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। हमारे शरीर में गति से जुड़ी कोई भी प्रक्रिया वात के कारण ही संभव है। चरक संहिता में वायु को ही पाचक अग्नि बढ़ाने वाला, सभी इन्द्रियों का प्रेरक और उत्साह का केंद्र माना गया है। वात का मुख्य स्थान पेट और आंत में है।

 

वात में योगवाहिता या जोड़ने का एक ख़ास गुण होता है। इसका मतलब है कि यह अन्य दोषों के साथ मिलकर उनके गुणों को भी धारण कर लेता है। जैसे कि जब यह पित्त दोष के साथ मिलता है तो इसमें दाह, गर्मी वाले गुण आ जाते हैं और जब कफ के साथ मिलता है तो इसमें शीतलता और गीलेपन जैसे गुण आ जाते हैं।

 

वात के प्रकार 

शरीर में इनके निवास स्थानों और अलग कामों के आधार पर वात को पांच भांगों में बांटा गया है।

  1. प्राण
  2. उदान
  3. समान
  4. व्यान
  5. अपान

आयुर्वेद के अनुसार सिर्फ वात के प्रकोप से होने वाले रोगों की संख्या ही 80 के करीब है।

 

वात के गुण 

रूखापन, शीतलता, लघु, सूक्ष्म, चंचलता, चिपचिपाहट से रहित और खुरदुरापन वात के गुण हैं। रूखापन वात का स्वाभाविक गुण है। जब वात संतुलित अवस्था में रहता है तो आप इसके गुणों को महसूस नहीं कर सकते हैं। लेकिन वात के बढ़ने या असंतुलित होते ही आपको इन गुणों के लक्षण नजर आने लगेंगे।

 

वात प्रकृति की विशेषताएं 

आयुर्वेद की दृष्टि से किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य और रोगों के इलाज में उसकी प्रकृति का विशेष योगदान रहता है। इसी प्रकृति के आधार पर ही रोगी को उसके अनुकूल खानपान और औषधि की सलाह दी जाती है।

वात दोष के गुणों के आधार पर ही वात प्रकृति के लक्षण नजर आते हैं. जैस कि रूखापन गुण होने के कारण भारी आवाज, नींद में कमी, दुबलापन और त्वचा में रूखापन जैसे लक्षण होते हैं. शीतलता गुण के कारण ठंडी चीजों को सहन ना कर पाना, जाड़ों में होने वाले रोगों की चपेट में जल्दी आना, शरीर कांपना जैसे लक्षण होते हैं. शरीर में हल्कापन, तेज चलने में लड़खड़ाने जैसे लक्षण लघुता गुण के कारण होते हैं.

 

इसी तरह सिर के बालों, नाखूनों, दांत, मुंह और हाथों पैरों में रूखापन भी वात प्रकृति वाले लोगों के लक्षण हैं. स्वभाव की बात की जाए तो वात प्रकृति वाले लोग बहुत जल्दी कोई निर्णय लेते हैं. बहुत जल्दी गुस्सा होना या चिढ़ जाना और बातों को जल्दी समझकर फिर भूल जाना भी पित्त प्रकृति वाले लोगों के स्वभाव में होता है.  

 

वात बढ़ने के कारण 

जब आयुर्वेदिक चिकित्सक आपको बताते हैं कि आपका वात बढ़ा हुआ है तो आप समझ नहीं पाते कि आखिर ऐसा क्यों हुआ है? दरअसल हमारे खानपान, स्वभाव और आदतों की वजह से वात बिगड़ जाता है। वात के बढ़ने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

 

  • मल-मूत्र या छींक को रोककर रखना
  • खाए हुए भोजन के पचने से पहले ही कुछ और खा लेना और अधिक मात्रा में खाना
  • रात को देर तक जागना, तेज बोलना
  • अपनी क्षमता से ज्यादा मेहनत करना
  • सफ़र के दौरान गाड़ी में तेज झटके लगना
  • तीखी और कडवी चीजों का अधिक सेवन
  • बहुत ज्यादा ड्राई फ्रूट्स खाना
  • हमेशा चिंता में या मानसिक परेशानी में रहना
  • ज्यादा सेक्स करना
  • ज्यादा ठंडी चीजें खाना
  • व्रत रखना

ऊपर बताए गये इन सभी कारणों की वजह से वात दोष बढ़ जाता है। बरसात के मौसम में और बूढ़े लोगों में तो इन कारणों के बिना भी वात बढ़ जाता है।

 

वात बढ़ जाने के लक्षण 

वात बढ़ जाने पर शरीर में तमाम तरह के लक्षण नजर आते हैं। आइये उनमें से कुछ प्रमुख लक्षणों पर एक नजर डालते हैं।

  • अंगों में रूखापन और जकड़न
  • सुई के चुभने जैसा दर्द
  • हड्डियों के जोड़ों में ढीलापन
  • हड्डियों का खिसकना और टूटना
  • अंगों में कमजोरी महसूस होना एवं अंगों में कंपकपी
  • अंगों का ठंडा और सुन्न होना
  • कब्ज़
  • नाख़ून, दांतों और त्वचा का फीका पड़ना
  • मुंह का स्वाद कडवा होना

अगर आपमें ऊपर बताए गये लक्षणों में से 2-3 या उससे ज्यादा लक्षण नजर आते हैं तो यह दर्शाता है कि आपके शरीर में वात दोष बढ़ गया है। ऐसे में नजदीकी चिकित्सक के पास जाएं और अपना इलाज करवाएं।

 

वात को संतुलित करने के उपाय 

वात को शांत या संतुलित करने के लिए आपको अपने खानपान और जीवनशैली में बदलाव लाने होंगे। आपको उन कारणों को दूर करना होगा जिनकी वजह से वात बढ़ रहा है। वात प्रकृति वाले लोगों को खानपान का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि गलत खानपान से तुरंत वात बढ़ जाता है. खानपान में किये गए बदलाव जल्दी असर दिखाते हैं।

 

वात को संतुलित करने के लिए क्या खाएं 

  • घी, तेल और फैट वाली चीजों का सेवन करें।
  • गेंहूं, तिल, अदरक, लहसुन और गुड़ से बनी चीजों का सेवन करें।
  • नमकीन छाछ, मक्खन, ताजा पनीर, उबला हुआ गाय के दूध का सेवन करें।
  • घी में  तले हुए सूखे मेवे खाएं या फिर बादाम,कद्दू के बीज, तिल के बीज, सूरजमुखी के बीजों को पानी में भिगोकर खाएं।
  • खीरा, गाजर, चुकंदर, पालक, शकरकंद आदि सब्जियों का नियमित सेवन करें।
  • मूंग दाल, राजमा, सोया दूध का सेवन करें।

 

वात प्रकृति वाले लोगों को क्या नहीं खाना चाहिए 

अगर आप वात प्रकृति के हैं तो निम्नलिखित चीजों के सेवन से परहेज करें।

  • साबुत अनाज जैसे कि बाजरा, जौ, मक्का, ब्राउन राइस आदि के सेवन से परहेज करें।
  • किसी भी तरह की गोभी जैसे कि पत्तागोभी, फूलगोभी, ब्रोकली आदि से परहेज करें।
  • जाड़ों के दिनों में ठंडे पेय पदार्थों जैसे कि कोल्ड कॉफ़ी, ब्लैक टी, ग्रीन टी, फलों के जूस आदि ना पियें।
  • नाशपाती, कच्चे केले आदि का सेवन ना करें।

 

जीवनशैली में बदलाव 

जिन लोगों का वात अक्सर असंतुलित रहता है उन्हें अपने जीवनशैली में ये बदलाव लाने चाहिए।

  • एक निश्चित दिनचर्या बनाएं और उसका पालन करें।
  • रोजाना कुछ देर धूप में टहलें और आराम भी करें।
  • किसी शांत जगह पर जाकर रोजाना ध्यान करें।
  • गर्म पानी से और वात को कम करने वाली औषधियों के काढ़े से नहायें। औषधियों से तैयार काढ़े को टब में डालें और उसमें कुछ देर तक बैठे रहें।
  • गुनगुने तेल से नियमित मसाज करें, मसाज के लिए तिल का तेल, बादाम का तेल और जैतून के तेल का इस्तेमाल करें।
  • मजबूती प्रदान करने वाले व्यायामों को रोजाना की दिनचर्या में ज़रूर शामिल करें।

 

वात में कमी के लक्षण और उपचार 

वात में बढ़ोतरी होने की ही तरह वात में कमी होना भी एक समस्या है और इसकी वजह से भी कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं। आइये पहले वात में कमी के प्रमुख लक्षणों के बारे में जानते हैं।

वात में कमी के लक्षण :

  • बोलने में दिक्कत
  • अंगों में ढीलापन
  • सोचने समझने की क्षमता और याददाश्त में कमी
  • वात के स्वाभाविक कार्यों में कमी
  • पाचन में कमजोरी
  • जी मिचलाना

 

उपचार :

वात की कमी होने पर वात को बढ़ाने वाले आहार का सेवन करना चाहिए। कडवे, तीखे, हल्के एवं ठंडे पेय पदार्थों का सेवन करें। इनके सेवन से वात जल्दी बढ़ता है। इसके अलावा वात बढ़ने पर जिन चीजों के सेवन की मनाही होती है उन्हें खाने से वात की कमी को दूर किया जा सकता है।

 

साम और निराम वात 

हम जो भी खाना खाते हैं उसका कुछ भाग ठीक से पाच नहीं पता है और वह हिस्सा मल के रुप में बाहर निकलने की बजाय शरीर में ही पड़ा रहता है। भोजन के इस अधपके अंश को आयुर्वेद में “आम रस’ या ‘आम दोष’ कहा गया है।

जब वात शरीर में आम रस के साथ मिल जाता है तो उसे साम वात कहते हैं। साम वात होने पर निम्नलिखित लक्षण नजर आते हैं।

  • मल-मूत्र और गैस बाहर निकालने में दिक्कत
  • पाचन शक्ति में कमी
  • हमेशा सुस्ती या आलस महसूस होना
  • आंत में गुडगुडाहट की आवाज
  • कमर दर्द

यदि साम वात का इलाज ठीक समय पर नहीं किया गया तो आगे चलकर यह पूरे शरीर में फ़ैल जाता है और कई बीमारियों होने लगती हैं।

जब वात, आम रस युक्त नहीं होता है तो यह निराम वात कहलाता है। निराम वात के प्रमुख लक्षण त्वचा में रूखापन, मुंह जीभ का सूखना आदि है. इसके लिए तैलीय खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन करें।

 

अगर आप वात प्रकृति के हैं और अक्सर वात के असंतुलित होने से परेशान रहते हैं तो ऊपर बताए गए नियमों का पालन करें। यदि समस्या ठीक ना हो रही हो या गंभीर हो तो किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करें।