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यह तो सच ही होगा कि गृध्रनखी का नाम शायद ही किसी ने सुना होगा। हिन्दी का नाम सुनकर किसी को यह जड़ीबूटी जानी पहचानी लगे, वह है अरदन्दा, जख्मबेल, हिंस, झिरिस और करवा। इस अजीब से नाम के हर्ब का प्रयोग आयुर्वेद में औषधी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इसके बारे में पूरी जानकारी के लिए हमें गृध्रनखी के औषधीपरक गुण, फायदे और किन-किन बीमारियों में इसका प्रयोग किया जाता है आदि के बारे में जानने के लिए आगे की ओर बढ़ना पड़ेगा।
यह अनेक शाखा-प्रशाखायुक्त, कठोर, तंतु जैसा, आरोही, 1-5 मी ऊँचा झाड़ी होता है। इसका तना 2-6 मिमी लम्बे वक्रीय अनुपत्रीय कांटों से बना, शाखाएं गोलाकार, भूरे रंग की होती हैं। इसके पत्ते 2.5-7.5 सेमी लम्बे, 1.8-5.0 सेमी चौड़े, चर्मिल, ऊपर की ओर लम्बे और, नुकीले होते हैं। इसके फूल अनेक, व्यास में 5.1 सेमी, पुष्पगुच्छों में लगे होते हैं; बाह्यदल-9 मिमी लम्बे; दल-गुलाबी श्वेत, गुलाबी या रक्त-बैंगनी रंग के होते हैं। पुंकेसर अनेक तथा लम्बे होते हैं। इसके फल व्यास में 3-5 सेमी, अति सख्त वृंत से युक्त, पके अवस्था में 4-कोणीय चमकीले धब्बेदार या बैंगनी रंग के होते हैं। इसके बीज संख्या में 5-7, वृत्ताकार, सफेद गूदे में धंसे हुए होते हैं। इसका पुष्पकाल जनवरी से अप्रैल तक तथा फलकाल जून से जुलाई तक होता है।
गृध्रनखी का वानास्पतिक नाम Capparis zeylanica Linn. (कैपेरिस जेलनिका) Syn-Capparis acuminata Roxb. होता है। इसका कुल Capparidaceae (कैपेरिडेसी)होता है और इसको अंग्रेजी में Ceylon caper (सीलोन कैपर) कहते हैं। चलिये अब जानते हैं कि गृध्रनखी और किन-किन नामों से जाना जाता है।
Sanskrit-गृध्रनखी, व्याघनखी, तपसप्रिय, करम्भा, व्याघघण्टी;
Hindi-अरदन्दा, जख्मबेल, हिंस, झिरिस, करवा;
Odia-गोविन्दी (Govindi);
Konkani-गोविन्द फल (Govindphal);
Kannada-मुल्लुकट्टारी (Mullukattari), टोट्टे (Totte), टोट्टूल्ला (Tottulla);
Gujarati-गोविन्दफल (Govindphal);
Tamil-अडोन्डाई (Adondai), कगुतुरट्टी (Kaguturatti), कट्टोट्टी (Kattotti), मिगुपेलेट्टम (Migupalattam);
Telugu-अडोन्डा (Adonda), अरीडोन्डा (Aridonda), चिट्टीगरा (Chittigara), डोड्डी (Doddi), पलकी (Palaki);
Bengali-असारी लता (Asarilata); कलोकेरा (Kalokera);
Nepali-गोविन्द फल (Govind phal), बन केरा (Ban kera);
Punjabi-करवीला (Karvila), हीस (His);
Malayalam-करथोट्टी (Karthotti);
Marathi-गोविन्दी (Govindi)।
English-इण्डियन केपर (Indian caper), केपर बेरी (Caper berry)।
गृध्रनखी का इलाज किन-किन बीमारियों के लिए किया जाता है, इसके बारे में जानने के लिए औषधीपरक गुणों के बारे में जानना ज़रूरी होता है। यह प्रकृति से पित्तकारक, गर्म , रुचिकारक, विष तथा कफ से आराम दिलाने वाला होती है।
इसके फल कड़वे, गर्म तथा तीनों दोषो को हरने वाले होते हैं।
इसकी त्वचा की छाल भूख को बढ़ाने वाली, आमाशयिक-स्राववर्धक (Gastric juice secretion enhancer) तथा दर्दनिवारक गुणों वाली होती है।
इसका पञ्चाङ्ग शामक यानि आराम देनेवाले तथा मूत्र को बढ़ाने में मददगार होते हैं।
गृध्रनखी शूल, विसूचिका या पेचिश(dysentery), शोथ या सूजन, रक्तपित्त या नाक-कान से खून बहने की बीमारी, प्रमेह या डायबिटीज, आमवात या गठिया, व्रण या अल्सर, उदरशूल या पेट में दर्द, स्नायुशूल या नर्व में दर्द, लंग्स में सूजन, स्तन में दर्द तथा सूजन को कम करने में मदद करता है।
गृध्रनखी में पौष्टिकारक गुण होता है, उतना ही औषधी के रूप में कौन-कौन से बीमारियों के लिए फायदेमंद होते है,चलिये इसके बारे में आगे जानते हैं-
मल त्याग करते हुए बवासीर के कारण बने मस्सों से जब रक्त बहता है और दर्द होता है तब इसके पत्तों को पीसकर अर्श के मस्सों पर लगाने से दर्द से आराम मिलता है।
अगर खान-पान में गड़बड़ी के वजह से पेट में दर्द हो रहा है तो इसके तने की छाल को पीसकर पेट में लेप करने से पेट दर्द में आराम मिलता है।
अगर किसी बीमारी के साइड इफेक्ट के कारण भूख कम लगती है तो 1 ग्राम पत्ते को काली मिर्च, इमली तथा लहसुन के साथ पीसकर सेवन करने से भूख बढ़ती है।
नीमत्वक्, इंद्रवारुणी मूल, बबूल की फली, गृध्रनखी तथा रक्त कचनार त्वक् को समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनाएं। 15-30 मिली काढ़े में गुड़ मिलाकर सेवन करने से पाण्डु तथा विबंध (कब्ज) में लाभ होता है।
तगर, व्याघनखी, सेंधा-नमक तथा देवदारु को समान मात्रा में लेकर उसमें तेल सिद्ध करके छानकर रख लें। गुनगुन तेल में रूई को भिगोकर योनि में रखने से योनि के दर्द से जल्दी राहत मिलने में मदद मिलती है।
सिफिलिस यौनसंचारित रोग होता है। गृध्रनखी के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से फिरङ्ग या सिफिलिस में लाभ होता है।
गृध्रनखी के जड़ की छाल को पीसकर लेप करने से से वृषण के सूजन, पिड़का या ग्रन्थि के सूजन को कम करने में सहायता करती है।
फाइलेरिया के सूजन के साथ लिम्फ नॉड पर भी असर पड़ता है। शरीर की इस परेशानी से राहत पाने के लिए जड़ तथा पत्ते को पीसकर लगाने से श्लीपद में लगाने से लाभ होता है।
शरीर के किसी अंग में सूजन कम होने का नाम नहीं ले रहा है तो गृध्रनखी के जड़ तथा पत्ते को पीसकर सूजन वाले स्थान में लगाने से सूजन कम होता है। इसके अलावा जड़ को पीसकर उसमें कासमर्द तथा मौलसिरी मिलाकर जलशोफ रोगी के शरीर पर रगड़ने से जलशोफ में लाभ मिलता है।
गृध्रनखी के जड़ की छाल का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पिलाने से बुखार के लक्षणों से राहत मिलती है।
जड़ की छाल को पीसकर लेप करने से पिडकाओं या फूंसियों से आराम मिलता है।
आयुर्वेद के अनुसार गृध्रनखी का औषधीय गुण इसके इन भागों को प्रयोग करने पर सबसे ज्यादा मिलता है-
-जड़
-छाल
-पत्ता
-कंटक और
-कच्चे फल।
यदि आप किसी ख़ास बीमारी के घरेलू इलाज के लिए गृध्रनखी का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही इसका उपयोग करें। चिकित्सक के सलाह के अनुसार 15-30 मिली काढ़ा का सेवन कर सकते हैं।
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