वानस्पतिक नाम : Celosia argentea Linn. (सीलोशिआ अर्जेन्टिया)
कुल : Amaranthaceae (एमारेन्थेसी)
अंग्रेज़ी नाम : Cock”s Comb (कॉक्स कॉम्ब)
संस्कृत-शितिवारक, शितिवार, क्षेत्रनाशिनी, क्षेत्रभूषा, शीर्षमञ्जरी, श्रीहस्तिनी, सिंहकेशी; हिन्दी-सुखाली, सुलवारी, मोरशिखा भेद, श्वेत मुर्गा, सिरिपारी; उर्दू-सारवली (Sarwali); गुजराती-मोरशिखा (Morshikha), लम्बाडी (Lambadi); तेलुगु-गुरुगु (Gurugu), पंचेशेट्टू (Panchechettu); नेपाली-सिडरे फूल (Sidere phul); पंजाबी-सरपंख (Sarpankh), चिलचिल (Chilchil); बंगाली-मुर्गा (Murga), श्वेतमुर्गा (Swetmurga); मराठी-कुर्दु (Kurdu), कुरदा (Kurda)।
अंग्रेजी-क्वेल ग्रास (Quail grass), सिल्वर स्पाइक्ड (Cocks comb), रेड फॉक्स (Red fox), फेदर कॉक्स कॉम्ब (Feather cock”s comb); अरबी-बर्तानकी (Bartanaki), बाराटंकी (Baratanaki)।
परिचय
भारत के हिमालयी क्षेत्रों में लगभग 1500 मी की ऊँचाई तक तथा समस्त मैदानी भागों में बेकार पड़ी भूमि व सड़कों के किनारे पर पाया जाता है। इसके पुष्प शुभ श्वेत से गुलाबी वर्ण होते हैं। इसके फल अण्डाकार तथा गोलाकार होते हैं; जिसमें 4-8, झिल्लीदार, कृष्ण वर्ण के चमकीले, बीज होते हैं।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
बीज-शीत, अतिसार शामक, कामोत्तेजक, मूत्रल एवं मृदुकारी।
पत्र-ज्वरघ्न, बाजीकर।
पुष्प शीर्ष-श्वेत प्रदर, आमातिसार, मुखनासागत रक्तस्राव, अर्श, मूत्रगत रक्तस्राव एवं अतिसार शामक।
औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि
- मुखव्रण-बीजों का क्वाथ बनाकर गरारा करने से मुखव्रण में लाभ होता है।
- मधुमेह-1 ग्राम बीज चूर्ण का सेवन करने से मधुमेह में लाभ होता है।
- मूत्रकृच्छ्र-बीजों का क्वाथ बनाकर पीने से मूत्रकृच्छ्र तथा मूत्राश्मरी में लाभ होता है।
- रक्तप्रदर-पुष्पों का फाण्ट बनाकर पीने से रक्तप्रदर, श्वेतप्रदर एवं गर्भाशयगत रक्तस्राव में लाभ होता है।
- संधिशूल-बीज सहित पञ्चाङ्ग को पीसकर जोड़ों पर लगाने से संधिशूल तथा शोथ का शमन होता है।
- बलवर्धनार्थ-बीज चूर्ण में दुग्ध एवं शर्करा मिलाकर सेवन करने से बल की वृद्धि होती है।
प्रयोज्याङ्ग :पुष्प, बीज तथा मूल।
मात्रा :चूर्ण 500 मिग्रा-1 ग्राम। पुष्प एवं बीज क्वाथ 10-15 मिली या चिकित्सक के परामर्शानुसार।
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