वानस्पतिक नाम : Crotalaria verrucosa Linn. (क्रोटालेरिया वेर्रुकोसा) Syn-Crotalaria acuminata (DC.) G. Don
कुल : Fabaceae (फैबेसी)
अंग्रेज़ी में नाम : Warted crotalaria
(वार्टेड क्रोटेलेरिया)
संस्कृत-शणपुष्पी, घण्टारवा ; हिन्दी-शनपुष्पी, सुनक, बनसन, पटसन, झुनझुनिया; कोंकणी-खुलाखुला (Khulakhula); कन्नड़-गिजि गिल (Giji gil); गुजराती-घुग्रा (Ghugra), घुघणे (Ghughne); तमिल-वात्ता-कील्लू कील्लूप्पाई (Vatta-killu killuppai), गुलुगल्लूप्पाईचेडी (Guluglluppaichedi), वैल्लैनिकलुकिलुप्यै (Veilleinikalukilupyei); तेलुगु-घेलेफेरिंटा (Gheleferinta); बंगाली-झनझनिआ (Jhanjhania), झनझना (Ghanghana), बनशण (Bansan); नेपाली-छिकू (Chiku); मराठी-घागरी (Ghagri), तिरत (Tirat); मलयालम-किलुकिलुप्पा (Kilukiluppa)।
अंग्रेजी-ब्लू रैटल पौड (Blue rattle pod)।
परिचय
यह समस्त भारत में उसर तथा परती भूमि पर स्वत ही उत्पन्न होती है तथा कई स्थानों पर इसकी खेती की जाती है। इसका पौधा बहुशाखित तथा 60-90 सेमी ऊँचा होता है। इसके पुष्प चमकीले पीले रंग के होते हैं। इसकी फली 2.5-3.8 सेमी लम्बी, दीर्घायत-बेलनाकार, सवृंत तथा बीज संख्या में 10-15, पीत वर्ण के, 5 मिमी लम्बे व चमकीले होते हैं।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
शणपुष्पी कटु, तिक्त, कषाय, उष्ण, लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण, स्निग्ध तथा कफपित्तशामक है।
यह वामक, विष्टम्भी, ग्राही तथा पारद को बांधने वाली होती है।
यह कण्ठ रोग, हृद्रोग, मुखरोग, प्रदर रोग, रक्त-दोष, अजीर्ण, सन्निपात तथा ज्वर-नाशक है।
शणपुष्पी का अर्क पित्तकफशामक होता है।
शणपुष्पी कषाय, मधुर, शीत, गुरु, रूक्ष, विष्टम्भी, ग्राही, रक्तपित्त तथा प्रदर-शामक होता है।
इसके पत्र वामक, कफनिसारक, पैत्तिक-विकार, अग्निमांद्य, ज्वर, कण्ठ विकार, मुख रोग तथा हृद्-विकार-शामक होते हैं।
औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि
प्रयोज्याङ्ग :पत्र, मूल तथा बीज।
मात्रा :चिकित्सक के परामर्शानुसार।
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