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Rohitaka: रोहितक के हैं बहुत अनोखे फायदे- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

वानस्पतिक नाम : Tecomella undulata (Sm.) Seem. (टेकोमेला अण्ड्यूलैटा) Syn-Tecoma undulata (Sm.) G. Don      

कुल : Bignoniaceae

(बिगनोनिएसी)

अंग्रेज़ी नाम : Rohida tree (रोहिडा ट्री)

संस्कृत-रोहितक, रक्तघ्न, रोहित, दाड़िमपुष्पक, प्लीहाशत्रु, दाड़िमच्छद; हिन्दी-रोहेडा, रोहिड़ा, अरूआर; गुजराती-रोहड़ो (Rohado), रागतरोहीडो (Ragat rohido); नेपाली-रोहितक (Rohitak); पंजाबी-रोहिरा (Rohira), लहुरा लहर (Lahura lahar); मराठी-रोहिड़ा (Rohida), रक्तरोडा (Rakhtroda), रक्तट्रोडा (Rakhtoroda)।

अंग्रेजी-वेव्ड्-लीव्ड् बिग्नोनिया (Waved-leaved bignonia), डेसर्ट टीक (Desert teak), मारवाढ़ टीक (Marwar teak)।

समस्त भारत के शुष्क भागों में लगभग 900 मी की ऊँचाई तक पाया जाता है। चरकसंहिता में हृद्रोग में एंव सुश्रुत में पैतिक काचरोग में रोहितक का प्रयोग बताया गया है। डल्हण ने रोहितक पुष्प को दाड़िमसदृश पुष्प की उपमा दी है। इसके पुष्प अनार के पुष्प के जैसे सुंदर, रक्त या गहरे नारंगी वर्ण के होते हैं। इसके पुष्प एंव पत्र अनार के जैसे होते हैं, इसलिए इसे दाड़िमपुष्पक व दाड़िमच्छद कहा जाता है। इसके पुष्प एंव छाल लाल वर्ण की होती है इसलिए इसे रक्त पुष्पक व रक्तवल्क कहा जाता है।

आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव

रोहितक तिक्त, कटु, कषाय, शीत, लघु, स्निग्ध, कफपित्तशामक, रक्त प्रसादक तथा रुचिवर्धक होता है।

यह यकृत् रोग, प्लीहोदर, गुल्म, उदररोग, कर्णरोग, विष वेग, कृमिरोग, नेत्ररोग, व्रण, मेद, आनाह, विबन्ध, शूल तथा भूतबाधानाशक है।

इसकी काण्डत्वक् कृमि; उपदंश, पामा, यकृत् तथा प्लीहावृद्धि, पाण्डु, कामला, मूत्रविकार, अर्श, श्वेतकुष्ठ, श्वेतप्रदर तथा ज्वरशामक होती है।

इसके बीज विरेचक, कृमिघ्न; व्रण, रक्तविकार, नेत्र तथा कर्णविकार शामक होते हैं।

आमयिक प्रयोग

  1. प्लीहोदर-(रोहितकादि योग)-रोहितक की पतली लता समान शाखाओं के छोटे-छोटे टुकड़ों को सातदिनों तक हरीतकी के क्वाथ अथवा गोमूत्र में डाल कर, फिर हाथों से मसलकर, कपड़े से छानकर 10-15 मिली मात्रा में पीने से समस्त उदररोग, कृमिरोग, कामला, गुल्म, प्रमेह, अर्श आदि व्याधियों में लाभ होता है। इसे प्रतिदिन प्रात काल पीना चाहिए।
  2. यकृत्प्लीहोदर-5 ग्राम रोहीतक घृत का सेवन करने से यकृत्प्लीहोदर, गुल्म, श्वास आदि रोगों में लाभ होता है।
  3. 15-20 मिली रोहीतक क्वाथ का सेवन करने से यकृत् विकारों में लाभ होता है।
  4. 1-2 ग्राम रोहीतक एवं हरीतकी चूर्ण को गोमूत्र अथवा सुंधबाला से भावित कर सेवन करने से सभी प्रकार के उदररोग, प्लीहा, प्रमेह, अर्श आदि रोगों का शमन होता है।
  5. रोहितकारिष्ट का सेवन करने से अर्श, ग्रहणी, पाण्डु, हृदरोग, प्लीहावृद्धि गुल्म, उदररोग, कुष्ठ, शोथ तथा अरुचि में लाभ होता है।
  6. कफपित्तजन्य प्रमेह-समभाग कम्पिल्लक, सप्तपर्ण, शाल, विभीतक, रोहितक, कुटज तथा कपित्थ के पुष्पों के चूर्ण (1-3 ग्राम) को मधु के साथ सेवन करने से कफज तथा पित्तज प्रमेह में लाभ होता है।
  7. श्वेतप्रदर-रोहितक मूल त्वक् कल्क का सेवन करने से श्वेतप्रदर में लाभ होता है।
  8. उपदंश-रोहेड़ा की छोटी-छोटी टहनियों का क्वाथ बनाकर 10-15 मिली मात्रा में पिलाने से उपदंश में लाभ होता है।
  9. कुष्ठ (कोढ़)-कुष्ठ रोग में स्नान, पान आदि बाह्याभ्यंतर कर्मों के लिए रोहितक क्वाथ का प्रयोग करना प्रशस्त है।

प्रयोज्याङ्ग  :मूल, शाखा, पुष्प तथा मूल त्वक्।

मात्रा  :क्वाथ 10-15 मिली या चिकित्सक के परामर्शानुसार।