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Marichadi Gutika: मरिचादि गुटिका – एक नाम, कई लाभ- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

मरिचं कर्षमात्रं स्यात्पिप्पली कर्षसंमिता।।

अर्धकर्षो यवक्षार कर्षयुग्मं दाडिमम्।

एतच्चूर्णीकृतं युञ्ज्यादष्टकर्षगुडेन हि।।

शाणप्रमाणां गुटिकां कृत्वा वत्रे विधारयेत्।

अस्याः प्रभावात्सर्वे।़

पि कासा यान्त्येव संक्षयम्।। शार्ङ्ग...7/13-15

क्र.सं. घटक द्रव्य प्रयोज्यांग अनुपात

  1. मरीच (Piper nigrum Linn.) फल 12 ग्राम
  2. पिप्पली (Piper longum Linn.) फल 12 ग्राम
  3. यवक्षार पंचांग 6 ग्राम
  4. दाड़िम (Punica granatum Linn.) फल 24 ग्राम
  5. गुड़ (Jaggery) 96 ग्राम

मात्रा 3 ग्राम (चूसने के लिए)

गुण और उपयोगकास में यह वटी बहुतायत प्रयोग होने वाली प्रचलित दवा है। सभी प्रकार के कास (खाँसी) में यह प्रयोग की जाती है जो तुरन्त आराम पहुँचाने में कारगर है। स्वर भंग, गले की खराश, जुकाम, खाँसी इन सभी में यह लाभ पहुँचाती है। कफ वृद्धि के कारण जब गले में कभीकभी दर्द होता है अथवा टान्सिल जिन्हें गलशुण्डिका कहा जाता है वह बढ़ जाते हैं ऐसी अवस्था में भोजन पानी नहीं निगला जाता अथवा कठिन हो जाता है। दर्द इतना तीव्र होता है कि पानी भी नहीं पिया जाता है गले के भीतर सूजन हो जाती है। श्वास नली कफ से भरी रहती है साथ ही बुखार भी हो जाता है अत इस अवस्था में मरिच्यादि वटी का प्रयोग गर्म जल के साथ करना लाभदायक होता है।