सौभाग्यामृतजीरपञ्चलवणव्योषाभया।
क्षामलानिश्चन्द्राभकशुद्धगन्धकरसानेकीकृतान भावयेत् ।
निर्गुण्डीयुगभृङ्गराजकवृषापामार्गपत्रोल्लसत्प्रत्येकस्वरसेन सिद्धवटिका हन्ति त्रिदोषोदयम् ।।
येषां शीतमतीव दाहमखिलं स्वेदद्रावार्द्रीकृंनिद्रं घोरतरां समस्तकरणव्यामोहमूढं मन ।
शूलं श्वासबलासकाससहितं मूर्च्छा।
रुचितृड्ज्वरं तेषां वै परिहृत्य जीतिवमसौ गृह्णारति मृत्योर्मुखात् ।।
भै.र.5/603-604,
क्र.सं. घटक द्रव्य प्रयोज्यांग अनुपात
मात्रा– 250 मिली ग्राम
अनुपान– आर्द्रक स्वरस, उष्ण जल
गुण और उपयोग– यह समस्त प्रकार के सन्निपात रोगें की सर्वोत्तम दवा है, अत्यंत शीतज्वर, दाहज्वर, प्रलेपक ज्वर, घोर मूर्च्छा युक्त ज्वर, तन्द्रा, समस्त इन्द्रियों का मूर्च्छित होना, मन का खोए रहना, साँस चढ़ना, घोर कफयुक्त खाँसी, बेहोशी, भोजन के प्रति अनिच्छा, प्यास की अधिकता, पसलियों में दर्द इन सब से युक्त ज्वर को यह नष्ट करती है।
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