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Groundnuts (Peanuts): मूंगफली के हैं बहुत अनोखे फायदे – Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

वानस्पतिक नाम : Arachis hypogaea Linn. (ऐराकिस हाइपोजिया) Syn-Arachis nambyquarae Hoehne

कुल : Fabaceae (फैबेसी)

अंग्रेज़ी नाम : Pea nut (पी नट)

संस्कृत-भूशिम्बी, भूमुद्ग, स्नेहबीजा, मंडपी; हिन्दी-मूंगफली, विलायती मूंग, भोंयशीघ्र; उड़िया-भूईरचना (Bhuirachna); कोंकणी-मुस्सोम्बीबीकन (Mussombibikan); कन्नड़-नेला गुडल (Nela gudal); गुजराती-मांडवी (Mandavi), मूगफली (Mugphali); तमिल-नीलक्कडलई (Nilakkadalai); तैलुगु-नीलासंगलु (Nilasanagalu), वेरुशांगलु (Verushanagalu); बंगाली-बिलातीमूंग (Bilatimung); नेपाली-बदाम (Badam); मराठी-भूई मूग (Bhui muga); मलयालम-नेलाकाला (Nelakkala); मणिपुरी-बदाम (Badam)।

अंग्रेजी-ग्राउन्ड नट (Ground nut), चाईनीज ऑमन्ड (Chinese almond), मंकी नट (Monkey nut)।

परिचय

समस्त भारत में इसकी खेती की जाती है। मूंगफली की देशभेद से कई प्रजातियां होती हैं। इसको देशी बादाम या चीनियां बादाम भी कहा जाता है। इसके पत्र मेथी के पत्तों के जैसे मगर उनसे कुछ बड़े तथा चमकीले हरे रंग के होते हैं। इसके पुष्प सुनहरे-पीत वर्ण के होते हैं। इसके पौधों में से पुष्प बारीक-बारीक तन्तु  के रूप में निकलकर जमीन के अन्दर घुसते है और जमीन में ही तन्तुओं से मूंगफली तैयार होती है। जिसको पकने के बाद खोदकर निकाला जाता है।

आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव

मूंगफली मधुर, स्निग्ध तथा वातकफकारक होती है।

यह ग्राही तथा मल को बाँधने वाली है।

इसके बीज मधुर, श्लक्ष्ण, बलकारक, पोषक, वाजीकर तथा विबंधकारक होते हैं।

इसका तैल मृदुकारक तथा विरेचक होता है।

मूँगफली के तैल में पाए जाने वाले अनसेचुरेटेड वसीय अम्ल शरीर की लिपिड मात्रा और बॉडी माँस इन्डेक्स (लम्बाई एवं वजन का अनुपात) को ठीक रखने में गुणकारी पाए गए।

औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि

  1. मूंगफली को छीलकर उसकी भस्म बनाकर 1 ग्राम भस्म को शहद या गुनगुने जल के साथ सेवन करने से कास-श्वास में लाभ होता है।
  2. हृदविकार-मूंगफली तैल का प्रयोग हृद्विकारों की चिकित्सा में किया जाता है।
  3. अतिसार-1-2 बूँद बीज तैल को पान में डालकर सेवन कराने से अतिसार तथा उदरशूल में लाभ होता है।
  4. मूंगफली को भूनकर काली मिर्च, पुदीना, नींबू तथा अदरख के साथ मिलाकर चटनी बनाकर सेवन करने से पाचन तथा उदर विकारों में लाभ होता है।
  5. मधुमेह-गेंहू के आटे व मूँगफली के आटे से बनी रोटी मधुमेह के रोगियों के लिए लाभप्रद होती है।
  6. वृक्कविकार-तैल का प्रयोग वृक्क विकार तथा शोथ की चिकित्सा में किया जाता है।
  7. संधिशूल-मूंगफली तैल की मालिश करने से संधिशूल का शमन होता है।
  8. त्वक्विकार-मूंगफली तैल को लगाने से दद्रु, पामा तथा कण्डु में लाभ मिलता है।
  9. मूंगफली को भूनकर चूर्ण कर उबटन के अन्य द्रव्यों के साथ मिलाकर त्वचा पर लगाने से त्वचा रोगों में लाभ होता है।
  10. सामान्य दौर्बल्य-मूंगफली तैल का सेवन करने से सामान्य दौर्बल्य का शमन होता है तथा बल की वृद्धि होती है।
  11. सर्दी के मौसम में गुड़ में मूंगफली तथ तिल डालकर जो गुड़ तैयार किया जाता है, वह अत्यन्त पौष्टिक व बलकारक होता है।
  12. मूंगफली, चना तथा मूंग को रात में भिगो कर प्रात नियमित सेवन करने से शरीर की पुष्टि तथा बल की वृद्धि होती है। अधिक व्यायाम व शारीरिक श्रम करने वाले लोगों के लिए यह अत्यन्त लाभकारी प्रयोग है।

प्रयोज्याङ्ग  :बीज।

मात्रा  :तैल 1-2 बूँद या चिकित्सक के परामर्शानुसार।

विशेष  :मूंगफली में उपस्थित पोषक तत्वों के कारण ही मूंगफली को गरीबों का बादाम कहा जाता है। भूनी हुई मूंगफली स्वादु तथा बलकारक होती है, परन्तु उसके सेवन के तुरन्त बाद पानी नहीं पीना चाहिए।

और पढ़े: डायबिटीज डाइट चार्ट

आचार्य श्री बालकृष्ण

आचार्य बालकृष्ण, आयुर्वेदिक विशेषज्ञ और पतंजलि योगपीठ के संस्थापक स्तंभ हैं। चार्य बालकृष्ण जी एक प्रसिद्ध विद्वान और एक महान गुरु है, जिनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में आयुर्वेदिक उपचार और अनुसंधान ने नए आयामों को छूआ है।

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