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Shyamak: श्यामाक के हैं बहुत अनोखे फायदे- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

वानस्पतिक नाम : Echinochloa frumentacea Link (इकाइनोक्लोआ फ्रूमेन्टेसिआ)

Syn-Oplismenus frumentaceus (Link) Kunth

कुल : Poaceae (पोएसी)

अंग्रेज़ी में नाम : Japanese barnyard millet (जैपैनीज बार्नयार्ड मिलेट)

संस्कृत-श्यामाक, श्यामक, श्याम, त्रिबीज, अविप्रिय, सुकुमार, राजधान्य, तृणबीजोत्तम; हिन्दी-शमूला, सांवा, सावाँ; कन्नड़-समै (Samei), सवै (Savei); गुजराती-साप्रो (Sapro), सामो (Samo); तेलुगु-ओड्डलु (Oddalu); तमिल-कुद्राइवलि पिल्लु (Kudrevali pillu); बंगाली-सनवा (Sanwa), शामूला (Shamula); पंजाबी-सामा (Sama), चन्द्रा (Chandra); मराठी-जंगली सामा (Jangli sama), सामुल (Samul); मलयालम-सामुल (Samul)।

अंग्रेजी-साइबेरियन मिलेट (Saiberian millet), साँवा मिलेट (Sawa millet); फारसी-बजरी (Bajri)।

परिचय

समस्त भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में लगभग 2200 मी की ऊँचाई तक इसकी खेती की जाती है। यह सेवन करने में रुचिकर तथा बल्य होता है। यह ऊँचा, पुष्ट, चिकना, वर्षायु, शाकीय पौधा होता है। इसकी बाली अरोमश तथा भूरे वर्ण की होती हैं। इसके बीज गोल, चपटे तथा चिकने होते हैं।

आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव

सावाँ मधुर, कषाय, शीत, रूक्ष, लघु, कफपित्तशामक, वातकारक, क्लेद का शोषण करने वाला, अवृष्य, संग्राही तथा लेखन करने वाला होता है।

यह दाह, रक्त विकार तथा विषनाशक होता है।

सावाँ का पौधा विबन्ध तथा पैत्तिकविकारों में लाभप्रद होता है।

औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि

  1. कास-सावाँ से निर्मित भोज्य पदार्थों को यूष अथवा तिक्त रस प्रधान शाकों के साथ सेवन करने से कास में लाभ होता है।
  2. जलोदर-यदि कोई व्यक्ति एक वर्ष तक भोजन में लवण का परित्याग कर, श्यामाक का प्रयोग करे तो उसे जलोदर में निश्चित ही लाभ मिलता है।
  3. विबन्ध-जिनको विबंध रहता है उन्हें श्यामाक से निर्मित भोज्य पदार्थो का सेवन करना चाहिए।
  4. अर्श-सावाँ के भात का यूष एवं अम्ल पदार्थों के साथ सेवन करने से अर्श में लाभ होता है।
  5. प्रमेह-प्रमेह से पीड़ित व्यक्ति को भोजन में श्यामक का प्रयोग पथ्य है।
  6. श्यामाक के पौधे का रस निकालकर पीने से रक्तप्रदर तथा प्रमेह में लाभ होता है। (गेहूँ के ज्वारे की तरह श्यामाक का ज्वारा भी Hemoglobin की वृद्धि करता है)
  7. ऊरुस्तम्भ-नमक रहित कम तैल में पकाए हुए पत्र शाक के साथ सावाँ की रोटी आदि भक्ष्य पदार्थों का सेवन करने से उरुस्तम्भ में लाभ होता है।
  8. पित्तज विकार-सांवा की खीर बनाकर सेवन करने से पित्तज विकारों का शमन होता है।
  9. श्यामाक वातकारक होता है, अत वातज प्रकृति के व्यक्तियों को श्यामाक का सेवन कम मात्रा में करना चाहिए। इसके विपरीत पित्तज तथा कफज प्रकृति के व्यक्ति श्यामाक का सेवन कर सकते हैं।

प्रयोज्याङ्ग  : बीज।

मात्रा  : चिकित्सक के परामर्शानुसार।

विशेष  : श्यामाक भारतवर्ष के पहाड़ी क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाला सुस्वादु व सात्त्विक आहार है। व्रतों व पर्वों में फलाहार के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है। यह अत्यन्त पौष्टिक होता है।