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AUTHENTIC, READABLE, TRUSTED, HOLISTIC INFORMATION IN AYURVEDA AND YOGA

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आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से समझें क्या है मन?

मन क्या है?

हम जो भी काम करते हैं या आस पास की घटनाओं के बारे देखकर या सुनकर जो प्रतिक्रिया देते हैं उसमें मन की महत्वपूर्ण भूमिका है। आयुर्वेद में मन को भी शरीर का एक अंग माना गया है। आयुर्वेद के अनुसार मन ज्ञानेद्रियों और आत्मा को आपस में जोड़ने वाली कड़ी है। जिसकी सहायता से ज्ञान मिलता है।

 

हमारे शरीर में दो तरह की इन्द्रियां होती हैं जो निम्न हैं :

ज्ञान इन्द्रियां : आंख, नाक, कान, जीभ और त्वचा

कर्म इन्द्रियां : हाथ, पैर, मुंह, लिंग और  गुदा

 

मन को इन दोनों तरह की इन्द्रियों में माना जाता है। इसलिए इसे उभयेंद्रिय कहा जाता है। जिस तरह ज्ञानेद्रियाँ ज्ञान प्राप्त करने का बाहरी साधन हैं, उसी प्रकार ’मन‘ ज्ञान-प्राप्ति का आन्तरिक साधन है।

 

मन की चंचलता

मन को सबसे अधिक चंचल बताया गया है। जब भी आप कुछ देखते हैं या सुनते हैं तो मन उस बारे में सोचने लगता है। अगले ही पल कुछ नया दिख जाने पर या नई घटना होने पर मन तुरंत अपनी प्रतिक्रिया बदल देता है और नई घटना के बारे में सोचने लगता है। एक दिन में ही आपके मन में अनगिनत विचार आते जाते रहते हैं और आपका मन उन विचारों में उलझा रहता है।

इसलिए आयुर्वेद में मन को नियंत्रित करने पर ज्यादा जोर दिया गया है। आयुर्वेद के अनुसार अपने मन पर नियंत्रण कर लेना ही योग की स्थिति है। मन पर नियंत्रण होने का सीधा तात्पर्य है आपकी इंद्रियों पर आपका नियंत्रण।

 

शरीर में मन का स्थान

शरीर में मन के निवास स्थान को लेकर कई धारणाएं प्रचलित हैं। आयुर्वेदिक ग्रंथों में मन का निवास स्थान ह्रदय माना गया है। वहीं योग ग्रंथों में ह्रदय और मस्तिष्क दोनों को मन का निवास स्थान माना गया है।

 

मन के कार्य 

ज्ञान इन्द्रियों (आंख, कान आदि)  द्वारा आप जो कुछ भी देखते, सुनते या महसूस करते हैं उस विषय की जानकारी मन के द्वारा बुद्धि (मस्तिष्क) तक पहुँचती है। आयुर्वेद के अनुसार मन का प्रमुख कार्य ज्ञानेद्रियों द्वारा प्राप्त किए विषयों के ज्ञान को अहंकार, बुद्धि आदि तक पहुँचाना है। इसके बाद आपकी बुद्धि इस बारे में निर्णय लेती है कि आगे क्या करना है और क्या नहीं?  जो भी निर्णय आपकी बुद्धि द्वारा लिया जाता है वो काम आपकी कर्म इन्द्रियां करती हैं।

 

इसे उदहारण से समझें तो जैसे आप के आस पास कोई कीमती चीज रखी हुई है और आप वहां अकेले हैं। ऐसे में आपका मन, बुद्धि तक यह संदेश भेजता है कि इसे चुराया जा सकता है। अब इसे चुराने या ना चुराने का निर्णय आपकी बुद्धि पर निर्भर करता है। अब यहां से कर्म इन्द्रियों का काम शुरू होता है। अगर आपकी बुद्धि ने निर्णय लिया कि इसे चुराना है तो तुरंत आप हाथ से वो कीमती चीज उठाकर अपने जेब में रख लेंगे और वहां से निकल जाएंगे। अगर बुद्धि ने इसे ना चुराने का निर्णय लिया तो आप कुछ नहीं करेंगे और जहाँ थे वहीं खड़े रहेंगे।

इसका अर्थ यह हुआ कि मन की प्रतिक्रिया, ज्ञान को कर्म इन्द्रियों तक पहुंचाती है।

 

मन के गुण 

आयुर्वेद में बताया गया है कि दोषों की ही तरह मन में भी तीन गुण पाए जाते हैं। जो निम्नलिखित  हैं :  

  • सत्व (सात्विक)
  • रज  (राजसिक)
  • तम  (तामसिक)

 

ये तीनों गुण सभी मनुष्यों में पाए जाते हैं। इन्हीं गुणों से आपके व्यक्तित्व का पता चलता है। किसी में कोई एक गुण अधिक पाया जाता है तो किसी में कोई दूसरा।  आइये मन के इन गुणों को विस्तार से समझते हैं।

 

सत्व (सात्विक)

जो लोग सात्विक प्रकृति के होते हैं उनके व्यवहार में पवित्रता ज्यादा होती है। ऐसे लोग शाकाहारी भोजन करते हैं, किसी को शारीरिक या मानसिक क्षति नहीं पहुंचाते हैं। इनकी जीवनशैली बहुत ही सामान्य, सादगी भरी और अनोखी होती है। ये लोग दिखावे और आडम्बर में विश्वास नहीं रखते हैं। कई संत-महात्मा जैसे कि आचार्य बालकृष्ण, बाबा रामदेव आज के समय में भी सात्विक जीवन जी रहे हैं। ऐसे लोग दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत होते हैं।

 

रज (राजसिक) 

राजसिक प्रकृति वाले लोग ज्यादा गुस्सैल और चंचल स्वभाव के होते हैं। इनके अंदर लालच, इर्ष्या, क्रोध, घमंड आदि की भावना ज्यादा होती है। ऐसे लोग भोगविलास युक्त जीवन जीना ज्यादा पसंद करते हैं और इनमें हमेशा अधिक से अधिक पाने की भूख रहती है।  ये शाकाहारी और माँसाहारी दोनों तरह के आहार का सेवन करते हैं जिनमें मांस-मछली, अंडा और मसालेदार सब्जियां प्रमुख हैं। वर्तमान समय में अधिकांश आम लोग राजसिक प्रकृति वाला ही जीवन जीते हैं।

 

तम (तामसिक) 

ऐसे लोग जिनमें भोग विलास की भावना उन पर हावी हो जाती है और वे सही गलत की परवाह किये बिना अपने मन का काम करने लगते हैं। ऐसे लोगों को आयुर्वेद में तामसिक प्रकृति का बताया गया है। ये लोग शराब, धूम्रपान, मांसाहार आदि का अधिक मात्रा में सेवन करते हैं। ऐसे लोग अपने स्वार्थ के लिए दूसरे को शारीरिक या मानसिक रूप से हानि पहुंचाते हैं। आज के समय में आपको जो भी आपराधिक प्रवृति वाले लोग दिखते हैं वे तामसिक प्रकृति के ही हैं।

 

मन और आयुर्वेद

जिस तरह आपके शारीरिक गुणों का प्रभाव मन पर पड़ता है ठीक उसी तरह मानसिक गुणों का प्रभाव आपके शरीर पर भी पड़ता है। इसीलिए आयुर्वेद में किसी भी रोग की चिकित्सा करते समय रोगी के शरीर के साथ साथ उसके मन की स्थिति की भी जांच की जाती है। इसके तहत आयुर्वेद में रोगों को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा गया है।

  • मानसिक रोग
  • शारीरिक रोग

 

हालांकि ये बात स्पष्ट रूप से बताई गई है कि दोनों ही प्रकार के रोगों में मन की अहम भूमिका रहती है। आयुर्वेद के अनुसार शरीर और मन का आपस में गहरा संबंध है। इसलिए किसी भी तरह के शारीरिक रोग में मन को स्वस्थ रखने पर ज्यादा जोर दिया जाता है। आप भी सात्विक जीवन अपनाएं, सात्विक आहार का सेवन करें और मन को स्वस्थ रखें।