वानस्पतिक नाम : Origanum majorana Linn. (ओरिगेनम मेजोराना) Syn-Majorana hortensis Moench; Majorana fragrans Raf.
कुल : Lamiaceae (लैमिएसी)
अंग्रेज़ी नाम : Sweet marjoram
(स्वीट मरजोरम)
संस्कृत-मरुबक, समीरण, प्रस्थपुष्प, मरु, फणी, फणिज्जक, मरूतक, मरुत्, खरपत्र, गन्धपत्र, बहुवीर्य, शीतलक, सुराह्व, प्रस्थकुसुम, आजन्मसुरभिपत्र, कुलसौरभ; हिन्दी-अरुआ, मरुवा; उत्तराखण्ड-बन तुलसी (bantulsi); उर्दू-मरवाकुष्ठा (Marvakhustha), मरवा (Marwa); कन्नड़-मरुगा (Maruga); गुजराती-मरवो (Marvo); तमिल-मारू (Marru); तैलुगु-मरुवमु (Maruvamu); बंगाली-मुर्रु (Murru); नेपाली-मरुवा फूल (Marua phul); मराठी-मूरवा (Murwa); मलयालम-मारुवामू (Maruvamu)।
अंग्रेजी-मरजोरम (Marjoram), नौटेड मरजोरम (Knotted marjoram); अरबी-मरदाकुश (Mardaqush), मीजुनजुष (Mizunjush); फारसी-मरजन (Marjan), जोस (Jos)।
परिचय
यह पौधा समस्त भारत में विशेषकर कर्नाटक, आंध्रप्रदेश तथा तमिल घरों की वाटिका में सुगन्धित पत्रों के कारण उगाया जाता है। तुलसी की तरह दिखने वाला यह पौधा अत्यन्त सुगन्धित होता है। इसका पत्र-स्वरस कृमिनाशक होता है। इसके पुष्प बैंगनी अथवा कदाचित् श्वेत वर्ण के तथा फल चिकने होते हैं। यह मूलत यूरोप तथा उत्तरी अफ्रीका का निवासी है। उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका में भी इसकी खेती की जाती है।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
मरूवा हल्का, रूक्ष, तीक्ष्ण, तिक्ता, चरपरा, उष्ण, कफवात-शामक, कुष्ठघ्न, कृमिघ्न, विषघ्न, वेदनास्थापन, दुर्गन्धनाशक, रुचिकारक, दीपन, आर्तवजनन, हृदय-उत्तेजक, ज्वरघ्न, कटु, पौष्टिक तथा पित्तवर्धक है।
इसका पौधा सूक्ष्मजीवाणुरोधी, विषाणुरोधी, कृमिघ्न, क्षुधावर्धक, रक्तशोधक, हृद्य, मूत्रल तथा कफवातशामक होता है।
यह ऐंठन, अवसाद, उदरात्र विकार, अर्धावभेदक, शिरशूल, पक्षाघात, कास तथा श्वास शामक होता है।
औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि
प्रयोज्याङ्ग :पञ्चाङ्ग, पत्र, बीज एवं तैल।
मात्रा :क्वाथ 10-20 मिली। स्वरस 5-10 मिली या चिकित्सक के परामर्शानुसार।
विशेष :कई विद्वान (Ocimum basilicum Linn.) को मरूआ मानते है; परन्तु यह मरूआ से भिन्न दूसरी प्रजाति है।
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