ऊपर लिखित अधारणीय (न रोकने योग्य) वेगों के अतिरिक्त प्रत्येक मनुष्य के कुछ वेग ऐसे होते हैं, जो धारणीय (रोकने योग्य) ही होते हैं, क्योंकि वे स्वयं उसके लिए तथा समाज के लिए हानिकारक होते हैं । इस प्रकार के वेगों या प्रवृत्तियों के कारण मनुष्य लोभ, लालच, भय, क्रोध, शोक, ईर्ष्या, अहंकार, निर्लज्जता और आसक्ति के अधीन होकर कार्य करता है। प्रत्येक मनुष्य को अपने शान्त और सुखी जीवन के लिए इस प्रकार के सभी मानसिक, वाचिक एवं शारीरिक वेगों, अनुचित कर्मों और अविवेक पूर्ण इच्छाओं को नियत्रण में रखना चाहिए।
इन धारणीय वेगों को तीन भागों में बाँट सकते हैं-
यदि मनुष्य इन अविवेकपूर्वक वेगों से होने वाली हानियों के विषय में चिन्तन करे, तो वह इनसे बच सकता है। इससे वह स्वयं तो शान्त रहता ही है, उसके परिवार में भी सुख-शान्ति बनी रहती है। ऐसा व्यक्ति समाज में भी आदरणीय होता है। इस प्रकार धारणीय वेगों को नियत्रित कर उत्तम आचरण करने से व्यक्ति धर्म, अर्थ और काम, इस त्रिवर्ग का सञ्चय व उपभोग कर सकता है। यह धारणीय वेगों को रोकने का शुभ परिणाम होता है।
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