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कर्म के आधार पर द्रव्यों के प्रकार

इन रस, विपाक, वीर्य और प्रभाव के माध्यम से द्रव्य शरीर में विभिन्न प्रकार से प्रभाव डालते हैं, जिसे कर्म कहा जाता है। ये कर्म अनेक प्रकार के हैं। उनके अनुसार द्रव्य भी निम्नलिखित अनेक प्रकार के हैं-

  1. वामक द्रव्य (Emetic substances)- ये उल्टी (वमन) लाने में सहायक हैं तथा अपक्व कफ एवं पित्त को मुख के मार्ग से बाहर निकालते हैं। जैसे – मदन फल (मैनफल)।
  2. विरेचक द्रव्य (Purgative substances)- ये द्रव्य पुरीष में वृद्धि करके, पक्व और अपक्व, दोनों प्रकार के मलों को नीचे की ओर ले जाकर गुदामार्ग से बाहर निकाल देते हैं। जैसे- त्रिवृत्, हरीतकी, आमलकी आदि।
  3. संग्राही द्रव्य (Bowel binding substances)- पतले मल को बांधने वाले (गाढ़ा कर देने वाले) द्रव्य, जैसे – जीरा।
  4. बृंहण द्रव्य (Restorative substances)- पुष्टि प्रदान करने वाले, जैसे – नया गुग्गुलु (गूगल)।
  5. लेखन द्रव्य (Scraping substances)- धातु और मलों का शोषण करके उन्हें शरीर से बाहर निकालने वाला द्रव्य, जैसे – पुराना गुग्गुलु।
  6. पाचन द्रव्य (Digestive substances)- आम या अपक्व रस का पाचन करने वाले द्रव्य, (ये आम का पाचन तो करते हैं, परन्तु पाचक-अग्नि को तीव्र नहीं करते), जैसे – नागकेशर।
  7. शमन द्रव्य (Palliative substances)– केवल कुपित दोषों को शान्त करने वाले, जैसे – गिलोय।
  8. अनुलोमन द्रव्य (Carminative substances)- पेट में स्थित वात को नीचे की ओर ले जाने वाले, जैसे – हरड़।
  9. स्रंसन द्रव्य (Bulk laxative)- पक्व और बँधे हुए (ठोस) मल को नीचे की ओर ले जाकर गुदामार्ग से बाहर निकालने वाले, जैसे – अमलतास।
  10. भेदन द्रव्य (Emmolient laxative) – बँधे (ठोस) और द्रवरूप, दोनों प्रकार के मलों को गुदामार्ग से बाहर निकालने वाले, जैसे – कुटकी।
  11. छेदन द्रव्य (Expulsive substances)- जमे हुए एकत्रित दोषों को बलपूर्वक जड़ से उखाड़ने वाले, जैसे – क्षार, काली मिर्च व शिलाजीत।
  12. ग्राही द्रव्य (Solidifying substances)- दीपन और पाचन तथा मल को बांधने वाले, जैसे शुण्ठी।
  13. स्तम्भन द्रव्य (Styptic substances)– आसानी से पचने तथा कषाय रस होने से किसी भी प्रकार के स्राव को रोकने वाले, जैसे – वत्सक।
  14. रसायन द्रव्य (Rejuvenating substances)- वृद्धावस्था के विकारों और रोगों को नष्ट करके दीर्घायुष्य प्रदान करने वाले, जैसे – आंवला, गुग्गुलु।
  15. वाजीकर द्रव्य (Aphrodisiac substances)- शुक्रवृद्धि कर कामेच्छा और सन्तानोत्पत्ति-क्षमता को बढ़ाने वाले, जैसे – दूध, उड़द, शतावरी, तालमखाना।
  16. शुक्रल द्रव्य (Spermatic substances)- जो शुक्र की मात्रा में वृद्धि करते हैं, जैसे – अश्वगन्धा, मुसली, शक्कर, शतावरी।
  17. सूक्ष्म द्रव्य (Minute substances)- जो द्रव्य पतले और सूक्ष्म स्रोतों और छिद्रों द्वारा भी शरीर में प्रविष्ट हो सकते हैं, जैसे – सेंधा नमक, शहद।
  18. 18. व्यवायी द्रव्य (Quickly absorbing substances)- पाचन से पहले ही सारे शरीर में फैल जाने वाले, जैसे – अहिफेन (अफीम)।
  19. विकाशी द्रव्य (Salackening substances)- धातुओं से ओज को अलग करके सन्धियों के बन्धन शिथिल करने वाले,जैसे – सुपारी।
  20. प्रमाथी द्रव्य (Expelling substances)- अपने वीर्य के प्रभाव से स्रोतों में स्थित दोषों को दूर करने वाले, जैसे – काली मिर्च।
  21. अभिष्यन्दी द्रव्य (Obstructing substances)- अपनी गुरुता और स्निग्धता के कारण रसवह स्रोतों में रुकावट पैदा करने वाले तथा शरीर में भारीपन लाने वाले, जैसे – दही।

और पढ़ें: तालमखाना के फायदे

आचार्य श्री बालकृष्ण

आचार्य बालकृष्ण, आयुर्वेदिक विशेषज्ञ और पतंजलि योगपीठ के संस्थापक स्तंभ हैं। चार्य बालकृष्ण जी एक प्रसिद्ध विद्वान और एक महान गुरु है, जिनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में आयुर्वेदिक उपचार और अनुसंधान ने नए आयामों को छूआ है।

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