वीर्य (Potency)

किसी भी औषधि में अनेक प्रकार के गुण पाये जाते हैं, परन्तु उन गुणों में से जो सबसे अधिक शक्तिशाली और सक्रिय होता है अर्थात् जो रोग के उपचार में मुख्य रूप से सहायक होता है, वह वीर्य कहलाता है।6 वीर्य रस से अधिक शक्तिशाली है, अतः यह रस के प्रभाव को गौण (अप्रधान) कर देता है। इस वीर्य के आधार पर ही औषध-द्रव्यों को मुख्यतः दो भागों में बाँटा गया है- उष्णवीर्य और शीतवीर्य। इसे ही लोकव्यवहार में गर्म या ठण्डी तासीर वाला द्रव्य कहा जाता है। रोगी की प्रकृति के अनुसार उष्णवीर्य या शीतवीर्य औषधियों का चयन किया जाता है। इसी वीर्य के कारण ही ये औषधि-द्रव्य रोग का नाश करते हैं और स्वास्थ्य को बनाये रखते हैं।
औषधि-द्रव्य का सेवन करने पर पाचन-क्रिया के दौरान जब उस पर चयापचय क्रिया होती है तो उस द्रव्य की पांचभौतिक और रासायनिक संरचना भी बदल जाती है। इससे दोषों और धातुओं पर प्रतिक्रिया होती है। इसी प्रतिक्रिया के फलस्वरूप मधुर, तिक्त और कषाय रस वाले द्रव्य, शीतल प्रभाव उत्पन्न करते हैं, अतः शीतवीर्य कहलाते हैं तथा उससे विपरीत अम्ल, लवण और कटु रस वाले द्रव्य उष्ण (गर्म) प्रभाव उत्पन्न करते हैं, अतः उष्णवीर्य कहलाते हैं।

शरीर पर प्रभाव-

इनमें शीतवीर्य द्रव्य शरीर पर शीतल प्रभाव डालते हैं और आर्द्रता (गीलापन) बढ़ाते हैं। इन द्रव्यों के सेवन से आयु, धातु, (विशेषतः शुक्र धातु) और जीवनीय शक्ति बढ़ती है। अतः शीतवीर्य एक टॉनिक का कार्य करता है। यह पित्त का शमन करता है तथा प्रायः वात और कफ को बढ़ाता है।

उष्णवीर्य द्रव्य शरीर में गर्म प्रभाव डालते हैं। ये पाचन-शक्ति, स्वेद, प्यास और कृशता (दुर्बलता) को बढ़ाते हैं। उष्णवीर्य, कफ और वात दोष का शमन करता है तथा पित्त को बढ़ाता है।

कुछ विद्वान् शीत और उष्ण वीर्य के अतिरिक्त छः अन्य वीर्य भी मानते हैं, जिनकी सहायता से किसी औषधि-द्रव्य में गुणों का निश्चय किया जाता है। वे 6 अन्य वीर्य इस प्रकार हैं- 1. स्निग्ध 2. रूक्ष 3. गुरु 4. लघु 5. मन्द और 6. तीक्ष्ण। इस प्रकार शीत और उष्ण को मिलाकर वीर्यों की कुल संख्या 8 मानी गई है, परन्तु मुख्यतया शीत और उष्ण वीर्य ही मान्य हैं।

जब ये दोनों वीर्य भी अधिक शक्तिशाली नहीं होते तो इन्हें वीर्य न कह कर गुण कहा जाता है। इस आधार पर कुछ औषधि-द्रव्यों में वीर्य नहीं भी पाया जाता। जिस तरह आहार-द्रव्यों में रस की प्रधानता होती है, उसी प्रकार औषधि-द्रव्यों में वीर्य की प्रधानता होती है।

आचार्य श्री बालकृष्ण

आचार्य बालकृष्ण, आयुर्वेदिक विशेषज्ञ और पतंजलि योगपीठ के संस्थापक स्तंभ हैं। चार्य बालकृष्ण जी एक प्रसिद्ध विद्वान और एक महान गुरु है, जिनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में आयुर्वेदिक उपचार और अनुसंधान ने नए आयामों को छूआ है।

Share
Published by
आचार्य श्री बालकृष्ण

Recent Posts

  • आयुर्वेदिक दवाएं

कब्ज से छुटकारा पाने के लिए अपनाएं पतंजलि दिव्य त्रिफला चूर्ण

आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार, त्रिफला चूर्ण पेट से जुड़ी समस्याओं के लिए बेहद फायदेमंद है.…

2 years ago
  • आयुर्वेदिक दवाएं

डायबिटीज को नियंत्रित रखने में सहायक है पतंजलि दिव्य मधुनाशिनी वटी एक्स्ट्रा पावर

डायबिटीज की बात की जाए तो भारत में इस बीमारी के मरीजों की संख्या साल…

2 years ago
  • आयुर्वेदिक दवाएं

त्वचा से जुड़ी समस्याओं के इलाज में उपयोगी है पतंजलि दिव्य कायाकल्प वटी

मौसम बदलने पर या मानसून सीजन में त्वचा से संबंधित बीमारियाँ काफी बढ़ जाती हैं.…

2 years ago
  • आयुर्वेदिक दवाएं

युवाओं के लिए अमृत है पतंजलि दिव्य यौवनामृत वटी, जानिए अन्य फायदे

यौन संबंधी समस्याओं के मामले में अक्सर लोग डॉक्टर के पास जाने में हिचकिचाते हैं…

2 years ago
  • आयुर्वेदिक दवाएं

मोटापे से छुटकारा पाने के लिए अपनाएं पतंजलि मेदोहर वटी

पिछले कुछ सालों से मोटापे की समस्या से परेशान लोगों की संख्या तेजी से बढ़ती…

2 years ago
  • आयुर्वेदिक दवाएं

पेट से जुड़े रोगों को ठीक करती है पतंजलि दिव्य गोधन अर्क, जानिए सेवन का तरीका

अधिकांश लोगों का मानना है कि गौमूत्र के नियमित सेवन से शरीर निरोग रहता है.…

2 years ago