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AUTHENTIC, READABLE, TRUSTED, HOLISTIC INFORMATION IN AYURVEDA AND YOGA

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मधु (शहद)

मधु मधुर, गाढ़ा, चिपचिपा, पीलापन, लालिमा व कालापन लिये भूरे रंग का तरल पदार्थ है। जिसकी उत्पत्ति मधुमक्खियों के द्वारा एकत्र किये हुए फूलों के पराग से होती है। यह शरीर में प्रकुपित हुए तीनों दोषों पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। सामान्यतः यह कषाय-मधुर रस वाला, शीत, रूक्ष, भारी तथा कफ, विष, रक्तपित्त, प्यास और हिक्का को नष्ट करने वाला होता है। नया शहद पुष्टि करने वाला, थोड़ी मात्रा में कफ को नष्ट करने वाला और सर होता है, तो पुराना शहद अत्यन्त लेखन, कब्ज, चर्बी और मोटापा नष्ट करने वाला होता है। शहद अच्छा योगवाही है अर्थात् जिस-िजस गुण वाले द्रव्य के साथ मिला कर इसका प्रयोग किया जाता है, यह उसके गुणों से युक्त हो जाता है। अतः आयुर्वेदीय औषधियों में अनुपान के रूप में सबसे अधिक इसका प्रचलन है।

शहद में उपस्थित जीवाणुरोधी तथा आक्सीकरणरोधी गुणों के कारण यह शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर शरीर की बीमारियों से रक्षा करता है।

यह त्वचा को नमी प्रदान कर त्वचा को मुलायम बनाता है तथा क्षतिग्रस्त त्वचा का पुनः निर्माण करके घावों को भरता है।

यह जमे हुए कफ को टुकड़े-टुकड़े करके बाहर निकालता है।

यह सन्धानीय होने से घाव को शुद्ध करके शीघ रोपण करता है।

यह प्राकृतिक रूप से शरीर के विषैले पदार्थों को बाहर निकालता है।

यह शरीर को बल प्रदान करता है।

उचित मात्रा में सेवन करने से यह क्षुधा एवं पाचक अग्नि को बढ़ाता है।

यह त्वचा के वर्ण को निखारता है।

यह प्रमेह, कुष्ठ, कृमि, वमन (उल्टी), श्वास, कास और अतिसार को नष्ट करने वाला, घावों को भरने वाला और शुद्ध करने वाला होता है।