भोजन से सम्बन्धित इन सब नियमों का पालन करते समय यह ध्यान भी रखना चाहिए कि जो भोजन खाया जा रहा है, वह पथ्य (हितकर) हो। पथ्य आहार का अर्थ है- जो खाद्य पदार्थ शरीर की धातुओं को उनकी सम अवस्था में बनाये रखते हैं, विषम (असन्तुलित) धातुओं को सम अवस्था में लाने में सहायक होते हैं और जो आहार शरीर के पथ (स्रोतों) के लिए हानिकारक नहीं होते तथा मन को प्रिय लगते हैं, वे पथ्य या हितकर पदार्थ कहलाते हैं । इसके विपरीत जो स्रोतों को हानि पहुंचाएँ, विषम धातुओं को सम अवस्था में न ला सकें तथा मन को अप्रिय लगें अर्थात् हानिकारक हों, वे अपथ्य या अहितकर पदार्थ हैं। पथ्य आहार-िवहार का सेवन स्वास्थ्य के लिए सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है। ये पथ्य और अपथ्य आहार-िवहार भी प्रत्येक व्यक्ति की आयु, शारीरिक अवस्था, प्रकृति, रोग, द्रव्य की मात्रा, दूसरे द्रव्य के साथ संयोग आदि के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं। जो पदार्थ एक व्यक्ति के लिए पथ्य या हितकर है, वही दूसरे के लिए भी पथ्य होगा, यह आवश्यक नहीं है। जैसे उष्ण प्रकृति वालों को ठण्डे पदार्थ पथ्य हैं पर शीत प्रकृति वालों के लिए हानिकारक। शीत प्रकृति वालों लिए गर्म पदार्थ लाभकारी है तो उष्ण प्रकृति वालों के लिए नहीं। दस्त वालों के लिए दूध अपथ्य है पर दही पथ्य है, किन्तु कब्ज वालों के लिए दूध पथ्य है पर दही नहीं।
कुछ पदार्थ स्वभाव से ही पथ्य (हितकर) होते हैं तो कुछ अपथ्य (अहितकर) होते हैं। जैसे षष्टिक (सांठी चावल), शालि चावल, मूंग, सेंधा नमक, आंवला, मुनक्का, जौ, आन्तरिक्ष जल (वर्षा का पानी), गाय का दूध, गाय का घी तथा मधु, ये स्वभावतः हितकर होते हैं। इसके विपरीत अधपके (कच्चे फल), अति तीक्ष्ण (अधिक तीखे/चरपरे) पदार्थ- लाल मिर्च आदि। अधिक खट्ठे पदार्थ- इमली, अमचूर आदि तथा खाद्य को सड़ाकर बनाए हुए या कैमिकल आदि द्वारा संरक्षित पदार्थ, ये सभी स्वभाव से ही अहितकर हैं।
इनमें यदि हितकर पदार्थ़ों का सेवन मात्रा, प्रकृति आदि के अनुसार विधिपूर्वक न किया जाए तो वे भी अहितकर पदार्थ़ों के समान ही हो सकते हैं। अतः मात्रा, देश, आयु, ऋतु आदि का भली प्रकार विचार कर अपने लिए पथ्य आहार और विहार को चुन लेना चाहिए । शरीर अन्न से ही बना है। अतः परीक्षा करके पथ्य आहार का सेवन करना चाहिए, लोभ अथवा अज्ञान के कारण अपथ्य आहार का सेवन कभी भी नहीं करना चाहिए, अन्यथा व्यक्ति को रोगों का शिकार होते देर नहीं लगती । जो भी आहार हम लेते हैं, वह हमारे शरीर का सप्त धातुओं के रूप में हिस्सा बनकर आजीवन हमारे साथ रहता है, अतः एक बार भी गलत आहार या अभक्ष्य पदार्थ हम न खाएं, यही हमारे लिए शुभ है। इसी प्रकार जो भी हम विचार करते हैं, वह विचार भी हमारे मस्तिष्क में (हाइपोथैलमस सिस्टम) में जाकर रसायन (Chemical) के रूप में रूपान्तरित हो जाता है और वह कैमिकल हमारे शरीर का स्थाई हिस्सा बन जाता है। अतः एकबार भी लिया हुआ आहार चाहे वह शराब व तम्बाकू आदि हो या दूध, शाक-सब्जी, अन्न व फलादि हो तथा एक बार भी किया हुआ विचार चाहे वह दुख, निराशा, तनाव, अशान्ति, काम, क्रोध व चिन्ता आदि बढ़ाने वाला हो या सुख, शान्ति, संतुष्टि, तृप्ति देने व खुशी देने वाला हो, हमारे शरीर व मन का हिस्सा बन जाता है। इस प्रकार आहार व विचार का हमारे डी.एन.ए. से लेकर हमारी बॉडी के पूरे स्ट्रेक्चर व करेक्टर पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ता है। इसी से हम रोगी या निरोगी होते हैं। अतः यदि हम एक बार भी गलत आहार व गलत विचार के शिकार न हों तो जीवन में सदा सुखी व स्वस्थ रह सकते हैं।