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Hinsalu: नव जीवन दे सकती है हिंसालू- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

वानस्पतिक नाम : Rubus idaeus Linn. (रुबस् इडियस) Syn-Rubus idaeus subsp. Vulgatus Arrh.

कुल : Rosaceae (रोजेसी)

अंग्रेज़ी में नाम : European raspberry

(यूरोपिन रसबेरी)

संस्कृत-रक्तहित्रालु, रत्तैशालु, ऐशालु; हिन्दी-रस बेरी, हिंसालू; उर्दू-रसभरी (Rasbhari); गुजराती-रसबेरी।

अंग्रेजी-रसबेरी (Rasberry), रेड रसबेरी (Red raspberry), वाइल्ड रसबेरी (Wild raspberry)।

परिचय

समस्त भारत में हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों पर प्राप्त होती है। फलों के वर्ण के आधार पर इसकी कई प्रजातियाँ होती हैं। यह 2 मी तक ऊँचा, कंटकित, पर्णपाती, द्विवर्षायु अथवा बहुवर्षायु क्षुप होता है। इसका सम्पूर्ण भाग रोमों तथा कण्टको से युक्त होता है। इसके पुष्प श्वेत वर्ण के तथा फल रक्तवर्ण के व गुच्छों में लगे हुए होते हैं।

उपरोक्त वर्णित हिंस्रालू की मुख्य प्रजाति के अतिरिक्त इसकी निम्नलिखित प्रजाति का प्रयोग भी चिकित्सा में किया जाता है।

Rubus ellipticus Sm.  (ग्राम्यहिंस्रालू)- यह 1-3 मी ऊँचा, झाड़ीदार, शाखित, कंटकित, रोमश, छोटा क्षुप होता है। इसके काण्ड कण्टकित होते हैं। इसकी टहनियां भूरे वर्ण की तथा रोमश होती हैं। इसकी पत्तियां गुलाब के पत्तों जैसी किनारों पर कटी हुई होती हैं। पुष्प गुलाबी व बैंगनी वर्ण की आभा से युक्त, श्वेत वर्ण के होते हैं। फल पीले रंग के रसदार तथा स्वादिष्ट होते हैं।

आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव

रसबेरी के पत्र गर्भस्रावकर तथा स्तम्भक होते हैं।

रसबेरी के फल पोषक, बलकारक, क्षुधावर्धक, पाचक तथा स्तम्भक होते हैं।

रसबेरी के पत्र का प्रयोग नेत्रों से श्लेष्म स्राव को कम करता है

पत्र सेवन से रक्तचाप की वृद्धि तथा आकुंचन रक्तचाप में किञ्चित् कमी देखी गई है।

इसके पत्र से प्राप्त टैनिन में पेशी शैथिल्यकर एवं उद्वेष्टनशामक प्रभाव दृष्टिगत होता है।

औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि

  1. नेत्र रोग-दारुहल्दी तथा हिंसालू पत्र का क्वाथ बनाकर नेत्रों को धोने से नेत्रविकारों का शमन होता है।
  2. प्रशीताद-रस्बेरी से निर्मित मिष्टोद (Syrup) का सेवन करने से प्रशीताद तथा अन्य विटामिन C एवं A की कमी से होने वाले रोगों में लाभ होता है।
  3. मुख रोग-इसके पत्तों का क्वाथ बनाकर गरारा करने से मुख एवं कंठ-विकारों में लाभ होता है।
  4. 2-3 ग्राम पत्रों को कूटकर काढ़ा बनाकर नमक डालकर गरारा करने से मुखपाक में लाभ होता है।
  5. पत्रों का काढ़ा बनाकर सेवन करने से कफ का निस्सरण होकर कफज-विकारों में लाभ होता है।
  6. उदर-विकार-इसके पत्तों एवं जड़ का क्वाथ बनाकर 15-20 मिली मात्रा में सेवन करने से उदर-विकारों में लाभ होता है।
  7. हिंसालु के कोमल पत्रों को कूटकर उसमें हल्दी मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से उदर शूल में लाभ होता है।
  8. 3-5 ग्राम मूल छाल का काढ़ा बनाकर पीने से यकृत् शोथ तथा पीलिया में लाभ होता है।
  9. प्रमेह-हिंसालू के 2 ग्राम बीज को पीसकर धारोष्ण दुग्ध के साथ पीने से प्रमेह में लाभ होता है।
  10. आमवात-इससे निर्मित मिष्टोद (Syrup) का सेवन करने से आमवात का शमन होता है।
  11. व्रण-पत्र स्वरस को लगाने से व्रण का रोपण होता है।
  12. पत्रों को पीसकर व्रण पर लगाने से व्रण का रोपण होता है।
  13. ज्वर-रसबेरी से निर्मित मिष्टोद (Syrup) का सेवन करने से ज्वर में लाभ होता है।
  14. दौर्बल्य-हिंसालू के ताजे फल स्वरस का सेवन कराने से दौर्बल्य का शमन होता है।
  15. मूल का क्वाथ बनाकर पिलाने से जीर्ण ज्वर में लाभ होता है।
  16. हिंसालु के फल अत्यन्त पौष्टिक होते हैं, परन्तु अधिक मात्रा में सेवन करने से यह निद्राकारक होता है।
  17. कोमल पत्रों का स्वरस निकालकर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पिलाने से बालातिसार में लाभ होता है।

प्रयोज्याङ्ग  : पत्र तथा मूल।

मात्रा  : क्वाथ 15-20 मिली। चिकित्सक के परामर्शानुसार।