त्रिपलं शृंगवेरस्य चतुर्थं मरिचस्य च।
पिप्पल्याः कुडवार्धञ्च चव्यञ्च पलमेव च।।
तालीशपत्रस्य पलं पलाद्ध्र्रं केशरस्य च।
द्वे पले पिप्पली मूलादर्द्ध कर्षञ्च पत्रकात्।।
सूक्ष्मैला कर्षमेकञ्च कर्षं त्वगमृणालयोः।
गुडात्पलानि त्रिंशच्च चूर्णमेकत्र कारयेत्।। भै.र., अर्शोरोगाधिकार
क्र.सं. घटक द्रव्य प्रयोज्यांग अनुपात
मात्रा– 2-4 ग्राम
अनुपान– मधु, जल, मद्य, मांसरस, यूष।
गुण और उपयोग– यह गुटिका खूनी एवं बादी बवासीर की सर्वोत्तम दवा है। इसके नियमित सेवन से बवासीर में खून गिरना बंद हो जाता है तथा मस्से सूख जाते है। इसके साथ ही यह पाण्डु, कृमि, पेट दर्द, गुल्म, खाँसी, दमा, मूत्र संबंधित विकार, गलग्रह, विषमज्वर, भोजन न पचना, ह्य्दयरोग इन रोगों में भी लाभप्रद है।
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