वानस्पतिक नाम : Tecomella undulata (Sm.) Seem. (टेकोमेला अण्ड्यूलैटा) Syn-Tecoma undulata (Sm.) G. Don
कुल : Bignoniaceae
(बिगनोनिएसी)
अंग्रेज़ी नाम : Rohida tree (रोहिडा ट्री)
संस्कृत-रोहितक, रक्तघ्न, रोहित, दाड़िमपुष्पक, प्लीहाशत्रु, दाड़िमच्छद; हिन्दी-रोहेडा, रोहिड़ा, अरूआर; गुजराती-रोहड़ो (Rohado), रागतरोहीडो (Ragat rohido); नेपाली-रोहितक (Rohitak); पंजाबी-रोहिरा (Rohira), लहुरा लहर (Lahura lahar); मराठी-रोहिड़ा (Rohida), रक्तरोडा (Rakhtroda), रक्तट्रोडा (Rakhtoroda)।
अंग्रेजी-वेव्ड्-लीव्ड् बिग्नोनिया (Waved-leaved bignonia), डेसर्ट टीक (Desert teak), मारवाढ़ टीक (Marwar teak)।
समस्त भारत के शुष्क भागों में लगभग 900 मी की ऊँचाई तक पाया जाता है। चरकसंहिता में हृद्रोग में एंव सुश्रुत में पैतिक काचरोग में रोहितक का प्रयोग बताया गया है। डल्हण ने रोहितक पुष्प को दाड़िमसदृश पुष्प की उपमा दी है। इसके पुष्प अनार के पुष्प के जैसे सुंदर, रक्त या गहरे नारंगी वर्ण के होते हैं। इसके पुष्प एंव पत्र अनार के जैसे होते हैं, इसलिए इसे दाड़िमपुष्पक व दाड़िमच्छद कहा जाता है। इसके पुष्प एंव छाल लाल वर्ण की होती है इसलिए इसे रक्त पुष्पक व रक्तवल्क कहा जाता है।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
रोहितक तिक्त, कटु, कषाय, शीत, लघु, स्निग्ध, कफपित्तशामक, रक्त प्रसादक तथा रुचिवर्धक होता है।
यह यकृत् रोग, प्लीहोदर, गुल्म, उदररोग, कर्णरोग, विष वेग, कृमिरोग, नेत्ररोग, व्रण, मेद, आनाह, विबन्ध, शूल तथा भूतबाधानाशक है।
इसकी काण्डत्वक् कृमि; उपदंश, पामा, यकृत् तथा प्लीहावृद्धि, पाण्डु, कामला, मूत्रविकार, अर्श, श्वेतकुष्ठ, श्वेतप्रदर तथा ज्वरशामक होती है।
इसके बीज विरेचक, कृमिघ्न; व्रण, रक्तविकार, नेत्र तथा कर्णविकार शामक होते हैं।
आमयिक प्रयोग
प्रयोज्याङ्ग :मूल, शाखा, पुष्प तथा मूल त्वक्।
मात्रा :क्वाथ 10-15 मिली या चिकित्सक के परामर्शानुसार।
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