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AUTHENTIC, READABLE, TRUSTED, HOLISTIC INFORMATION IN AYURVEDA AND YOGA

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गुण (Attributes)

द्रव्यों में कुछ गुण पाये जाते हैं, जिनके माध्यम से ये शरीर पर अपनी क्रिया करते हैं। आयुर्वेदिक ग्रन्थों में विभिन्न द्रव्यों में विद्यमान गुणों का उल्लेख किया गया है। ये गुण मुख्यतः 20 हैं, जो 10 जोड़ों में होते हैं। ये जोड़े आपसी विरोध के कारण बनते हैं, क्योंकि इनमें प्रत्येक का एक विरोधी गुण भी है। ये निम्नलिखित हैं5

  1. गुरू (Heavy)ःकफवर्धक, वातपित्तशामक, गुरूतावर्धक, मन्दता, एवं आलस्यकारक। उदाहरण-उड़द, मूसली आदि।
  2. लघु (Light)ःवातपित्त एवं अग्निवर्धक, कफशामक, पाचक, ताजगी एवं स्फूर्तिदायक। उदाहरण-मूंग, लाजा (खील) आदि।
  3. मन्द (Mild)ःकफवर्धक, वातपित्तशामक, आलस्यकारक, अल्प क्रियाशीलता, शिथिलता एवं मन्दता कारक। उदाहरण-कूष्माण्ड आदि।
  4. तीक्ष्ण (Sharp)ःवातपित्तवर्धक, कफशामक, शीघ प्रभावकारी, आशुग्राही एवं शीघ बोध गम्य (समझना)। उदाहरण-िभलावा, मिर्च आदि।
  5. स्निग्ध (Unctuous) पित्तकफवर्धक, वात एवं अग्निशामक, मृदुकारी, आर्द्र स्नेहक, ऊर्जाकारक, करूणा एवं अनुराग को बढ़ाने वाला। उदाहरण-बादाम, तिल आदि।
  6. रूक्ष (Nonunctuous) वात एवं अग्निवर्धक, पित्तकफशामक, रूक्षतावर्धक, अवशोषक, विबंधकारक एवं उत्तेजनाकारक। उदाहरण-यव, गुग्गुलु आदि।
  7. शीत (Cold)ःवातकफवर्धक, पित्तशामक, शीलता, शून्यता, मूर्च्छा, भय एवं असंवेदनशीलता को उत्पन्न करने वाला। उदाहरण-चन्दन दूर्वा आदि।
  8. उष्ण (Hot)ःपित्त एवं अग्निवर्धक, वातकफशामक, उष्णता, पाचक, शोधक; शोथ, क्रोध एवं द्वेष को उत्पन्न करने वाला। उदाहरण-चित्रक, हिंगु आदि।
  9. श्लक्ष्ण (Smooth) पित्तकफवर्धक, वात एवं अग्निशामक, मृदुता, अनुराग, चिंता को उत्पन्न करने वाला तथा रूक्षता को कम करने वाला। उदाहरण-दूध आदि।

10.खर (Rough)ःवात एवं अग्निवर्धक, पित्तकफशामक, त्वक एवं अस्थि स्फुटनकारक; दृढ़ता को उत्पन्न करने वाला। उदाहरण- यव, चणक (चना)आदि।

11.साद्र (Solid) कफवर्धक, वात, पित्त एवं अग्निशामक, घन। उदाहरण-नवनीत (मक्खन), दधि आदि।

12.द्रव (Liquid)ःपित्तकफवर्धक, वात एवं अग्निशामक, लार, करूणा एवं
स्थिरतावर्धक, घुलनशील एवं द्रावणशील। उदाहरण- तक्र, इक्षुरस आदि।

13.मृदु (Soft)ःपित्तकफवर्धक, वात एवं अग्नि शामक, मृदुता, सुकुमारता,
शिथिलता, कोमलता एवं अनुराग को उत्पन्न करने वाला। उदाहरण-द्राक्षा, घृत आदि।

14.कठिन (Hard)ःवातकफवर्धक, पित्त एवं अग्निशामक, कठोरता, बल, दृढ़ता, स्वार्थ-बुद्धि, संवेदनहीनता को उत्पन्न करने वाला। उदाहरण-प्रवाल, मुक्ता आदि।

15.सूक्ष्म (Fine)ःवात, पित्त एवं अग्निवर्धक, कफशामक, सूक्ष्म कोशिकाओं में प्रवेश करने वाला, आवेश एवं भावुकता को बढ़ाने वाला। उदाहरण-मद्य, विष आदि।

16.स्थूल (Gross) कफवर्धक, वात, पित्त एवं अग्निशामक, अवरोध एवं स्थौल्यकारक। उदाहरण-िपष्टक, मोदक आदि।

17.स्थिर (Stable)ःकफवर्धक, वात, पित्त एवं अग्निशामक, स्थिरताकारक, अवरोध कारक, विबंध कारक, धारण एवं निष्ठा शक्ति को उत्पन्न करने वाला। उदाहरण-रसायन द्रव्य।

18.सर (Unstable)ःवात, पित्त एवं अग्निवर्धक, कफशामक, गमन शक्ति, कंपन, बैचेनी एवं अनिष्ठा को उत्पन्न करने वाला। उदाहरण-अपतर्पण द्रव्य

19.विशद (Nonslimy) ःवातपित्त एवं अग्निवर्धक, कफशामक, पृथकीकरण एवं ध्यानापकर्षण कारक। उदाहरण- निम्ब, क्षार आदि।

20.पिच्छिल (Slimy)ःकफवर्धक, वात, पित्त एवं अग्निशामक, भग्न संधानकारक,अस्वच्छता एवं अस्पष्टताकारक। उदाहरण-िलसोड़ा, निर्यास (पेड़ो के गोंद) आदि।

ये सब गुण द्रव्यों में भौतिक दृष्टि से नहीं, अपितु औषधीय दृष्टि से पाये जाते हैं। अलग-अलग द्रव्यों का सेवन करने के पश्चात् शरीर पर जो प्रभाव पड़ता है, उसके आधार पर ही इन गुणों का निश्चय किया जाता है। जैसे-यदि कोई पदार्थ हाथ में उठाने से भारी या गुरु लगता है, तो उस आधार पर हम उसे गुरु नहीं कह सकते। उसका गुरुत्व या लघुत्व तो पाचन में लगने वाले समय पर निर्भर करता है। जो पदार्थ देर से पचते हैं, वे गुरु और जो शीघ पचते हैं, वे लघु कहलाते हैं। इसी प्रकार राई स्पर्श में शीतल होने पर भी गुण की दृष्टि से उष्ण है, क्योंकि यह रस और रक्त के ताप को बढ़ाती है।

द्रव्यों के ये गुण उनमें विद्यमान प्रमुख महाभूतों के आधार पर पाये जाते हैं। जैसे- जिस द्रव्य में पृथ्वी महाभूत की प्रधानता होती है, वह गुरु गुण वाला होता है, जबकि जिस द्रव्य में आकाश महाभूत की प्रधानता होती है, वह लघु गुण वाला होता। पहले भी बताया जा चुका है कि द्रव्यों में विद्यमान रस और गुण के आधार पर उसका शरीर पर क्या कर्म या प्रभाव होगा, इसका अनुमान लगाया जाता है। केवल रस के आधार पर द्रव्य के गुणों का पूर्णतया अनुमान नहीं लगाया जा सकता।