दंती के पौधे को आयुर्वेद में औषधीय पौधा माना गया है. चरक संहिता और सुश्रुत-संहिता में दंती के फायदों का विस्तृत उल्लेख मिलता है. बाजार में दंती की जड़े (दंतीमूल) लकड़ी के टुकड़ों के रूप में मिलती हैं. इस पौधे की जड़ें, तना, फूल और फल सब सेहत के लिए उपयोगी है. दांतों और पेट से जुड़े रोगों के इलाज में दंती बहुत लाभदायक है. इस लेख में हम आपको दंती के फायदे, औषधीय गुणों और उपयोग के तरीकों के बारे में बता रहे हैं.
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दंती का पौधा 90-180 सेमी ऊँचा होता है और इसकी शाखाएं सफेद, हरे रंग की होती हैं. इसकी पत्तियां 5-8 सेमी लम्बी गोल आकर में होती हैं. इसके फुल गुच्छों में उगते हैं जो हरे और पीले रंग के होते हैं. इसके फल रोयेंदार और लगभग एक सेमी लम्बे, अंडाकार में होते हैं. अक्टूबर से मार्च के बीच में इसमें फूल उगते हैं.
दंती का वानस्पतिक नाम Baliospermum solanifolium (Burm.) Suresh (बैलिओस्पर्मम् सोलेनिफोलियम) Syn-Baliospermum montanum (Willd.) Muell.- Arg., Baliospermum axillare Blume है. यह Euphorbiaceae (यूफॉर्बिएसी) कुल का पौधा है. आइये जानते हैं कि विभिन्न भाषाओं में इसे किन नामों से पुकारा जाता है.
Wild croton in :
आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार साँसों से जुड़ी समस्याएं और पेट से जुड़े रोगों के लिए दंती बहुत उपयोगी है. आइये जानते हैं कि अलग अलग बीमारियों में दंती का उपयोग कैसे करें.
दंती के जड़ के रस में शहद मिलाकर आंखों में काजल के रूप में लगाने से आंखों के दर्द से आराम मिलता है. बेहतर होगा कि आंखों में दर्द होने पर किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के बाद ही इसका उपयोग करें.
दंती की जड़, सत्यानाशी मूल, कासीस, वायविडंग और इन्द्रयव को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें. इस चूर्ण से दांतों की मालिश करें. दांतों पर यह चूर्ण मलने से कीड़े खत्म होते हैं और दांतों की सड़न से छुटकारा मिलता है.
सांस लेने में तकलीफ, फेफड़ों में सूजन आदि समस्याओं से परेशान हैं तो दंती आपके लिए एक उपयोगी औषधि है. 10-15 मिली दंती की पत्तियों का काढ़ा बनाकर सेवन करें. इससे सांसो से जुड़ी समस्याओं में लाभ मिलता है.
कई बार पेट में गैस इकठ्ठा हो जाने से पेट फूलने लगता है, ऐसा महसूस होता है जैसे पेट में गैस का गोला बन गया है. आयुर्वेद में इस समस्या को गुल्म नाम दिया गया है. 5-10 ग्राम दंती, द्रवन्ती की जड़ के पेस्ट को दधि, छाछ, मद्य, मण्ड तथा सीधु के साथ सेवन करने से गुल्म रोग और पेट के रोगों में लाभ मिलता है।
सेंधानमक तथा अजमोदा के साथ दंती के तेल का सेवन करने से पेट से जुड़े रोगों में लाभ मिलता है।
पेट ठीक से साफ़ ना होना, कई बीमारी की जड़ है. जबकि कई लोग इसे सामान्य समस्या समझ कर अनदेखा कर देते हैं. दंती का इस्तेमाल आप लैक्सेटिव (विरेचक या पेट साफ़ करने की दवा) के रूप में कर सकते हैं. इसके लिए दंती तथा द्रवन्ती के पेस्ट से लिप्त गन्ने के टुकड़ों को पुटपाक-विधि से पका कर, फिर इसका रस निकालकर 10-15 मिली मात्रा में पिएं. इसे पीने से पेट आसानी से साफ़ होता है।
गेहूँ का आटा, गुड़ और सेंधानमक में दंती की जड़ का काढ़ा मिलाकर गूंथ लें. फिर दन्ती के तेल में तलकर पूड़ी बनाकर इसका सेवन करें. इसे खाने से भी पेट साफ़ होता है।
दन्ती, चित्रक तथा पिप्पली को बराबर मात्रा में मिलाकर पानी के साथ पीसकर, गुनगुने पानी के साथ पीने से पेचिश में जल्दी फायदा मिलता है।
निशोथ, दंती, पलाश, चांगेरी तथा चित्रक के पत्तियों की घी और तेल में पकाकर सब्जी बना लें. इसे दही के साथ सेवन करने से बवासीर में फायदा मिलता है. खुराक संबंधी अधिक जानकारी के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करें।
5-10 मिली दन्त्यारिष्ट का सेवन करने से पाचक अग्नि बढ़ती है , इससे दोषों का असंतुलन ठीक होता है. इसके नियमित सेवन से गृहणी और बवासीर में लाभ मिलता है।
आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार दंती के निम्न भागों का उपयोग करना चाहिए.
दंती का उपयोग कितनी मात्रा में करना चाहिए इसकी जानकारी के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करें.
भारत में यह पौधा हिमालय में कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश में 600-1000 मी की ऊँचाई तक पाया जाता है. इसके अलावा असम, दक्कन प्रायद्वीप, बंगाल, बिहार, कोंकण, कर्नाटक, पश्चिमी घाटों एवं केरल के पहाड़ी क्षेत्रों में 1800 मी की ऊँचाई तक दंती का पौधा पाया जाता है। विश्व में इण्डो-मलेशिया क्षेत्रों, चीन, जावा, थाईलैंड, म्यान्मार, मलय प्रायद्वीप, बांग्लादेश में यह मिलता है।
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