वानस्पतिक नाम : Solanum anguivi Lam. (सोलेनम एंगुवी )
Syn-Solanum indicum Linn
कुल : Solanaceae (सोलैनेसी)
अंग्रेज़ी नाम : Indian night shade (इण्डियन नाईट शेड)
संस्कृत-वार्त्ताकी, क्षुद्रभण्टाकी, महती, बृहती, राष्ट्रिका; हिन्दी-बनभंटा, बनभांटा, बड़ी कटाई, बड़ी कटेरी, बरहंटा; उत्तराखण्ड-बनभट्टा (Banbhatta); उर्दू-जंगलीवृंगन (Junglivringan); उड़िया-बोनोवृहोती (Bonobryhoti), वृहोती (Bryhoti); असमिया-टीडवाघुरी (Tidbaghuri); कन्नड़-किरिगुला (Kirigula); गुजराती-उभी रिंगणी (Ubhi ringani); तमिल-मूल्ली (Mulli), पप्पर मुल्ली (Pappar mulli); तेलुगु-तेल्ला मुलका (Tella mulaka), चित्तीमूल्लगा (Chittimullaga); बंगाली-व्याकफड (Vyakud), व्याकफर (Vyakur); नेपाली-बीही (Bihi); पंजाबी-कंडयारी (Kandyari), कण्टकारी (Kantkari); मराठी-डोरली (Dorali), चिंचुरटी वांगी (Chinchurati vangi); मलयालम-चेरुचुन्डा (Cheruchunda)।
अंग्रेजी-प्वाईजन बेरी (Poison berry); अरबी-जलीद (Jalid); फारसी-वस्तारगर (Vstargar), बादेनगावे जंगली (Badengawe jangali)।
परिचय
प्राचीन आयुर्वेदीय निघण्टुओं व संहिताओं में बृहतीद्वय का उल्लेख प्राप्त होता है। कुछ विद्वान बृहतीद्वय में बृहती तथा कंटकारी का समावेश करते है परन्तु कुछ विद्वानों का मत है कि बृहतीद्वय अलग है तथा कंटकारी अलग। बृहती की कई प्रजातियां पाई जाती है। इनमें से इसका एक भेद ठंडे तथा आर्द्र स्थानों में पाया जाता है। जिसे Solanum torvum Swartz या श्वेत बृहती कहते हैं। इसके क्षुप 2-3 मी ऊँचे तथा बृहती के समान होते हैं। इसकी शाखाएं, अल्प, सीधी तथा रोमश होती है, कांटे भी प्राय मध्य सिरा पर नीचे की ओर केवल 1 या 2 होते हैं। पुष्प श्वेत होते हैं। इसके अतिरिक्त कैयदेवनिघण्टु में सिंही, बृहती, कण्टकारी, निदग्धिका, वल्लीबृहती, वृत्रबृहती, श्वेतबृहती, अलाम्बुफलाबृहती, अम्लबृहती, जलबृहती तथा स्थूलबृहती नाम से बृहती के 11 भेदों का वर्णन प्राप्त होता है तथा धन्वन्तरि निघण्टु व राजनिघण्टु में सर्पतनु, कासघ्नी, लक्ष्मणा, भाण्टाकी, श्वेतबृहती, वृन्ताकी, बृहती तथा कण्टकारी नाम से बृहती के 8 भेदों का वर्णन प्राप्त होता है। उपरोक्त प्रकारों में भी लक्ष्मणा को श्वेतबृहती से भिन्न बताया गया है। बृहती के नाम पर विभिन्न स्थानों में Solanum torvum Swartz का प्रयोग किया जाता है। गहन अनुसंधान व प्रयोगों के आधार पर हमने निष्कर्ष निकाला है कि उपरोक्त वर्णित प्रजातिSolanum anguivi Lam. ही मुख्य बृहती है।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
बृहती कटु, तिक्त, मधुर, उष्ण, लघु, रूक्ष, कफवातशामक, ग्राहि, हृद्य, पाचक, दीपन, रुचिकारक, पित्तकारक, भेदक, कण्ठ्य, शोथहर, अङ्गमर्दप्रशमनकारक, बृंहण, बलकारक; मुखवैरस्य, अरोचक, कुष्ठ, ज्वर, श्वास, शूल, कास, अग्निमांद्य, वातरोग, शोष, गुल्म, अङ्गमर्द, मेदोरोग, शिरशूल, आभ्यन्तर विद्रधि, हृद्रोग, वमन, कृमिरोग, हृल्लास, नेत्ररोग, कण्डू, मूत्रकृच्छ्र तथा आमदोष-नाशक है।
इसके फल कटु, तिक्त, लघु तथा कफवातशामक; कण्डू, कुष्ठ व कृमिनाशक हैं।
इसका पौधा वातानुलोमक, कफनिस्सारक, पाचक, मृदु-विरेचक, स्वेदजनन, उत्तेजक, स्तम्भक, प्रशामक, आर्तवजनक, ज्वरहर, अग्निदीपक, शोधक एवं मूत्रल होता है।
बृहती मूल कटु, तिक्त, उष्ण, पाचक, कषाय तथा कृमिघ्न होती है।
औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि
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प्रयोज्याङ्ग : मूल, फल, पुष्प, पत्र, बीज एवं पञ्चाङ्ग।
मात्रा : चूर्ण 1-2 ग्राम। क्वाथ 10-20 ग्राम अथवा चिकित्सक के परामर्शानुसार।
विशेष : पुष्पों के आधार पर बृहती की दो मुख्य प्रजाति पाई जाती हैं। उत्तर भारत में श्वेत पुष्प वाली प्रजाति को तथा दक्षिण भारत में बैंगनी पुष्प वाली प्रजाति को बृहती माना जाता है। बैंगनी पुष्प वाली प्रजाति ज्यादा गुणकारी होती है तथा इसके फलों की सब्जी भी बनाकर खाई जाती है। गहन अनुसन्धान के पश्चात् हमने यह निष्कर्ष निकाला है कि बैंगनी पुष्प वाली प्रजाति Solanum anguivi Lam. ही मुख्य बृहती है।
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