मरिचं कर्षमात्रं स्यात्पिप्पली कर्षसंमिता।।
अर्धकर्षो यवक्षार कर्षयुग्मं च दाडिमम्।
एतच्चूर्णीकृतं युञ्ज्यादष्टकर्षगुडेन हि।।
शाणप्रमाणां गुटिकां कृत्वा वत्रे विधारयेत्।
अस्याः प्रभावात्सर्वे।़
पि कासा यान्त्येव संक्षयम्।। शार्ङ्ग.म.ख.7/13-15
क्र.सं. घटक द्रव्य प्रयोज्यांग अनुपात
मात्रा– 3 ग्राम (चूसने के लिए)
गुण और उपयोग– कास में यह वटी बहुतायत प्रयोग होने वाली प्रचलित दवा है। सभी प्रकार के कास (खाँसी) में यह प्रयोग की जाती है जो तुरन्त आराम पहुँचाने में कारगर है। स्वर भंग, गले की खराश, जुकाम, खाँसी इन सभी में यह लाभ पहुँचाती है। कफ वृद्धि के कारण जब गले में कभी–कभी दर्द होता है अथवा टान्सिल जिन्हें गलशुण्डिका कहा जाता है वह बढ़ जाते हैं ऐसी अवस्था में भोजन व पानी नहीं निगला जाता अथवा कठिन हो जाता है। दर्द इतना तीव्र होता है कि पानी भी नहीं पिया जाता है व गले के भीतर सूजन हो जाती है। श्वास नली कफ से भरी रहती है साथ ही बुखार भी हो जाता है अत इस अवस्था में मरिच्यादि वटी का प्रयोग गर्म जल के साथ करना लाभदायक होता है।
आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार, त्रिफला चूर्ण पेट से जुड़ी समस्याओं के लिए बेहद फायदेमंद है. जिन लोगों को अपच, बदहजमी…
डायबिटीज की बात की जाए तो भारत में इस बीमारी के मरीजों की संख्या साल दर साल बढ़ती जा रही…
मौसम बदलने पर या मानसून सीजन में त्वचा से संबंधित बीमारियाँ काफी बढ़ जाती हैं. आमतौर पर बढ़ते प्रदूषण और…
यौन संबंधी समस्याओं के मामले में अक्सर लोग डॉक्टर के पास जाने में हिचकिचाते हैं और खुद से ही जानकारियां…
पिछले कुछ सालों से मोटापे की समस्या से परेशान लोगों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. डॉक्टरों के…
अधिकांश लोगों का मानना है कि गौमूत्र के नियमित सेवन से शरीर निरोग रहता है. आयुर्वेदिक विशेषज्ञ भी इस बात…