header-logo

AUTHENTIC, READABLE, TRUSTED, HOLISTIC INFORMATION IN AYURVEDA AND YOGA

AUTHENTIC, READABLE, TRUSTED, HOLISTIC INFORMATION IN AYURVEDA AND YOGA

Bhutrin: भूतृण के हैं अनेक अनसुने फायदे- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

वानस्पतिक नाम : Cymbopogon citratus (D.C.) Stapf. (सिम्बोपोगॉन सिट्रेटस) Syn-Andropogon citratus DC.  

कुल : Poaceae (पोएसी)

अंग्रेज़ी नाम : Lemon grass (लेमन ग्रास)

संस्कृत-भूतृण, भूतीक, करेन्दुक, गोच्छालक, पूतिबन्ध, समालम्बी, गुह्यबीज, सुगन्ध, जम्बुकप्रिय, छत्रा, मालातृणक, कटुम्बक, मालातृण, अहिच्छत्रक, पुंत्त्विग्रह, अतिगन्ध, गुण्डरोह; हिन्दी-हरी चाय, गन्धतृण, अगिन घास; कन्नड़-मजजीगेहुलू (Majjigehulu), पुराहालिहुला (Purhalihulla); कोंकणी-ओली-चा (oli-cha); गुजराती-लिलचा (Lilacha), लिलिचा (Lilicha); तमिल-करपुराप्पील्लू (Karpurappillu); तैलुगु-चिप्पागडी (Chippagaddi), निम्मागडडी (Nimmagaddi); पंजाबी-खावी (Khawi); बंगाली-गन्धबेना (Gandhabena);  मलयालम-शमभरपुल्ला (Shambharapulla); मराठी-हिरवाचा (Hirvacha), मिरवाचा (Mirvacha); मणिपुरी-हाओना (Haona)।

अंग्रेजी-वेस्ट इण्डियन लेमन ग्रास (West Indian lemon grass), मेलीसा ग्रास (Melissa grass), सिट्रोनेला (Citronella); फारसी-चाय कश्मीरी (Chae kashmiri), जाजार माशाल्लाह (Jazar masalah)।

परिचय

समस्त भारत में मुख्यत महाराष्ट्र, गुजरात एवं पंजाब में इसकी खेती की जाती है। यह एक प्रकार की सुगन्धित घास है जो लगभग 1.8 मी ऊँची तथा बहुवर्षायु होती है। इसके पत्र सुगन्धित (नींबू की गंध युक्त), नीचे चौड़े, ऊपर की ओर संकरे तथा धारदार किनारे वाले होते हैं। इसकी मूल प्रकन्दयुक्त होती है। इसकी पत्तियों का प्रयोग चाय बनाने में किया जाता है। भूतृण के पत्तों से निर्मित चाय अत्यन्त रुचिकर, सुगन्धित तथा बलकारक होती है। इसकी मुख्य प्रजाति [Cymbopogon citratus DC. (भूतृण)]  के अतिरिक्त कई प्रजातियाँ पाई जाती हैं, परन्तु मुख्यतया तीन प्रजातियों का प्रयोग चिकित्सा के लिए किया जाता है। 1. लामज्जक (Cymbopogon jwarancusa (Jones.) Schult.) 2. सुगन्धक (Cymbopogon pendulus (Nees ex Steud.) W.Watson) 3. रोहिष घास (Cymbopogon schoenanthus (Linn.) Spreng.)।

आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव

कटु, तिक्त, उष्ण, लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण, कफवातशामक, रूचिकारक, रेचक, विदाही, दीपन, मुखशोधक, नेत्र्य, अवृष्य, पुंस्त्वघ्नकारक, रक्तपित्तप्रदूषक, व्रणशोधक, शीतप्रशमन, दाहजनक तथा अत्यन्तमलकारक होती है।

यह भूतादि ग्रहदोष, विष, कृमि, कास, श्वास, छर्दि, प्रतिश्याय, अरुचि एवं दद्रु-शामक होता है।

औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि

  1. प्रतिश्याय-भूतृण के पत्रों का फाण्ट बनाकर 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से प्रतिश्याय में लाभ होता है।
  2. मुख दौर्गन्ध्य-भूतृण का क्वाथ बनाकर गरारा करने से या भूतृण की पत्तियों को चबाने से मुखदौर्गन्ध्य का शमन होता है।
  3. उदर-विकार-भूतृण के पत्रों से निष्कासित सुगन्धित तैल का प्रयोग उदावर्त, उदरीय क्षोभ तथा आत्र उद्वेष्ट की चिकित्सा में किया जाता है।
  4. उदरशूल-भूतृण पत्र, पुदीना, काली मिर्च तथा शुष्क अदरख का फाण्ट बनाकर 15-20 मिली फाण्ट में शर्करा मिलाकर प्रयोग करने से उदरशूल तथा उदावर्त में लाभ मिलता है।
  5. कृच्छ्रार्तव-भूतृण के फाण्ट या क्वाथ (10-30 मिली) में काली मिर्च मिलाकर पीने से अनियमित मासिक स्राव तथा कृच्छ्रार्तव में लाभ होता है।
  6. वातव्याधि-भूतृण आदि द्रव्यों से निर्मित भूतिकादि तैल को वस्ति रूप में प्रयुक्त करने पर, ऊरु (Thigh), त्रिक (Sacral region), जंघा (Leg), पार्श्व, बाहु, मन्या (Stermomastoid region) और सिर में स्थित वातरोगों में लाभ होता है।
  7. भूतृण को पीसकर लगाने से आमवात, स्नायुशूल, उद्वेष्ट तथा सर्वांङ्गशूल में लाभ होता है।
  8. ज्वर-भूतृण आदि द्रव्यों से निर्मित नागरादि क्वाथ (10-30 मिली) में मधु तथा हींग मिलाकर सेवन करने से कफ-वातज ज्वर में लाभ होता है। यह क्वाथ श्वास, कास, गलग्रह, हिक्का, कण्ठशोथ, हृदय तथा पार्श्वशूल में भी हितकर है।
  9. भूतृण आदि द्रव्यों से निर्मित अगुर्वादि तैल का शरीर पर मर्दन करने से शीतज्वर में लाभ होता है।
  10. ज्वर-भूतृण के फाण्ट या क्वाथ (10-30 मिली) में दालचीनी, अदरख तथा शर्करा मिलाकर पीने से ज्वर में लाभ होता है।
  11. भूतृण के 10-30 मिली फाण्ट या क्वाथ में 1 ग्राम काली मिर्च मिलाकर पीने से जीर्ण विषम-ज्वर के कारण उत्पन्न जलशोफ की अवस्था में लाभ मिलता है।
  12. भूतृण पत्र क्वाथ (10-30 मिली) में 1 ग्राम पुदीना, 1 ग्राम काली मिर्च, शुष्क अदरख तथा 5 ग्राम शर्करा मिलाकर पीने से ज्वर में लाभ मिलता है।

प्रयोज्याङ्ग  :पञ्चाङ्ग, वाष्पशील तैल तथा पत्र।

मात्रा  :पत्र चूर्ण 2-5 ग्राम, तैल 5-10 बूँद या चिकित्सक के परामर्शानुसार।