पाटला एक औषधीय वनस्पति है। आयुर्वेदिक ग्रन्थ चरक संहिता में पाटला के गुणों के बारे में विस्तार से बताया गया है। विशेषज्ञों के अनुसार पाटला के फूल बवासीर और कंजक्टीवाइटिस जैसी समस्याओं में बहुत उपयोगी हैं। इस लेख में हम आपको पाटला के फायदे, उपयोग और औषधीय गुणों के बारे में बता रहे हैं।
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यह 9-18 मी तक की ऊंचाई वाला मध्यम आकार का पेड़ होता है। आमतौर पर यह पेड़ आद्र स्थानों और पर्णपाती जंगलों में पाया जाता है। पाटला के फूलों का रंग लाल, सफ़ेद और पीला होता है और इन्हीं रंगों के आधार पर ही पाटला की तीन प्रजातियाँ होती हैं। ये फूल सेहत के लिए लाभदायक हैं, इन फूलों के अलावा पाटला की जड़ें और छाल भी कई रोगों के इलाज में इस्तेमाल की जाती हैं।
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पाटला का वानस्पतिक नाम Stereospermum chelonoides (Linn. f.) DC. (स्टीरिओस्पर्मम् चीलोनोऑडिस)
Syn-Stereospermum suaveolens (Roxb.) DC. है। यह Bignoniaceae (बिग्नोनिएसी) कुल का पौधा है। आइये जानते हैं कि अन्य भाषाओं में इस पौधे को किन नामों से जाना जाता है।
Trumpet Tree Flower in :
अगर आप सिरदर्द से परेशान हैं तो पाटला के उपयोग से सिरदर्द से आराम पा सकते हैं। इसके लिए पाटला के बीजों को पानी में घिसकर माथे पर लगाएं। इससे दर्द से आराम मिलता है।
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अगर आप अक्सर हिचकी आने की समस्या से परेशान हैं तो पाटला का उपयोग करे। इसके लिए पाटला के फल एवं फूल के चूर्ण (1-2 ग्राम) को शहद के साथ सेवन करें। इसके सेवन से हिचकी रूक जाती है।
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एसिडिटी होने के कई कारण हैं, कभी खराब खानपान से तो कभी खाली पेट खट्टी चीजें खा लेने से भी एसिडिटी हो जाती है. एसिडिटी दूर करने के लिए एलोपैथी दवाओं की बजाय घरेलू उपायों को अपनाना चाहिए. विशेषज्ञों के अनुसार पाटला छाल का शरबत (फांट) बनाकर 10-15 मिली मात्रा में पीने से एसिडिटी में आराम मिलता है।
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विशेषज्ञों का कहना है पाटला का उपयोग करना पथरी की समस्या में लाभदायक है। इसके लिए 60 मिग्रा पाटला-क्षार को भेड़ के मूत्र के साथ कुछ दिन तक नियमित सेवन करें। इससे पथरी टूट-टूट कर निकल जाती है।
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पेशाब करते समय दर्द और जलन होना, मूत्र मार्ग में होने वाली आम समस्याएं हैं। अगर आप इन समस्याओं से परेशान हैं तो पाटला का उपयोग करें। इसके लिए चतुर्गुण जल में पाटला भस्म (65 मिग्रा) घोलकर सात बार छान लें। इसमें तिल का तेल मिलाकर मात्रानुसार पीने से मूत्र मार्ग से संबधित बीमारियाँ नष्ट होती हैं। खुराक संबंधित अधिक जानकारी के लिए चिकित्सक से संपर्क करें।
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वात दोष के असंतुलित या प्रकुपित होने से भी कई तरह की बीमारियां होने लगती हैं। इन बीमारियों से बचाव और इनके इलाज के लिए पाटला के 10-20 मिली काढ़े में 500 मिग्रा सोंठ का चूर्ण मिलाकर पिएं।
त्वचा रोगों से पीड़ित मरीजों के लिए भी यह जड़ी बूटी काफी उपयोगी है। पाटला की छाल से सर्षप तेल को पकाकर, छानकर लगाने से त्वचा रोगों में लाभ मिलता है।
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विशेषज्ञों के अनुसार पाटला के पेड़ के निम्न हिस्से सेहत के लिए उपयोगी हैं।
आप किसी बीमारी के इलाज में पाटला का उपयोग करना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह लें।
भारत में पाटला का पौधा सामान्य तौर पर आर्द्र स्थानों और पर्णपाती वनों में 1200 मी की ऊँचाई पर पाया जाता है। इसके अलावा यह पौधा उप हिमालयी क्षेत्रों में भी लगभग 1500 मी की ऊँचाई तक पाया जाता है।
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