वानस्पतिक नाम : Bombax ceiba Linn. (बॉम्बैक्स सीबा) Syn-Bombax malabaricum DC., Salamalia malabarica (DC.) Schott & Endl.
कुल : Bombacaceae (बॉम्बेकेसी)
अंग्रेज़ी में नाम : Silk cotton tree (सिल्क कॉटन ट्री)
संस्कृत-शाल्मलि, मोचा, पिच्छिला, पूरणी, रक्तपुष्पा, स्थिरायु, तूलिनी; हिन्दी-सेमर, सेमल; उड़िया-बूरो (Buro), सालमली (Salmali); कोंकणी-सेनवॉर (Sanvor), सॉवोर (Sauvor); कन्नड़-पूला (Pula), अपूररनी (Apoorarni), बुरागा (Buraga), अपूरनी (Apurani); गुजराती-शीमलो (Shimalo), सीमुलो (Simulo); तमिल-ईलावू (Ilavu), फलाई (Pulai); तेलुगु-बूरागा (Buraga), बूरूगा चेट्टु (Buruga chettu); बंगाली-पगून (Pagun), शिमुल गाछ (Shimul gach), रोक्तो सिमुल (Rokto simul); नेपाली-सीमल (Simal); मराठी-कांटे सांवर (Kante sanvar), लाल सांवर (Lal sanvar), शेमल (Shemal), सरमलो (Sarmalo); मलयालम-ईलावू (Ilavu), मोचा (Mocha)। अंग्रेजी-बाम्बेक्स (Bombex), रेड-सिल्क-कॉटन-ट्री (Red-silk-cotton-tree)।
सफेद सेमल के नाम
संस्कृत-चिरायु, कुत्सितशाल्मलि, रोचन, कूटशाल्मलिक; हिन्दी-सफेद सेमल, हतिआन, कटन; उर्दू-सम्बल (Sambal); कन्नड़-एलावा (Elava), दुडी एलावा (Dudi elava); गुजराती-डोलो शेमलो (Dolo shemalo); तेलुगु-बूरुयासोना (Buruyasauna), कादामि (Kadami), टेल्लाबुरूगा (Tellaburuga), बुरूगा सौना (Buruga sauna); तमिल-बीलीबूरफा (Biliburfa), पनजि (Panji), इलवम् (Ilavam); बंगाली-श्वेतसिमुल (Shwetsimul); मराठी-सफेद सावर (Safed savara), पानड्रेसवारा (Pandresavara), पांढ़री सांवर (Pandhari sanwar); मलयालम-पूला (Pula), पामाला (Pamala), इलावु (Ilavu), मुलीलपाप्पुला (Mullillapappula)।
अंग्रेजी-कैपोक ट्री (Kapok tree), व्हाइट कॉटन ट्री (White cotton tree); अरबी-शजरेत अल कुटुन (Shajaret al kutun)।
परिचय
यह भारत के उष्णकटिबंधीय एवं उपउष्णकटिबंधीय वनों में लगभग 1500 मी की ऊँचाई तक पाया जाता है। वैदिक साहित्य में शाल्मली काष्ठ का प्रयोग दूध इत्यादि के निर्माण के लिए किया गया है। चरकसंहिता में अर्श, उरूस्तम्भ तथा पिचुधारणार्थ प्रयुक्त तैल में शाल्मली का प्रयोग बताया है।
निघण्टुरत्नाकर के अनुसार मोचरस के सेवन से पारद-विकार दूर होते है। चरकसंहिता के पुरीषविरजनीय, शोणितस्थापन, वेदनास्थापन, कषायस्कन्ध तथा सुश्रुतसंहिता के प्रिंग्वादिगणों में इसकी गणना की गई है। इसकी त्वक से एक निर्यास निकलता है, जिसे मोचरस कहते है। यह स्राव ताजी अवस्था में भूरे रंग का तथा पुराना होने पर काले शीशम के रंग का, भंगुर तथा हल्का होता है। इसकी दो प्रजातियों का प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है। कई विद्वान् ऐसा मानते है कि सेमल के फलों से प्राप्त रूई की तकिया बनाकर उसमें सिर रख सोने से निद्रा अच्छी आती है।
इसके वृक्ष लगभग 40 मी तक ऊँचे, अत्यन्त विशाल और मोटे होते हैं। इसका काण्ड कण्टयुक्त होता है। इसके पत्र हस्ताकार होते है। इसके पुष्प चमकीले रक्त वर्ण के, पीत अथवा नारंगी वर्ण के मांसल होते हैं। इसके फल 15-17.5 सेमी लम्बे, काष्ठीय तथा हरे रंग के होते हैं। इसके बीज अनेक, चिकने, तैलीय, कृष्ण अथवा धूसर वर्ण के पतले बीजचोल युक्त होते हैं। इसके फल से प्राप्त रूई का प्रयोग व्रण की चिकित्सा में किया जात है। इसका गोंद शुष्क हल्के भूरे वर्ण के गाल्स (Galls) सदृश एवं पश्चात् में अपारदर्शी एवं गहरे भूरे वर्ण का होता है। सेमल का गोंद मोचरस के नाम से जाना जाता है।
यह 20-30 मी ऊँचा, मध्यमाकार अथवा लम्बा, पर्णपाती वृक्ष होता है। इसकी शाखाएं भूमि के समानान्तर चारों ओर फैली हुई होती हैं तथा नवीन शाखाएं कंटकयुक्त होती हैं। इसके पुष्प श्वेत अथवा पीताभ वर्ण के होते हैं। इसके फल श्वेत, रेशमी रोमों से युक्त तथा लम्बगोल होते हैं। बीज बहुंख्यक, 6 मिमी लम्बे अथवा अधिक लम्बे, गोलाकार अथवा अण्डाकार अथवा नाशपाती के आकार, कृष्ण वर्ण, चमकीले तथा सिल्क के समान रूई से लिपटे हुए होते हैं।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
सेमल मधुर, कषाय, शीत, लघु, स्निग्ध, पिच्छिल, वातपित्तशामक, रसायन, ग्राही, वृष्य, बलकारक, बृंहण, शुक्रवर्धक, कफकारक, धातुवर्धक तथा पुरीषविरजनीय होता है।
यह रक्तपित्त, अतिसार, रक्तदोष, प्रदर तथा संतापनाशक होता है।
सेमल के पुष्प स्वादु, कटु, कषाय, शीतल, गुरु, रूक्ष तथा कफपित्तशामक होते हैं।
यह वातकारक, ग्राही, रक्तदोष तथा प्रदरनाशक होता है।
सेमर का निर्यास (मोचरस) कषाय, कफपित्तशामक, ग्राही, शीतल, स्निग्ध, पुष्टिकारक तथा वीर्यवर्धक होता है।
यह प्रवाहिका, रक्तातिसार, उरक्षत, रक्तवमन तथा श्वेतप्रदर में लाभप्रद है।
सफेद सेमर
सफेद सेमल तिक्त, कटु, उष्ण, कफवातशामक तथा भेदन है।
यह अनाह, प्लीहा-विकार, गुल्म, यकृत्-विकार, विष-प्रभाव, उदर-विकार, विबन्ध, रक्तदोष, मेदोरोग तथा शूल नाशक होता है।
इसकी मूल एवं गोंद बलकारक, मेदोकारक, ज्वरघ्न, मूत्रल तथा वाजीकर होती है।
इसके अपक्वफल मृदुकारी तथा स्भंक होते हैं।
इसकी काण्डत्वक् वामक, मूत्रल, स्तम्भक तथा ज्वरघ्न होती है।
यह उदररोग, विबन्ध, शूल तथा कब्ज नाशक होती है।
इसकी मूल पूयमेह, आमातिसार, सूजाक, ज्वर तथा कष्टकारक मूत्रत्यागता में हितकर होती है।
औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि
सफेद सेमर के प्रयोग
प्रयोज्याङ्ग : कंटक, वृन्त, छाल, पुष्प, पत्र तथा निर्यास (मोचरस)।
मात्रा : त्वक् चूर्ण 2-4 ग्राम। मूल चूर्ण 2-4 ग्राम। बीजगिरी चूर्ण 1-3 ग्राम। पुष्प स्वरस 10-15 मिली। चिकित्सक के परामर्शानुसार।
आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार, त्रिफला चूर्ण पेट से जुड़ी समस्याओं के लिए बेहद फायदेमंद है. जिन लोगों को अपच, बदहजमी…
डायबिटीज की बात की जाए तो भारत में इस बीमारी के मरीजों की संख्या साल दर साल बढ़ती जा रही…
मौसम बदलने पर या मानसून सीजन में त्वचा से संबंधित बीमारियाँ काफी बढ़ जाती हैं. आमतौर पर बढ़ते प्रदूषण और…
यौन संबंधी समस्याओं के मामले में अक्सर लोग डॉक्टर के पास जाने में हिचकिचाते हैं और खुद से ही जानकारियां…
पिछले कुछ सालों से मोटापे की समस्या से परेशान लोगों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. डॉक्टरों के…
अधिकांश लोगों का मानना है कि गौमूत्र के नियमित सेवन से शरीर निरोग रहता है. आयुर्वेदिक विशेषज्ञ भी इस बात…