- सभी योगासनों व प्राणायामों का अभ्यास विधि व समय बद्ध-रूप से मध्यम-गति व शारीरिक क्षमतानुसार करना चाहिए, अत्यधिक जोर नहीं लगाना चाहिए। इस योग अभ्यास के क्रम में व्यायाम व आसनों को पहले या बाद में किया जा सकता है। शीतकाल में व्यायाम व आसन प्रारम्भ में तथा प्राणायाम बाद में किया जा सकता है। ग्रीष्मकाल में यह इसके विपरीत किया जा सकता है- प्राणायाम के साथ प्रारम्भ तथा इसके बाद व्यायाम व आसन का अभ्यास कर सकते है।
- योगासन व प्राणायाम के लिए स्वच्छ वायु युक्त, हवादार स्थान सर्वोत्तम होता है। (अधिक सर्दी के समय अपनी सहनशक्ति के अनुसार कमरे के न्यूनतम तापमान पर अभ्यास कर सकते हैं।
- सभी व्यायाम व योगासन सुबह खाली पेट करना उत्तम है। यदि सायंकाल करना हो तो भोजन के 4 घण्टे बाद ही करना चाहिए।
- डिस्क संबंधी समस्या में एवं कमर व पीठ के दर्द की स्थिति में आगे झुकने वाले आसनों का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
- हार्निया, पेट की सर्जरी/ चोट के पश्चात् तीव्र हृदय रोग व अन्य अल्सर आदि जीर्ण रोगों से ग्रसित व्यक्तियों को पीछे झुकने वाले या पेट में जोर पड़ने वाले अभ्यासों को नहीं करना चाहिए।
- आयुर्वेद में मुख्यतया तीनों दोषों (वात, पित्त, कफ) का प्रकुपित होना या विषम होना रोगोत्पत्ति का कारण माना गया गया है, तीन दोषों का सम्बन्ध विविध शरीरगत तत्र व संस्थानों से है। इसलिए सही ढंग से नियमानुसार आसन, प्राणायाम, ध्यान व व्यायाम करने से तीनों दोषों को सम अवस्था में ठीक रखा जा सकता है।