वानस्पतिक नाम : Dillenia indica Linn. (डिलिनिआ इंडिका) Syn-Dillenia elongata Miq.
कुल : Dilleniaceae (डिलीनिएसी)
अंग्रेज़ी नाम : Elephants apple
(एलीफेन्टस एपॅल)
संस्कृत-भव्य, बहरञ्ज, वत्रशोधन, पिच्छिलबीज, संपुटाङ्ग, कुसुमोदर; हिन्दी-चालता; असमिया-चालिता (Chalita); उड़िया-उवा (Uav), चलोटा (Chalota); कन्नड़-कानीगाला (Kanigala); कोंकणी-कोरोम्बोल (Corombol); गुजराती-करम्बल (Karambal); तैलुगु-उवा (Uvva), पद्दा कलिंङ्ग (Padda kalinga); तमिल-उवा (Uva); नेपाली-रामफल (Ramphal), पंचफल (Panchphal); बंगाली-चालता (Chalta); मराठी-करेबेल (Karebel), कर्मबेल (Karmbel); मलयालम-चलीता (Chalita), पुन्ना (Punna)।
अंग्रेजी-चुल्टा (Chulta)।
परिचय
यह पौधा समस्त भारत में नदी-नालों के किनारे तथा आद्र वनों 1200 मी0 की ऊचाई तक पाया जाता है। कुछ विद्वान कमरख को भव्य फल मानते है,किन्तु कमरख तथा भव्य फल आपस में पूर्णतया भिन्न है इसका वर्णन चरक व सुश्रुत-संहिता के सूत्र स्थान में प्राप्त होता है।
Dillenia indica Linn. (भव्य फल) इसका पौधा लगभग 10-25 मी ऊँचा, मध्यम आकार का, सुन्दर व सदाहरित होता है। इसके पुष्प श्वेत वर्ण के व सुगन्धित होते हैं। इसके फल गोलाकार, छोटे नारियल के जैसे, कठोर छिलके वाले, लगभग 7-15 सेमी व्यास के, बाह्यदलों से घिरे हुए होते हैं।
उपरोक्त वर्णित भव्य फल के अतिरिक्त इसकी निम्नलिखित प्रजाति का प्रयोग चिकित्सा के लिए किया जाता है। भारत के कई प्रदेशों में विशेषतया मध्यप्रदेश एवं उत्तर प्रदेश के तराई इलाकों में दीपावली के दिन लक्ष्मी का स्वरूप मानकर इस पौधे की पूजा की जाती है तथा पूजा-पाठ करने के लिए इसकी लकड़ी का पीढ़ा भी बनाया जाता है। इस वृक्ष के संदर्भ में कहा जाता है कि इसकी लकड़ी की खाट बनाकर सोने से शरीर की वेदनाओं का शमन होता है।
Dillenia pentagyna Roxb. (इषत्फल भव्य)- यह मध्यम आकार का लगभग 15 मी ऊँचा पर्णपाती वृक्ष होता है। इसकी छाल चिकनी, भूरे रंग की होती है। इसकी पत्तियां 20-50 सेमी लम्बी, 10-20 सेमी चौड़ी, आयताकार, किनारों पर कांटेदार तथा चमकीले हरे रंग की होती है। पुष्प पीले रंग के होते हैं। फल गोल कच्ची अवस्था में हरे तथा पकने पर पीले-नारंगी या लाल रंग के होते हैं। इसकी छाल तथा पत्रों का प्रयोग चिकित्सा के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग वेदना, मधुमेह, अर्श एवं त्वचा विकारों की चिकित्सा में किया जाता है। इसके फल विरेचक होते हैं। छाल का प्रयोग विस्फोट (फोड़े/पैंसी), भगन्दर, अंत पर्शुका शूल, दाह तथा फूफ्फूस शोथ की चिकित्सा में किया जाता है।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
चालता मधुर, कषाय, अम्ल, शीत, गुरु, पित्तकफकारक, हृद्य, मुखशोधक, ग्राही, विष्टम्भी, विशद, लेखन, स्तम्भन, रूक्ष, विबन्धकारक, आनाहकारक तथा वातकारक होता है।
इसका अपक्व फल कटु, अम्ल, उष्ण, कफवातशामक, पिच्छिल तथा मुखशोधक होता है।
इसका पक्व फल मधुर, कषाय, अम्ल, शीत, गुरु, त्रिदोषशामक, रुचिकारक, हृद्य, मुखशोधक, मलरोधक, विशद, ग्राही, श्रम, शूल तथा विष नाशक होता है।
इसकी छाल एवं पत्र कषाय तथा कफनिसारक होती है।
यह तृष्णा तथा ज्वर शामक है।
औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि
प्रयोज्याङ्ग :पत्र, पुष्प, छाल, मूल तथा फल।
मात्रा :स्वरस 5-10 मिली, क्वाथ 5-10 मिली या चिकित्सक के परामर्शानुसार।
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