यद्यपि रस जल का स्वाभाविक गुण है, परन्तु जल में भी रस की उत्पत्ति (अभिव्यक्ति) तभी होती है, जब इसका संसर्ग अन्य महाभूतों के परमाणुओं के साथ होता है। अतः प्रत्येक रस में अलग-अलग महाभूतों की प्रधानता पाई जाती है, जो इस प्रकार है।
द्रव्यों के रस एवं महाभूतों के आधार पर ही उनके गुणों का विश्लेषण हमारे ऋषियों ने किया है। पार्थिव, जाङगम एवं औद्भिद द्रव्यों के औषधीय गुण वीर्य, विपाक एवं प्रभाव आदि के ज्ञान में भी द्रव्यों के रस की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
रस-मधुर अम्ल लवण कटु तिक्त कषाय
महाभूत- पृथ्वी जल पृथ्वी अग्नि जल अग्नि वायु अग्नि वायु आकाश वायु पृथ्वी
प्रत्येक रस में पाये जाने वाले प्रमुख महाभूतों के अनुसार ही उस द्रव्य का व्यक्ति के शरीर में विद्यमान दोषों, धातुओं आदि पर प्रभाव पड़ता है।
यद्यपि मूल रूप से रस छः हैं, परन्तु अलग-अलग प्रकार से भिन्न अनुपात में इनके मिश्रण से तो असंख्य रस बन जाते हैं। इसके अतिरिक्त एक अनुरस या उपरस भी होता है, जो जिह्वा पर पहले तो स्पष्टतः प्रकट नहीं होता, परन्तु बाद में हलका-सा प्रकट होता है।