वानस्पतिक नाम : Gloriosa superba Linn. (ग्लोरियोसा सुपर्बा)? Syn-Gloriosa virescens Lindl., Gloriosa abysinica A. Rich.
कुल : Liliaceae (लिलिएसी)
अंग्रेज़ी नाम : The Glory lily
(दि ग्लोरी लिली)
संस्कृत-कलिहारी, हलिनी, लाङ्गली, शक्रपुष्पी, विशल्या, अग्निशिखा, अनन्ता, वह्निवत्रा गर्भनुत् ; हिन्दी-कलिहारी, कलिकारी, करियारी, कलहिंस, कलारी, लांगुली, करिहारी, लाङ्गलिका; उड़िया-अग्नि-ईखा (Agni-ikha), ओग्निशिखा (Ognisikha), गॉर्भोघट्टोनो (Gorbhoghhatono); उर्दू-कानोल (Kanol), कुलहर (Kulhar); कन्नड़-अग्निशिखे (Agnisikhe), अक्कतान्गबल्ली (Akkatangaballi), करडीकान्नीनागडडे (Karadikanninagadde), कोलीकुतमना गेड्डे (Kolikutamana gedde); कोंकणी-वेगेननकटा (Vaganankta); गुजराती-वरहवर्दी (Varhvardi), कलिहारी (Kalihari), दूधिओ (Dudhio), वचोनाग (vachhonaag), कंकासनी (Kankasani); तमिल-अक्किनीचीलम (Akkinichilam), कलाईप्पाईक्कीझांगु (Kalaippaikkizhangu), कन्नुवेली (Kannuvelli); तेलुगु-अडवीनाभी (Adavinabhi), अग्निशिखा (Agnishikha), गंजेरी (Ganjeri), कलप्पागड्डा (Kalapagadda); बंगाली-विषलांगुली (Bishalanguli), उलटचण्डाल (Ulatchandal); नेपाली-केवारी (Kewari); पंजाबी-मूलिम (Mulim), करियारी (Kariari); मराठी-कललावी (Kallaavi), इंदै (Indai), लालि (Lali), खड्यानाग (Khadyanag), नागाकरिआ (Nagakaria); मलयालम-कण्डल (Kandal), मलट्टमर (Malattamara), मेकट्टोईन्नूई (Macttoennui)।
अंग्रेजी-क्लाईमबिंग लिलि (Climbing lily), मालाबार ग्लोरी लिलि (Malabar glory lily), फ्लेम लिली (Flame lily); फारसी-बुच-नक-हिन्दी (Buch-nak-hindi)।
परिचय
समस्त भारत में लगभग 1500 मी की ऊँचाई तक विशेषत उत्तर-पश्चिमी हिमालय, आसाम, बंगाल एवं दक्षिणी भारत में इसकी बेलें पाई जाती है। इसकी बेलें सुन्दर पुष्पों से युक्त होती हैं। इनके पुष्प देखने में अग्नि की शिखा या अग्नि की लौ के समान दिखाई देते हैं, इसलिए इसे अग्निशिखा, अग्निज्वाला या अग्निमुखी आदि नामों से जाना जाता है। इसके कंद भूमिगत, श्वेत वर्ण के, मांसल, बेलनाकार, द्वि-विभाजित से V-आकार के होते हैं। इसका कन्द विषाक्त होता है, अत सावधानीपूर्वक इसका प्रयोग करना चाहिए।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
लांगली कटु, तिक्त, कषाय, उष्ण, लघु, तीक्ष्ण तथा वातकफ शामक होती है।
यह पित्तकारक, सर, क्षारीय, गर्भपातिनी तथा शल्य को निकालने वाली है।
यह कुष्ठ, शोफ, अर्श, व्रण, शूल, वस्तिशूल, कृमि, विष, कण्डू तथा शोथ नाशक होती है।
इसका पत्र शाक लघुताकारक, तिक्त तथा मल भेदक होता है।
इसका कन्द तिक्त, तापजनन, आर्तवजनन, गर्भस्वी, शोधक, कृमिरोधी, पाचक, आमाशयिक सक्रियतावर्धक, विरेचक, वामक, जठरांत्रक्षोभक, ज्वररोधी, कफनिसारक, रसायन एवं बलकारक है।
औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि
प्रयोज्याङ्ग :मूल (कंद) तथा पत्र।
मात्रा :चिकित्सक के परामर्शानुसार।
विशेष :
आयुर्वेद शात्र में कलिहारी की गणना उपविषों में की गई है, अत इसका प्रयोग मात्रानुसार तथा चिकित्सकीय परामर्शानुसार ही करना चाहिए। इसका प्रयोग शोधन के पश्चात् करना चाहिए।
गर्भवती त्रियों में इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए।
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