दूर्वा सोत्पलकिञ्जल्का मञ्जिष्ठा सैलवालुका । सिता शीतमुशीरञ्च मुस्तं चन्दनपद्मके ।। विपचेत् कार्षिकैरेतैः सर्पिराजं सुखाग्निना । तण्डुलाम्बु त्वजाक्षीरं दत्त्वा चैव चतुर्गुणम् ।। तत्पानं वमतो रत्तं नावनं नासिकागते। कर्णाभ्यां यस्य गच्छेत्तु तस्य कर्णौ प्रपूरयेत्।। चक्षुःस्राविणि रत्ते च पूरयेत्तेन चक्षुषी। मेढ्रपायुप्रवृत्ते तु बस्तिकर्मसु तद्धितम्।। रोमकूपप्रवृत्ते तु तदभ्यङ्ग प्रशस्यते।। भै.र.13/125-129, ग.नि.
क्र.सं. | घटक द्रव्य | प्रयोज्यांग | अनुपात |
1 | दूर्वा | 10 ग्रा. | |
2 | दाड़िम | पुष्प | 10 ग्रा. |
3 | मंजिष्ठा (Rubia cordifolia) | मूल | 10 ग्रा. |
4 | कमल (Nelumbo nucifera) | 10 ग्रा. | |
5 | केशर (Crocus sativus) | केशर | 10 ग्रा. |
6 | गूलर | पुष्प | 10 ग्रा. |
7 | खस | 10 ग्रा. | |
8 | नागर्मोथा | कन्द | 10 ग्रा. |
9 | श्वेतचन्दन (Santalum album Linn.) | सार | 10 ग्रा. |
10 | पद्माख | 10 ग्रा. | 10 ग्रा. |
11 | अडूसा | पुष्प | 10 ग्रा. |
12 | गेरू | ||
13 | नागकेशर (Mesua ferrea) | पुंकेशर | 10 ग्रा. |
14 | अजादुग्ध | 640 ग्रा. | |
15 | घृत | 640 ग्रा. | |
16 | पाठा स्वरस | 640 ग्रा. | |
17 | आयापान स्वरस | 640 ग्रा. | |
18 | तण्डुलोदक | 640 ग्रा. |
मात्रा – 6-10 ग्रा.
अनुपान – मिश्री
गुण और उपयोग– यह घृत उत्तम रक्तस्तम्भक है, मुख से रक्त आने पर इसे पीने को देना चाहिए, नाक से रक्त आने पर इसका नस्य देना चाहिए, कान या आँख से रक्त आने पर कान या आँख में डालना चाहिए तथा लिङ्ग, योनि अथवा गुदा से रक्त आने पर उत्तर बस्ति या अनुवासन बस्ति में इसका प्रयोग करना चाहिए।
रक्तपित्त रोग की यह प्रमुख औषध है, रक्तपित्त में उपद्रव स्वरूप होने वाले लक्षण जैसे प्यास लगना, शरीर में जलन, मुँह सूखना, चक्कर आना, ठण्डे पदार्थ खाने की इच्छा होना आदि में इसके प्रयोग से बहुत लाभ मिलता है साथ ही प्रवालपिष्टी, कहरवा पिष्टी, अशोकारिष्ट का भी सेवन करें तो शीघ्र ही लाभ मिलता है।