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Sahdevi: सहदेवी के हैं बहुत अनोखे फायदे- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

सहदेवी का परिचय (Introduction of Sahdevi) 

समस्त भारत में यह लगभग 1200 मी0 की ऊचाईं तक पायी जाती है। सामान्यत खरपतवार के रूप में यह खाली पड़े मैदानी भागों में तथा सड़कों के किनारों पर पाई जाती है। इसके सन्दर्भ में कहा जाता है कि इसकी मूल को सिर के नीचे रखकर साने से निद्रा अच्छी आती है तथा सिर में इसकी मूल को बांधने से ज्वर का शमन होता है। यह  15-75 सेमी ऊँचा, सीधा अथवा प्रसरणशील, श्वेत रोमश, शाकीय पौधा होता है। सहदेवी (Sahdevi) के पुष्प गुलाबी-बैंगनी वर्ण के होते हैं।

वानस्पतिक नाम : Vernonia cinerea (Linn.) Less. (वर्नोनिया साइनैरिया) Syn-Conyza cinerea Linn., Cyanthillium cinereum (Linn.) H. Rob.

कुल : Asteraceae (ऐस्टरेसी)

अंग्रेज़ी में नाम : Fleabane (फ्लीबेन)

संस्कृत-सहदेवी, दण्डोत्पला, सहदेवा; हिन्दी-सहदेई, सहदैया; कन्नड़-करे हिन्दी (kare hindee), सहदेबी (Sahadebi); गुजराती-सहदेवी (Sahadevi), सदोरी (Sadori) सदोडी (Sadodi), शेदरडी (Shedradi); तमिल-नैचिट्टे (Neichettei), मुकूट्टीपुनडू (Mukuttipundu); तेलुगु-घेरिट्टेकरनिना (Gherittkarnina), गारिटिकम्मा (Garitikamma); बंगाली-कूकसीम (Kuksim), छोट कुकासिमा (Chot kukasima), कालाजीरा (Kala jira); पंजाबी-सहदेवी (Sahadevi) मराठी-सहदेवी (Sahadevi), सायिदेवि (Sayidevi); मलयालम-पिरिना (Pirina), पूवनकुरुनथल (Puvankuruntal)।

अंग्रेजी-ऐश कलर्ड ऑयरनवीड (Ash Colored iron weed), ऐश कलर्ड फ्लीबेन (Ash coloured flebane), परपैल फ्लीबेन (Purple fleabane)।

आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव

सहदेवी (Sahdevi) तिक्त, उष्ण, लघु, रूक्ष तथा कफवातशामक होती है।

यह वातानुलोमक, निद्राकारक; मूत्रकृच्छ्र, विषमज्वर तथा सिध्म-नाशक है।

सहदेवी का पञ्चाङ्ग मधुर, शीत, बलकारक, आमाशयोत्तेजक, स्वेदक, शोथहर, जीवाणुनाशक, कवकनाशी, विषाणुनाशक, मूत्रल शोधक तथा अश्मरीनाशक होता है।

इसके बीज विषघ्न, कृमिहर तथा कटु होते हैं।

इसके पुष्पों का प्रयोग नेत्र की श्लैष्मिक कला शोथ, ज्वर एवं वात प्रकोप के उपचार के लिए हितकर है।

औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि

  1. प्रदर-1 ग्राम सहदेवी (Sahdevi)  मूल कल्क को बकरी के दूध के साथ सेवन करने से प्रदर रोग का शमन होता है।
  2. श्लीपद-सहदेवी मूल कल्क में हरताल मिलाकर लेप करने से चिरकालीन तथा दुर्निवार्य श्लीपद रोग का शमन हो जाता है।
  3. रक्तचंदन तथा सहदेवी को पीसकर लेप करने से श्लीपद में लाभ होता है।
  4. सहदेवी के पत्र-स्वरस को तैल में उबालकर लेप करने से श्लीपद रोग में लाभ होता है।
  5. विस्फोटक-सहदेवी (Sahdevi) के कल्क को घी में सेंककर विस्फोट पर बाँधने से विस्फोटकों का शमन होता है।
  6. पिडका-चावल के धोवन में सहदेवी मूल को घिसकर पिडका पर लेप करने से लाभ होता है।
  7. शत्रक्षत-शत्रजन्य क्षत में सहदेवी स्वरस भरकर ऊपर से शरपुंखा स्वरस डालकर वत्र की पट्टी बाँध देने से शीघ्र व्रण का रोपण होता है।
  8. अपची-सहदेवी मूल (Sahdevi) को पुष्य-नक्षत्र में उखाड़कर बांधने से अपची रोग में लाभ होता है।
  9. विसर्प-सहदेवी (Sahdevi) पत्र-स्वरस का लेप करने से विसर्प एवं पामा में लाभ होता है।
  10. ज्वर-सहदेवीस्वरस से सिद्ध किया गया तैल ज्वरनाशक है।
  11. सहदेवी की मूल को सिर में बांधने से विषम ज्वर का शमन होता है तथा नींद अच्छी आती है।
  12. सहदेवी मूल से सिद्ध किए हुए जल से बालक को स्नान कराकर, गुग्गुलु, हींग, मोरपंख, वन तथा नीम पत्र से धूपन करने से रोगों तथा ग्रहादि दोषों से बालक की रक्षा होती है।

प्रयोज्याङ्ग  : पञ्चाङ्ग।

मात्रा  : कल्क 1 ग्राम या चिकित्सक के परामर्शानुसार।