वानस्पतिक नाम : Abelmoschus moschatus Medik. (एबेलमोस्कस् मोस्कैटस) Syn-Hibiscus abelmoschus Linn.
कुल : Malvaceae (मालवेसी)
अंग्रेज़ी नाम : Musk-mallow (मस्क मैलो)
संस्कृत-लताकस्तूरी; हिन्दी-लताकस्तूरी, कस्तूरीदाना, मुष्कदाना; उर्दु-मुष्कादानह (Mushkadanah); कन्नड़-कडुकस्तूरी (Kadu kastoori); गुजराती-मूशकदाना (Mushakdana)लता कस्तुरी (Lata kasturi); तैलुगु-कस्तूरीबेन्दा (Kasturibenda), कर्पूरीबेंड (Karpuribend); तमिल-कटटू कस्तूरी (Kattu kasturi), वेट्टीलाईकस्तूरी (Vettilekasturi); बंगाली-मूषकदाना (Mushakdana), लताकस्तूरी (Latakasturi), कस्तूरी दाना (Kasturidana); नेपाली-कस्तुरी (Kasturi); पंजाबी-धोनार कस्तूरी (Dhonar kasturi); मराठी-कस्तूरीभेन्डे (Kasturibhende), कडुकस्तूरी (Kadukastoori); मलयालम-मुष्कदाणा (Mushkdana), कस्तूरीवेंटा (Kasturiventa)।
अंग्रेजी-इंडियन इपेकाक्युऑन्हा (Indian ipecaeuanha), एमिटिक स्वॉलो वर्ट (Emetic swallow-wort); अरबी-अब्बुलमि मुष्क (Abbulami mushk), हब्बुल-मुष्क (Habbul-mushk); फारसी-मुष्कदाना (Mushkdana)।
परिचय
भारत के समस्त उष्णकटिबंधीय प्रदेशों विशेषतया महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश तथा उत्तराखण्ड के कई स्थानों पर इसकी खेती की जाती है। इसके पौधे देखने में भिण्डी के समान होते हैं। लता कस्तूरी का पौधा पूर्ण रूप से रोमो से आवृत होता है। इसके पुष्प भिण्डी के पुष्प के समान, बड़े, पीत वर्ण के, मध्य में बैंगनी वर्ण के, बिन्दु से होते हैं। इसके फल रोमों से युक्त तथा अग्र भाग पर नुकीले होते हैं। इसके बीज कृष्ण अथवा धूसर भूरे वर्ण के तथा कस्तूरी गंधी होते हैं।
लताकस्तूरी की कई प्रजातियां पाई जाती है जो आकार प्रकार में इसके समान दिखाई देती है परन्तु यह गुणों में अल्प होती है। उपरोक्त वर्णित मुख्य लताकस्तूरी के अतिरिक्त निम्नलिखित दो प्रजातियों का प्रयोग भी चिकित्सा में किया जाता है।
Abelmoschus crinitus Wall. (अरण्यकस्तूरिका)- यह लताकस्तूरी की तरह दिखने वाला 0.5-1.5 मी तक ऊँचा रोमश क्षुप होता है। इसके पत्र 10-15 सेमी चौड़े तथा हस्ताकार व लताकस्तूरी के जैसे होते हैं। इसके पुष्प पीत वर्ण के तथा फल लताकस्तूरी से छोटे, रोमश तथा कोणीय होते है।
Abelmoschus manihot (Linn.) Medik. (वन्यकरपर्णिका)- यह सीधा शाखाप्रशाखायुक्त रोमश काष्ठीय क्षुप होता है। इसके पत्र 3-7 पालीयुक्त, हस्ताकार, रोमश, खुरदरे तथा 10-15 सेमी चौड़े होते हैं। इसके पुष्प पीत वर्ण के होते हैं, इसके फल कोणीय लताकस्तूरी की तरह दिखने वाले व लताकस्तूरी से अल्प गुण वाले होते हैं। इसका प्रयोग रोमकूपशोथ, व्रण आदि त्वचा विकारों की चिकित्सा में किया जाता है।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
लताकस्तूरी कटु, मधुर, तिक्त, शीत, लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण, कफवातशामक, वृष्य, चक्षुष्य, छेदक, सुंधित, वस्तिशोधक तथा हृदय के लिए हितकारी होती है।
यह तृष्णा, वस्तिरोग, मुखरोग, दौर्गंध्य, लालास्राव, अलक्ष्मी, मद तथा छर्दिनाशक होती है।
लता कस्तूरी के पत्र कामोत्तेजक, वामक तथा कफनिसारक होते हैं।
लता कस्तूरी की मूल उत्तेजक, वामक, विरेचक, कफनिसारक, आमवातहर, कटु, विषाणुनाशक तथा रक्तशोधक होती है।
लता कस्तूरी के बीज उत्तेजक, आमाशयिक क्रियाविधिवर्धक, शीतल, बलकारक, वातानुलोमक, मूत्रल, उद्वेष्टरोधी, कृमिघ्न, प्रशामक तथा वाजीकारक होते हैं।
यह दंतमूलगत शोथ, हृद्दौर्बल्य, यौनदौर्बल्य, कास, श्वास, श्वासकष्ट, दाह, अरुचि, छर्दि, अजीर्ण, तृष्णा, आध्मान, शूल, अतिसार, मूत्रकृच्छ्र, पूयमेह, शुक्रमेह, अश्मरी, मुखदौर्गन्ध्य, सामान्य दौर्बल्य तथा श्वित्र में लाभप्रद होता है।
लता कस्तूरी के फायदे (Lata Kasturi benefits in hindi) :
प्रयोज्याङ्ग :फल, बीज, पत्र, त्वक्, मूल तथा पञ्चाङ्ग।
मात्रा :पत्र-स्वरस 5-10 मिली या चिकित्सक के परामर्शानुसार।
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